Burger King ट्रेडमार्क केस में आया नया मोड़, पुणे की दुकान को नाम इस्‍तेमाल करने पर लगी रोक, 6 सितंबर को सुनवाई

निचली अदालत का फैसला पुणे की दुकान के पक्ष में गया था, जिसके खिलाफ बर्गर किंग ने बॉम्‍बे हाईकोर्ट में अपील की.

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'बर्गर किंग' नाम को लेकर मशहूर इंटरनेशनल फास्‍टफूड चेन और पुणे में बर्गर की एक फेमस दुकान के बीच चले आ रहे मुकदमे ने एक नया मोड़ ले लिया है. निचली अदालत का फैसला पुणे की दुकान के पक्ष में जाने के बाद मामला बॉम्‍बे हाई कोर्ट पहुंचा, जहां 6 सितंबर की सुनवाई होने तक पुणे की दुकान को 'बर्गर किंग' का नाम इस्‍तेमाल करने पर रोक लगा दी गई.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को पुणे की फेमस दुकान को 6 सितंबर तक 'बर्गर किंग' नाम का इस्तेमाल करने से अस्थाई रूप से रोक दिया है. इस फैसले के पीछे 2012 में एक कोर्ट के आदेश को आधार बनाया गया, जिसमें पुणे के रेस्‍तरां को इस नाम का इस्तेमाल करने से रोक दिया गया था. हालांकि, ये अंतिम फैसला नहीं है क्योंकि मामले पर सुनवाई होनी अभी बाकी है.

बर्गर किंग ने फैसले को दी चुनौती

ग्‍लोबल फास्ट-फूड चेन, बर्गर किंग ने पुणे की निचली अदालत के हाल के उस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें स्थानीय ईरानी दंपती के बिजनेस को 'बर्गर किंग' नाम का इस्तेमाल जारी रखने की अनुमति दी गई थी. बीते 16 अगस्त को, पुणे कोर्ट ने लंबी लड़ाई के बाद स्‍थानीय दुकान के पक्ष में फैसला सुनाया था.

2011 से चला आ रहा है मुकदमा

अमेरिका स्थित बर्गर किंग कॉर्प ने 2011 में मुकदमा दायर किया था, जब उसे पता चला कि पुणे स्थित बर्गर जॉइंट, इसी नाम का इस्तेमाल कर रहा है. इसका संचालन एक ईरानी दंपती करते हैं. बर्गर किंग ने तर्क दिया कि ऐसा करना उसके ट्रेडमार्क का उल्लंघन है और उसने कोर्ट से नाम के इस्तेमाल को रोकने और हर्जाना दिलाने अनुरोध किया.

ईरानी दंपती ने क्‍या तर्क दिए?

पुणे में दुकान चलाने वाले ईरानी दंप‍ती ने कोर्ट में तर्क‍ दिया कि वे अमेरिकी बर्गर किंग के भारत में एंट्री करने से काफी पहले साल 1992 से ही 'बर्गर किंग' नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि गुमराह करने का कोई इरादा नहीं था और उस समय भारत में बर्गर किंग को व्यापक मान्यता नहीं मिली थी.

ईरानी दंप‍ती ने कंपनी से 20 लाख रुपये का मुआवजा दिलाने की भी मांग की. उनका दावा था कि बर्गर किंग की कानूनी कार्रवाइयों ने उनके व्यवसाय को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है.

निचली अदालत ने क्‍या पाया?

दोनों पक्षों की ओर से तर्क और बातों को ध्‍यान में रखते हुए निचली अदालत ने पाया कि किसी भी पक्ष ने हर्जाने के दावों के समर्थन में पर्याप्‍त सबूत नहीं दे पाए. कोर्ट ने पाया कि पुणे के आउटलेट को नाम का उपयोग करने से रोकने के लिए बर्गर किंग की अपील सबूतों की कमी के कारण स्वीकार नहीं की जा सकती. ये फैसला ईरानी दंपती के पक्ष में गया.

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