देश में धीमी आर्थिक रफ़्तार का सबसे बड़ा असर कोयला क्षेत्र पर पड़ा है। कोयला उत्पादन बुरी तरह प्रभावित है और इसका असर बिजली क्षेत्र पर भी पड़ रहा है।
कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल अपनी ही सरकार से मायूस हैं। उन्होंने बकायदा संसद में जानकारी दी है कि अलग−अलग महकमों की हरी झंडी न मिलने की वजह से उनकी 200 से ज़्यादा योजनाएं अटकी पड़ी हैं। राज्यसभा में कोयला मंत्री की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक कोल इंडिया के 178 प्रस्ताव वन महकमे की मंज़ूरी की राह देख रहे हैं।
इनमें से 133 राज्य स्तर पर अटके पड़े हैं और 45 प्रस्ताव केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रोक रखे हैं। साथ ही 51 प्रस्तावों को पर्यावरण के हिसाब से भी मंज़ूरी मिलनी बाकी है।
एनडीटीवी से खास बातचीत में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि मंज़ूरी में देरी के साथ−साथ कोयला खदान प्रस्तावों को ऑपरेशनल करने में आ रही दिक्कत के पीछे वजह ज़़मीन अधिग्रहण में देरी और कोयला खदान वाले क्षेत्रों में कानून व्यवस्था की खस्ता हालत भी है।
वजह कई हैं, लेकिन, इसका सीधा असर देश में कोयला की उपलब्धता पर पड़ेगा। पहले से ही कोयला संकट पिछले कुछ महीनों से बना हुआ है। सेन्ट्रल इलैक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के पास 13 अगस्त तक के आंकड़ों के हिसाब से 89 बड़े बिजली घरों में से 31 के पास सात दिन का कोयला स्टॉक भी नहीं बचा है, जबकि 18 बिजली घरों के पास चार दिन का स्टॉक भी नहीं है।
श्रीप्रकाश जायसवाल के मुताबिक कई पावर प्लांट इतने पुराने हो चुके हैं कि वो औसत से 10 से 15 ज्यादा कोयला की खपत करते हैं। कई पावर प्लांट आयात करने से बचना चाहते हैं क्योंकि आयात किया हुआ कोयला तीन गुना महंगा होता है।
पिछले कुछ महीनों में लंबित पड़े प्रोजेक्ट्स को फास्ट−ट्रैक करने की कई बार कोशिश की गई लेकिन, इसके बावजूद ज़मीनी हालात नहीं बदले हैं। अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने की जद्दोजहद में जुटे प्रधानमंत्री के लिए यह मसला एक मुश्किल चुनौती बन गया है।