केन्द्रीय रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने बुधवार को कहा कि संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए आर्थिक तंगी से जूझ रहे रेलवे में केन्द्र निजी पूंजी निवेश करना चाहता है और उन्होंने रेलवे यूनियनों द्वारा रेलवे का निजीकरण किए जाने के दावों को खारिज कर दिया।
एशिया सोसाइटी समारोह को वीडियो कांफ्रेन्सिंग के जरिये संबोधित करते हुए उन्होंने कहा 'हम लोग निजी भागीदारी करना चाहते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम लोग रेलवे संचालनों का निजीकरण करना चाहते हैं।'
हाल ही में रेलमंत्री के रूप में प्रभार संभालने वाले प्रभु ने कहा कि कुछ लोग खासकर यूनियनें निजी पूंजी प्राप्ति और निजीकरण के बीच के अंतर को नहीं समझ पा रही हैं।
चिंताओं को दूर करने की मांग पर उन्होंने कहा, 'यूनियनों को लगता है कि रेलवे का निजीकरण किया जा रहा है और रेलवे अब सरकार के स्वामित्व में नहीं रहेगी। भारत की सामाजिक-आर्थिक संस्कृति का रेलवे लगातार एक महत्वपूर्ण, प्रमुख हिस्सा बना रहेगा और भारत सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि हम लोग निजी भागीदारी को लेकर व्यापारगत मुद्दों पर काम करेंगे जिसे उचित नियामक ढांचे के तहत सामने लाया जाएगा।'
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद से रेलवे में विदेशी और निजी निवेश को लेकर काफी बातें होती रही हैं। सरकार द्वारा संचालित इस परिवहन प्रतिष्ठान के 20 लाख कर्मचारियों का नेतृत्व करने वाली यूनियनों ने इस तरह के उपायों का विरोध किया है।
हाल ही में दो यूनियनों ने कर्मचारी भविष्य निधि कोष का रेल नेटवर्क को विकसित करने में इस्तेमाल करने का प्रस्ताव भी दिया है।