फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (FIIs) ने मई में अब तक 22,857 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं. इसके पीछे वजह लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) और आने वाले केंद्रीय बजट (Union Budget) को लेकर उथल-पुथल और अनिश्चित्ता का माहौल है. एडलिटिक डॉट इन में मल्टी एसेट रिसर्च एनालिस्ट और फाउंडर आदित्य अरोड़ा को बाजार में ज्यादा उतार-चढ़ाव की उम्मीद है. उन्होंने इसे बाजार का अस्थिर बर्ताव बताया.
US फेड के ब्याज दरों में कटौती नहीं करने का भी असर
US फेडरल रिजर्व का साल के आखिर तक दरों में कटौती करने का फैसला टाल दिया गया है. इसलिए बाजार के निवेशकों को भारतीय और उभरते बाजारों में फॉरेन इनफ्लो पर असर की आशंका है. US बेंचमार्क बॉन्ड्स पर बढ़ती यील्ड्स और मौजूदा भूराजनीतिक तनाव की वजह से भी विदेशी निवेश पर बुरा असर पड़ा है.
जानकारों का मानना है कि फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPIs) डॉलर के अधिग्रहण को प्राथमिकता देते हैं, जिससे भी इनफ्लो पर असर पड़ता है. उन्हें इस साल के आखिर तक कम या ज्यादा से ज्यादा दो बार दरों में कटौती की उम्मीद है.
शीनहन बैंक में वाइस प्रेसिडेंट वाइस प्रेसिडेंट कुणाल सोढानी ने कहा कि मुझे निजी तौर पर लगता है कि सितंबर में US फेड साल के लिए एक बार और दर में कटौती करेगा. इसमें 25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती होगी.
DIIs नहीं कर रहे जमकर खरीदारी
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज में चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटजिस्ट के विजयकुमार ने कहा कि बाजार में एक बड़ा ट्रेंड अभी FIIs की भारी बिकवाली है. हालांकि DIIs खरीदारी कर रहे हैं, वो उतने आक्रामक नहीं है क्योंकि आने वाले चुनावों के नतीजों को लेकर कुछ चिंताएं हैं.
उन्होंने आगे कहा कि चीन और हॉन्ग कॉन्ग के बाजारों के वैल्यूएशन में गिरावट है. PEs 10 के करीब है, ये PE रेश्यो का दोगुना है और अहम फैक्टर है.