कुछ दिनों पहले बजट में डेट फंडों (Debt Funds) के लिए टैक्सेशन (Taxation) में कई बदलाव कर दिए गए. जिसकी वजह से गोल्ड फंड, इंटरनेशनल फंड और यहां तक कि फंड ऑफ फंड को भी डेट फंड के टैक्सेशन कैटेगरी में ला दिया गया था. नतीजतन इन फंडों के लिए निवेशकों पर भारी बोझ पड़ने लगा.
लेकिन अब 2024 के केंद्रीय बजट में उनके लिए राहत की खबर आई है. डेट म्यूचुअल फंड की कैटेगरी में कौन कौन से फंड आएंगे, इसकी परिभाषा बदल दी गई है. इसलिए इसका प्रभाव इक्विटी ओरिएंटेड फंडों के साथ साथ बाकी के भी कई कैटेगरी के म्यूचुअल फंड पर पड़ेगा.
तो सभी कैटेगरी के म्यूचुअल फंड के लिए ये प्रभाव क्या रहने वाला है, एक-एक करके देखते हैं-
स्पेसिफाइड म्यूचुअल फंड (Specified mutual fund)
स्पेसिफाइड म्यूचुअल फंड, इनकम टैक्स के एक्ट नं 50AA के तहत टैक्सेशन कैटेगरी में आते हैं. इस सेक्शन के मुताबिक ऐसे म्यूचुअल फंड का फायदा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) के तौर पर कैलकुलेट किया जाता है, चाहे वो कितने भी समय के लिए होल्ड किए गए हों. इसका मतलब जो मुनाफा होगा, उसे व्यक्तिगत मुनाफे के तौर पर देखा जाएगा और टैक्सेशन भी उसी के मुताबिक लागू होगा. इस सेक्शन का उद्देश्य डेट ओरिएंटेड फंडों को कवर करना था, ताकि इन पर फिक्स्ड डिपॉजिट और डिबेंचर जैसे अन्य डेट प्रोडक्ट्स की तरह टैक्सेशन किया जा सके.
परिभाषा में क्या हुआ बदलाव?
सेक्शन 50AA के मुताबिक, पहले जिन म्यूचुअल फंडों (MF) का डोमेस्टिक इक्विटी में मिनिमम 35% निवेश नहीं होता, वो म्यूचुअल फंड स्पेसिफाइड म्यूचुअल फंड की कैटेगरी में आते थे. इससे सभी डेट फंड इसमें कवर हो जाते थे. साथ ही कुछ हाइब्रिड कैटेगरी के MF जहां इक्विटी कंपोनेंट कम था, वे भी इस टैक्सेशन के दायरे में आ जाते थे.
हालांकि इसका सबसे बड़ा प्रभाव गोल्ड फंड्स, सिल्वर फंड्स, इंटरनेशनल फंड्स और फंड ऑफ फंड्स जैसी कैटेगरी के MF पर पड़ता था जिनका घरेलू इक्विटी में जरूरी मिनिमम एक्सपोजर नहीं था.
अब नई परिभाषा कहती है कि वे फंड जिनका मिनिमम 65% निवेश साल भर के दौरान डेट और मनी मार्केट में रहेगा, वो इस एक्ट के तहत आएंगे. साथ ही इस तरह के फंड में निवेश करने वाले दूसरे फंड भी इस कैटेगरी में आ जाएंगे. इसमें खासतौर पर वो फंड ऑफ फंड्स आएंगे जिनका डेट में एक्सपोजर ज्यादा है.
सोना, चांदी, फंड ऑफ फंड्स और इंटरनेशनल फंड्स
इस बदली हुई परिभाषा के हिसाब से देखें तो,डेट फंड के टैक्सेशन में आने वाले बाकी के फंड्स जैसे गोल्ड फंड, सिल्वर फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड, इंटरनेशनल फंड और यहां तक कि फंड ऑफ फंड्स के लिए भी अब राहत है.
दरअसल ये फंड अब डेट फंड की नई परिभाषा में नहीं आएंगे और इन पर अलग तरह से टैक्सेशन लागू होगा. कैपिटल गेन्स के बदले हुए नियम के मुताबिक अगर ये फंड 2 साल या उससे ज्यादा समय के लिए होल्ड किए जाएंगे तो लॉन्ग टर्म एसेट बन जाएंगे.
अगर होल्डिंग 24 महीने से कम है तो इससे मिला फायदा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा. इस तरह इसको इनकम में जोड़कर उसके मुताबिक टैक्सेशन लागू किया जाएगा.
दूसरी ओर यदि लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स है तो उस पर 12.5% का टैक्स लागू होगा, साथ ही इंडेक्सेशन का कोई लाभ नहीं मिलेगा.
बता दें कि ये बदलाव मौजूदा वित्तीय वर्ष से नहीं बल्कि अगले वित्तीय वर्ष यानी FY2025-26 से लागू होगा.
हाइब्रिड फंड (Hybrid funds)
हाइब्रिड फंड वालों को सावधानीपूर्वक देखने की जरूरत है कि वे किस परिभाषा के अंतर्गत आ रहे हैं. बैलेंस्ड एडवांटेज फंड या एग्रेसिव हाइब्रिड फंड जहां पोर्टफोलियो में इक्विटी की हिस्सेदारी 65% से ज्यादा है, वो इक्विटी फंड टैक्सेशन में आएंगे.
और चूंकि इन फंडों के लिए दरें बढ़ा दी गई है, इसलिए एक साल से कम की होल्डिंग के लिए शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स पर 20% की दर से टैक्स लागू होगा और एक साल से ज्यादा समय की होल्डिंग पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स यानी 12.5% के रेट से टैक्स लागू होगा.
कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड (Conservative hybrid funds)
कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड जैसी हाइब्रिड श्रेणियां, जहां डेट कंपोनेंट 65% से ज्यादा है, उस पर विशेष तरह से टैक्सेशन लागू होगा. इस तरह के फंड से मिला लाभ शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स के टाइप का ही माना जाएगा, चाहे जितने ही लंबे समय तक होल्ड किया गया हो. इन लाभों को इनकम में जोड़ा जाता है और फिर इसके हिसाब से टैक्स लगता है.
एक हाइब्रिड फंड जहां डेट और इक्विटी के बीच होल्डिंग संतुलित होती है और किसी भी कैटेगरी में 65% से अधिक नहीं होता है. साथ ही 24 महीने से ज्यादा होल्ड किया जाता है. तो इस पर LTCG के तहत 12.5% की दर से टैक्स लगाया जाएगा.
इक्विटी और आर्बिट्राज फंड (Equity and Arbitrage funds)
इक्विटी और आर्बिट्राज फंडों के टैक्सेशन में कोई बदलाव तो नहीं हुआ है, लेकिन रेट्स में बदलाव की वजह से इन फंडों के निवेशकों पर तत्काल प्रभाव पड़ा है. इसमें लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म दोनों मोर्चों पर ज्यादा टैक्स लगेगा. इसमें लॉन्ग टर्म के लिए क्वालीफाई करने के लिए होल्डिंग पीरियड पहले जैसे ही 1 साल का है.
ऐसे फंडों के लिए STCG टैक्स की दर अब 20% होगी जबकि LTCG टैक्स की दर 12.5% होगी. जाहिर सी बात है कि दोनों रेट्स पहले से बढ़ा दिए गए हैं.
अर्नव पांड्या
(लेकर Moneyeduschool के फाउंडर हैं)