सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक पेश किया है, इस विधेयक पर संसद में काफी चर्चा हुई. इस विधेयक का उद्देश्य आम चुनाव और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना है.
भारत में पहले भी एक साथ चुनाव हुए हैं. 1951 से 1967 तक, सभी राज्य और संसदीय चुनाव एक साथ हुए थे. लेकिन, 1968 और 1969 में कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण इसमें व्यवधान आ गया था.
मार्च में, पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,626 पन्नों की एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट सौंपी. फिलहाल चुनावों को एक साथ कराने पर संसद में चर्चा जारी है, ऐसे में अर्थव्यवस्था सहित विभिन्न क्षेत्रों पर उनके संभावित प्रभाव की जांच करना महत्वपूर्ण है.
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद रिपोर्ट के मुताबिक, GDP, फिस्कल डेफिसिट, सरकारी खर्च और महंगाई पर इसका प्रभाव क्या होगा?
क्या है कोविंद रिपोर्ट में
कोविंद रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव कराने की पिछली अवधियों में इकोनॉमिक ग्रोथ, महंगाई में कमी और निवेश में बढ़ोतरी हुई है.
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि एक साथ चुनाव कराने से GDP ग्रोथ में 1.5% तक की ग्रोथ हो सकती है. इसका मतलब है कि इकोनॉमी को लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये का फायदा, जो वित्त वर्ष 2023-24 में स्वास्थ्य पर सरकार के सार्वजनिक व्यय का आधा और शिक्षा पर उसके व्यय का एक तिहाई हिस्सा है.
इसके अलावा, नीति आयोग ने बताया था कि 2009 में लोकसभा चुनावों की लागत 1,115 करोड़ रुपये और 2014 में 3,870 करोड़ रुपये थी. यानी चुनाव कराने का खर्च लगातार बढ़ रहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग का अनुमान है कि 2029 में एक साथ चुनाव कराने के लिए लगभग 8,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी.
Assocham के पूर्व अध्यक्ष अजय सिंह ने कहा, 'इससे (एक साथ चुनाव) केंद्रित शासन, कम चुनावी लागत, खरीद-फरोख्त की समाप्ति, कम मुफ्त सुविधाएं और राज्य के वित्त में सुधार हो सकता है.'
फिस्कल डेफिसिटऔर खर्च
कोविंद की रिपोर्ट के अनुसार, एक साथ चुनाव होने पर केंद्रीय राजकोषीय घाटा एक साथ चुनाव ना होने की तुलना में अधिक बढ़ जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव होने पर राजकोषीय घाटा औसतन GDP से 1.28% प्वाइंट्स अधिक हो सकता है.
एक साथ चुनाव होने पर कैपिटल स्पेंडिंग और करेंट स्पेंडिंग का रेश्यो 17.67% से अधिक होने का अनुमान है. इससे पता चलता है कि एक साथ चुनाव होने के बाद पब्लिक कैपिटल स्पेंडिंग निवेश पर अधिक केंद्रित होता है.
निवेश पर सकारात्मक असर
लगातार चुनावों का इन्वेस्टमेंट्स और इन्फ्लो पर भी संभावित रूप से महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. कोविंद की रिपोर्ट के मुताबिक, लगातार चुनाव न केवल सीधे तौर पर गतिविधि को बाधित कर सकते हैं. बल्कि ज्यादा अनिश्चितता से अप्रत्यक्ष रूप से अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकते हैं, जिससे निजी इन्वेस्टमेंट्स पर बुरा असर पड़ सकता है.