Ratan Tata-Shantanu Naidu Friendship: कौन हैं रतन टाटा के सबसे छोटे दोस्‍त, जिनके जीवन का खालीपन ताउम्र सालता रहेगा?

रतन टाटा के निधन से शांतनु के दिल पर क्‍या बीत रही होगी, उसका अंदाजा हम उनकी सोशल मीडिया पर की गई पोस्‍ट से लगा सकते हैं.

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'इस दोस्ती ने अब मुझमें जो खालीपन छोड़ा है, उसे भरने में मैं अपनी बाकी की पूरी जिंदगी बिता दूंगा. दुःख, प्यार के लिए चुकाई जाने वाली कीमत है. अलविदा, मेरे प्रिय प्रकाशस्तंभ.'

हर किसी को भावुक कर देने वाली ये पोस्‍ट है, रतन टाटा के सबसे छोटे दोस्‍त की. 28 वर्ष के शांतनु नायडू ने अपनी उम्र से 55 साल बड़े अपने सबसे खास दोस्‍त रतन टाटा को श्रद्धांजलि दी है.

दोनों की उम्र में इतना बड़ा फासला होने के बावजूद दोनों दोस्‍त थे. रतन टाटा न केवल दोस्‍त थे, बल्कि शां‍तनु के मेंटर भी थे. खून का रिश्‍ता नहीं होने के बावजूद शांतनु, रतन टाटा के बेहद करीबी थे.

रतन टाटा के निधन से शांतनु के दिल पर क्‍या बीत रही होगी, उसका अंदाजा हम उनकी सोशल मीडिया पर की गई पोस्‍ट से लगा सकते हैं.

शांतनु ने टाटा की उपलब्धियों पर नहीं, बल्कि प्‍यार और दोस्‍ती भरे रिश्‍ते पर पोस्‍ट लिखी. उन्‍होंने बड़े भारी मन से सोशल मीडिया पर ये पोस्‍ट किया है.

कौन हैं शांतनु नायडू?

शांतनु नायडू फेमस बिजनेसमैन, इंजीनियर और इन्‍वेस्‍टर हैं. वे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और लेखक भी हैं. टाटा से जुड़ाव की बात करें तो वे रतन टाटा के ऑफिस में जनरल मैनेजर (GM) के पद पर काम करते हैं. लिंक्‍डइन प्रोफाइल के मुताबिक, जून 2017 से ही वो टाटा ट्रस्ट से जुड़े हुए हैं. वो नए स्टार्टअप में निवेश को लेकर टाटा ग्रुप को सलाह भी देते हैं.

शांतनु नायडू का जन्म 1993 में पुणे के एक तेलुगु परिवार में हुआ है. नायडू न सिर्फ बिजनेस की दुनिया में अपनी अलग समझ के लिए जाने जाते हैं बल्कि समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता भी उन्हें अलग पहचान दिलाती है.

कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से MBA करने वाले शांतनु टाटा समूह में काम करने वाले अपने परिवार की 5वीं पीढ़ी हैं. वो टाटा एलेक्सी में डिजाइन इंजीनियर के तौर पर भी काम कर चुके हैं. शांतनु नायडू अच्छा दोस्त होने के साथ रतन टाटा के भरोसेमंद असिस्टेंट रहे. वे उन्‍हें सलाह भी देते रहते थे.

टाटा के करीब कैसे आए शांतनु?

कुछ साल पहले जब शांतनु और रतन टाटा की तस्वीरें पहली बार वायरल हुईं तो लोगों के मन में सवाल था कि ये लड़का आखिर है कौन. तरह-तरह की अटकलें भी लगाई गईं. हालांकि जल्‍द ही उन अटकलों पर विराम लग गया. सवाल ये भी है कि वे टाटा के इतने करीब कैसे आए? जवाब है- नेक‍नीयती, दोनों को करीब ले आई.

दरअसल, शांतनु की एक फेसबुक पोस्ट पढ़ने के बाद रतन टाटा ने उन्हें बुलाया था. इस पोस्‍ट में शांतनु ने सड़क पर घूमने वाले कुत्तों के लिए रिफ्लेक्टर के साथ बनाए गए डॉग कॉलर के बारे में लिखा था. रिफ्लेक्टर, इसलिए ताकि रात में मुंबई की सड़कों पर कार-बस ड्राइवर कुत्तों को देख सकें और उनकी जानें न जाएं.

तब एक छात्र रहे शांतनु के पास पर्याप्‍त पैसे नहीं थे. ऐसे में शांतनु ने बेस मैटेरियल के तौर पर डेनिम पैंट का इस्‍तेमाल किया था. अलग-अलग घरों में जाकर उन्‍होंने पैंट लिए और बाद में रिफ्लेक्टिव कॉलर बनवाकर 500 आवारा कुत्तों को पहनाए थे. अब ड्राइवर अंधेरे में भी कुत्तों को देख सकते थे. इस तरह कुत्तों की जान बच जाती.

अब चूंकि रतन टाटा खुद पेट लवर यानी पशु-प्रेमी और एक्टिविस्‍ट थे, सो तब शांतनु के काम की चर्चा हुई और अखबार में वे फीचर हुए तो रतन टाटा ने खुद ही उन्‍हें मिलने के लिए बुलाया.

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बहुत कम उम्र में बड़ी उपलब्धि

महज 28 साल की उम्र में शांतनु ने जो मुकाम हासिल किया है, वो युवाओं के लिए प्रेरित करने वाला है. रतन टाटा, जिनका पूरे देश-दुनिया में प्रभाव है, उन्‍होंने खुद शांतनु को फोन कर कहा था, 'आप जो काम करते हैं, मैं उससे प्रभावित हूं. क्या आप मेरे असिस्टेंट बनोगे?

शांतनु 2016 में अमेरिका में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से MBA करने के बाद स्‍वदेश लौट आए. उन्‍हें रतन टाटा के ऑफिस में डिप्टी जनरल मैनेजर बनाया गया और इस तरह वे टाटा ट्रस्ट में शामिल हो गए. रतन टाटा का इस दुनिया से जाना, उनके लिए निजी क्षति है, जो शायद ही पूरी हो पाएगी.

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