ChatGPT की हवा निकालने के लिए आया GPTZero

चैटजीपीटी ChatGPT नाम कुछ सुना सुना सा हो गया है. एक ऐसा प्लेटफॉर्म जो पूरी दुनिया में तहलका मचा रहा है. तहलका मचाने के लिए इस प्लेटफॉर्म ने एआई यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जो पैमाना तैयार किया है उसके सामने गूगल भी फेल हो गया है. अभी तक दुनिया में हम लोग आईटी की बड़ी कंपनियों में गूगल और माइक्रोसॉफ्ट को ही मानते रहे हैं लेकिन इस एक प्लेटफॉर्म ने इन दोनों ही कंपनियों के हाथ पांव फुला दिए और इस प्लेटफॉर्म के आते हैं दोनों की दोनों अपने ऐसे ही प्लेटफॉर्म को बाजार में उतारने की रेस में आ गईं.

चैटजीपीटी को पकड़ने आया जीपीटीजीरो

चैटजीपीटी ChatGPT नाम कुछ सुना सुना सा हो गया है. एक ऐसा प्लेटफॉर्म जो पूरी दुनिया में तहलका मचा रहा है. तहलका मचाने के लिए इस प्लेटफॉर्म ने एआई यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जो पैमाना तैयार किया है उसके सामने गूगल भी फेल हो गया है. अभी तक दुनिया में हम लोग आईटी की बड़ी कंपनियों में गूगल और माइक्रोसॉफ्ट को ही मानते रहे हैं लेकिन इस एक प्लेटफॉर्म ने इन दोनों ही कंपनियों के हाथ पांव फुला दिए और इस प्लेटफॉर्म के आते हैं दोनों की दोनों अपने ऐसे ही प्लेटफॉर्म को बाजार में उतारने की रेस में आ गईं. खैर गूगल को हाल ही अपने इसी प्रकार के ऐप बार्ड की वजह से अरबों का नुकसान उठाना पड़ा. ये बात तो केवल इस चैटजीपीटी की तारीफ के दृष्टिकोण से सही है. लेकिन गूगल और माइक्रोसॉफ्ट ने जो बात नहीं समझी वह यह है कि कुछ लोग इसका विरोध भी करने के लिए उतर गए हैं. 

कारण साफ है. कोई भी सुविधा हमेशा कुछ न कुछ पाबंदियों के साथ ही बेहतर होती है. इस एआई बेस्ड प्लेटफॉर्म की वजह से कई स्कूलों और कॉलेजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. उनका मानना था कि आखिर कैसे पता लगाया जाए कि छात्र ने अपनी मेहनत से लेख लिखा है या फिर किसी एआई तकनीक का सहारा लेकर लेख को लिखा गया है. कई जगह थीसीस में भी इस प्रकार की तकनीक का प्रयोग कर लेख जमा करवाए गए. हाल ही कुछ एग्जाम में भी चैटजीपीटी का प्रयोग किया गया और एग्जाम पास किए गए. अब देखा समझा जाने लगा कि आखिर कैसे सही मेहनती छात्रों को इस प्रकार के प्लेटफॉर्म का प्रयोग कर नंबर बटोर रहे छात्रों से अलग पहचाना जाए. 

वहीं, इस पूरी घटना को करीब से देख समझ रहे एक युवा ने जीपीटीजीरो GPTZero ऐप तैयार किया. उसका मकसद साफ था कि आखिर यह कैसे पताया लगाया जाए कि कंटेट एआई की मदद से तैयार किया गया है या फिर व्यक्ति ने स्वयं लिखा है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए उसने यह ऐप तैयार की है और इस हीरो की कहानी अब काफी प्रसिद्धी पा रही है. 

जीपीटीजीरो को बनाने वाले का नाम एडवर्ड टीएन (Edward Tian) है. हर क्रिएशन के साथ ही काउंटर क्रिएशन का मौका होता है. ऐसा ही कुछ चैटजीपीटी के साथ हुआ है. ताकि चैटजीपीटी के दुरुपयोग पर रोक लगाई जा सके. अगर फोन का दुरुपयोग न होता तो जैमर्स भी नहीं आते. ड्रग्स का इस्तेमाल खेल में नहीं होता तो डोपिंग टेस्ट न होते.

रंबल के फाउंडर एंडी ग्रीनवे (Andy Greenaway) ने Edward Tian पर खास लेख लिखा है. उन्होंने अपने लेख में बताया कि एडवर्ड टिएन 22 वर्ष का युवा है जो प्रिंसटन यूनिवर्सिटी का छात्र है. उन्होंने बताया कि जब दुनिया नए साल के जश्न में डूबी थी दब एक युवा चैटजीपीटी के दुरुपयोग के खिलाफ लड़ाई में लगा हुआ था. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग लैब में वह इस बात पर रिसर्च कर रहा था कि आखिर कैसे यह पता लगाया जाए कि कंटेट एआई द्वारा लिखा गया है. खुद एआई के क्षेत्र से होने के कारण टिएन को मालूम था कि चैटजीपीटी की ताकत और पहुंच कितनी है. वह जानता था कि किस प्रकार यह लाखों लोगों की नौकरी ले लेगा. कैसे यह शिक्षा जगत के लिए एक चुनौती पेश करेगा. इस वजह से वह इस पर रोक पर काम करने लगा. वह यह जानने की कोशिश में लग गया कि आखिर कैसे पता लगाया जाए कि कोई लेख चैटजीपीटी जैसे किसी एआई टूल की मदद से लिखा गया है. 

टिएन के पास पहले से ही इस प्रकार के प्रोग्राम की जानकारी थी. इसलिए वह जीपीटीजीरो नाम के ऐप को बनाने में लग गए. तीन दिन की मेहनत के बाद ही उसने यह ऐप बना लिया. अपना ऐप बनाने के बाद रात में टिएन सो गया और माना कि कोई ज्यादा रिएक्शन नहीं होगा. लेकिन जब टिएन जागा तब उसके फोन में भयानक तरीके से मैसेज आ रखे थे. कई प्रिंसिपल, पत्रकार, टीचर और निवेशकों ने पूरे यूरोप से उन्हें मैसेज भेज रखा था. उनका ऐप काफी लोगों ने डाउनलोड किया. स्थिति यहां तक खराब हो गई कि जिस प्लेटफॉर्म पर टिएन ने ऐप रखा वो तक क्रैश हो गया. था. टिएन का केवल एक तर्क है कि लोगों को पता होना चाहिए कि कोई कंटेंट मशीन ने लिखा है या फिर किसी इंसान ने.
 

लेखक NDTV Profit Desk
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