पेट्रोल, डीजल के दाम घटने से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर कैसे होगा असर, फायदा या नुकसान

पेट्रोल और डीजल के दाम में 2 रुपये/ लीटर की कटौती हुई है. तेल की कीमतों में कटौती से हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के रेवेन्यू पर असर पड़ेगा.

Source: Envato

सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों (Oil Marketing Companies) ने करीब दो साल में पहली बार कीमतों में कटौती की है. इससे पेट्रोल और डीजल के दाम (Petrol Diesel Prices) में 2 रुपये/ लीटर घट गए हैं. तेल की कीमतों में कटौती से हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के रेवेन्यू पर असर पड़ेगा. इससे इन कंपनियों के मार्केटिंग मार्जिन पर सीधा असर होगा.

ग्रॉस मार्केटिंग मार्जिन क्या है?

ग्रॉस मार्केटिंग मार्जिन ऑयल मार्केटिंग कंपनी द्वारा तेल खरीदने और उसे पंप तक डिलीवर करने में आने वाली लागत और पेट्रोल, डीजल के रिटेल सेलिंग प्राइस के बीच अंतर होता है. इस मार्जिन में अलग-अलग खर्च जैसे ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट, स्टोरेज कॉस्ट, रिफाइनरी चार्जेज और केंद्र, राज्य की सरकारों द्वारा लगाई गई एक्साइज ड्यूटी शामिल होती है. इसमें पेट्रोल पंप के मालिकों को उनकी सर्विस के लिए भुगतान किया गया डीलर कमीशन भी रहता है.

मौजूदा मार्जिन कितना है?

हालांकि भारतीय ऑयल मार्केटिंग कंपनियां अक्सर अपने ग्रॉस मार्केटिंग मार्जिन को लेकर जानकारी जारी नहीं करती हैं. लेकिन ब्रोकरेजेज द्वारा कैल्कुलेशन से संकेत मिलता है कि ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के लिए प्रति लीटर GMM 5 रुपये/ लीटर से 7.5 रुपये/ लीटर के बीच होता है. हालांकि डीजल मार्जिन 4 रुपये/ लीटर या कम से कम 1.4 रुपये/ लीटर तक हो सकती है.

क्या असर होता है?

ऑयल मार्केटिंग कंपनियां प्रति लीटर तय मार्जिन पर काम करती हैं जिसे ग्रॉस मार्केटिंग मार्जिन के नाम से जाना जाता है. कीमत में किसी तरह की गिरावट से सीधे उनकी आय पर असर पड़ता है. कीमतों में कटौती से मौजूदा पेट्रोल ग्रॉस मार्केटिंग मार्जिन में 2 रुपये/ लीटर की गिरावट आएगी. जहां कीमतों में कटौती से पेट्रोल के मार्जिन पर असर पड़ेगा, वो फिर भी पॉजिटिव रहेगा.

हालांकि अगर डीजल मार्जिन मौजूदा समय में करीब 1.4 रुपये/ लीटर है, तो 2 रुपये/ लीटर की कटौती से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों का मार्जिन नकारात्मक हो जाएगा.

इंवेंटरी का भी नुकसान

कीमतों में कटौती से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के इंवेटरी को भी नुकसान हो सकता है. ऑयल मार्केटिंग कंपनियां आम तौर पर छोटी अवधि और लंबी अवधि के कॉन्ट्रैक्ट्स दोनों का इस्तेमाल करते हुए कच्चा तेल खरीदती हैं. रिटेल कीमतों के घटने पर उसमें कटौती से पहले ज्यादा कीमत पर खरीदे गए तेल से उस इंवेंटरी पर थोड़ा घाटा हो सकता है.

तेल की कीमतें बढ़ने से असर

जिस समय कीमतों में कटौती का ऐलान किया गया, बेंट क्रूड ऑयल फ्यूचर्स की कीमतें बढ़ीं और 85 डॉलर/ बैरल के पार चली गईं. कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है. स्पॉट क्रूड ऑयल के दाम पिछले हफ्ते में 3.9% बढ़े हैं. इससे ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के लिए खरीदारी की लागत बढ़ी है.

आम तौर पर कीमतों में ऐसा इजाफा कंज्यूमर प्राइस में दिखता है. हालांकि पेट्रोल और डीजल के दाम हाल ही में घटने के साथ ब्रेंट क्रूड कीमतों में किसी बढ़ोतरी से ग्रॉस मार्केटिंग मार्जिन और घट सकता है.

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