जिन छात्रों के पास साधन नहीं, उनके एजुकेशन लोन का कुछ हिस्सा माफ किया जाना चाहिए : राजन

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने छात्रों को शिक्षा रिण को लेकर आगाह करते हुए शनिवार को कहा कि उन्हें ‘ठगने वाले स्कूलों’ के झांसे में नहीं आना चाहिये। ये स्कूल उन्हें कर्ज के बोझ में डुबा देंगे और ‘डिग्री’ भी ऐसी देंगे जो किसी काम की नहीं होगी।

रघुराम राजन : बेकार की डिग्री देने वाले स्कूलों के जाल में नहीं फंसें छात्र

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने छात्रों को शिक्षा रिण को लेकर आगाह करते हुए शनिवार को कहा कि उन्हें ‘ठगने वाले स्कूलों’ के झांसे में नहीं आना चाहिये। ये स्कूल उन्हें कर्ज के बोझ में डुबा देंगे और ‘डिग्री’ भी ऐसी देंगे जो किसी काम की नहीं होगी।

उन्होंने कहा कि अच्छी गुणवत्ता के शोध विश्वविद्यालयों में निकट भविष्य में शिक्षा महंगी होगी। उन्होंने कहा कि सभी योग्य छात्रों के लिये डिग्री लेना सस्ता करने के प्रयास किये जाने चाहिये।

एजुकेशन लोन को लेकर क्या बोले राजन...
राजन ने कहा कि इसका एक समाधान शिक्षा कर्ज (एजुकेशन लोन) है लेकिन हमें इसको लेकर सतर्क रहना चाहिए कि जिन छात्रों के पास साधन हैं, उनके द्वारा पूरे कर्ज का भुगतान किया जाना चाहिये जबकि जिन छात्रों की स्थिति ठीक नहीं है या जिन्हें कम वेतन वाली नौकरी मिली है उनके आंशिक कर्ज को माफ किया जाना चाहिये।

शिव नाडर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में यहां अपने संबोधन में उन्होंने कहा, ‘हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि भोले भाले छात्र ठगने वाले स्कूलों के झांसे में नहीं आयें क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो ये छात्र कर्ज के बोझ तले तो दबेंगे ही उनकी डिग्री भी किसी काम की नहीं होगी।’ गर्वनर ने कहा कि दुनिया भर में निजी शिक्षा महंगी है तथा और महंगी होती जा रही है।

बोले- मेरा एक शब्द भी याद रखें तो...
अपने संबोधन को हल्के-फुल्के अंदाज में शुरू करते हुए राजन ने कहा कि दीक्षांत समारोह में जो संबोधन होता है, उसे शायद ही लोग याद रखते हैं। उन्होंने कहा, ‘आप अगर कुछ साल बाद में मेरा एक शब्द भी याद रखें तो मैं दीक्षांत समारोह में समान्य वक्ताओं से ऊपर निकल जाउंगा। अधिकतर लोग तो यह भी याद नहीं रख पाते कि उनके दीक्षांत समारोह को किसने संबोधित किया, यह बात तो दूर की है कि किसने संबोधन में क्या कहा।’ वैश्विक स्तर पर नामचीन अर्थशास्त्री राजन ने कहा कि मुक्त बाजार भी सही नहीं लगते हैं क्योंकि बेहतर स्थिति वाली बाजार अर्थव्यवस्थाएं भी ऐसा लगता है कि उन्हीं का पक्ष ले रहीं हैं जिनके पास पहले ही काफी कुछ है। 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

लेखक Bhasha
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