RBI ने बैंकों के लिए LCR नियमों में किया बदलाव, डिपॉजिट बफर को घटाकर 2.5% किया

ड्राफ्ट गाइडलाइंस में स्थिर और कम स्थिर डिपॉजिट्स के बीच अंतर करने का भी प्रस्ताव किया गया था, लेकिन आखिरी गाइडलाइंस में एक फ्लैट स्ट्रक्चर का सुझाव दिया गया है.

Source: Reuters

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बैंकों के लिक्विडिटी-कवरेज रेश्यो (LCR) जरूरतों में बदलाव करने का ऐलान किया. रिजर्व बैंक ने ये कदम वित्तीय सिस्टम को मजबूत करने की दिशा में उठाया है.

क्या हैLCR, क्यों किया बदलाव?

पहले समझते हैं कि LCR क्या है? दरअसल, ये एक नियम है जो बैंकों को सुनिश्चित करता है कि उनके पास मुश्किल वक्त (जैसे आर्थिक संकट) में भी पर्याप्त नकदी (liquidity) हो ताकि वो 30 दिन तक बिना रुके अपने खर्चे और ग्राहकों की मांगों को पूरा कर सकें. यानी LCR के नियम, जिसका मकसद बड़ी मात्रा में ऑनलाइन निकासी की संभावना से पैदा होने वाले जोखिम को कम करना है, बैंकों को हाई क्वालिटी लिक्विडिटी एसेट्स में ज्यादा पैसा अलग रखने को कहता है. मोटा मोटा ये समझ लीजिए कि LCR ये सुनिश्चित करता है कि बैंक के पास हमेशा "इमरजेंसी कैश" होना चाहिए.

रिजर्व बैंक ने एक रिलीज में बताया कि बदले गए LCR नियमों के तहत बैंकों को इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग-इनेबल्ड रिटेल और छोटे बिजनेस डिपॉजिट रेट पर 2.5% का अतिरिक्त रन-ऑफ रेट तय करने का निर्देश दिया है, जबकि ड्रॉफ्ट गाइडलाइंस में 5% अतिरिक्त रन-ऑफ फैक्टर का प्रस्ताव किया गया था. यानी उन्हें कम पैसा अलग रखना होगा. स्टेबल रिटेल डिपॉजिट रन ऑफ रेट अब 5% से बढ़कर 7.5% होगा. कम स्टेबल रिटेल डिपॉजिट रन ऑफ रेट अब 10% से बढ़कर 12.5% होगा.

1 अप्रैल से लागू होंगे 

ड्राफ्ट गाइडलाइंस में स्थिर और कम स्थिर डिपॉजिट्स के बीच अंतर करने का भी प्रस्ताव किया गया था, लेकिन आखिरी गाइडलाइंस में एक फ्लैट स्ट्रक्चर का सुझाव दिया गया है. स्टेबल जमा जैसे लंबी अवधि की FD को कहते हैं, लोग इन्हें जल्दी नहीं निकालते हैं. जबकि कम स्टेबल जमा जैसे चालू खाता, इन्हें आसानी से निकाला जा सकता है. इन दोनों पर पहले अलग अलग रन ऑफ दरें होती थीं.

फरवरी में, रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​ने कहा था कि केंद्रीय बैंक ने बैंकों को नए दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए पर्याप्त समय दिया है, जो 1 अप्रैल, 2026 से लागू होंगे. RBI के मुताबिक 31 दिसंबर, 2024 तक बैंकों की ओर से रिजर्व बैंक को पेश आंकड़ों के आधार पर ये अनुमान लगाया गया है कि इन कदमों के असर से उस तारीख तक समग्र स्तर पर बैंकों की LCR में करीब 6 परसेंटेज प्वाइंट का सुधार होगा.

जबकि सभी बैंक न्यूनतम रेगुलेटरी LCR आवश्यकताओं को सहजता से पूरा करना जारी रखेंगे, रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि इन उपायों से भारतीय बैंकों का लिक्विडिटी लचीलापन बढ़ेगा और ग्लोबल मानकों के साथ मैच कर पाएंगे.