RBI ने रेपो रेट को 6 फीसदी पर कायम रखा, वृद्धि दर का अनुमान घटाया, मुद्रास्फीति का बढ़ाया

भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को लगातार तीसरी बार द्वैमासिक मौद्रिक समीक्षा में मुख्य नीतिगत दर (रेपो रेट) को छह प्रतिशत पर कायम रखा है. केंद्रीय बैंक का मानना है कि सरकार के ऊंचे खर्च से मुद्रास्फीति बढ़ेगी. इसके साथ ही उसने राजकोषीय घाटे के जोखिमों को लेकर भी चिंता जताई है. चालू वित्त वर्ष की छठी और आखिरी द्वैमासिक मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ने अपने रुख को तटस्थ रखा है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को लगातार तीसरी बार द्वैमासिक मौद्रिक समीक्षा में मुख्य नीतिगत दर (रेपो रेट) को छह प्रतिशत पर कायम रखा है. केंद्रीय बैंक का मानना है कि सरकार के ऊंचे खर्च से मुद्रास्फीति बढ़ेगी. इसके साथ ही उसने राजकोषीय घाटे के जोखिमों को लेकर भी चिंता जताई है. चालू वित्त वर्ष की छठी और आखिरी द्वैमासिक मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ने अपने रुख को तटस्थ रखा है. रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने इससे पहले पिछले साल अगस्त में रेपो दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर छह प्रतिशत किया था. यह इसका छह साल का निचला स्तर है. उसके बाद से केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दर में बदलाव नहीं किया है.

बता दें कि रेपो रेट वह दर है जिसपर केंद्रीय बैंक अन्य वाणिज्यिक बैंक को फौरी जरूरत के लिए उधार देता है. रिवर्स रेपो दर (जिस दर पर केंद्रीय बैंक अन्य बैंकों से फौरी उधार लेता है) को भी 5.75 प्रतिशत पर कायम रखा गया है. दिसंबर में मुद्रास्फीति 17 महीने के उच्चस्तर 5.21 प्रतिशत पर पहुंच गई है. बजट 2018-19 में ग्रामीण क्षेत्रों में ऊंचे खर्च तथा एक बड़ी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के वित्तपोषण के मद्देनजर राजकोषीय घाटे के अनुमान को बढ़ाया गया है जिससे मुद्रास्फीति के और बढ़ने का अंदेशा है.

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पटेल ने कहा, ‘इसकी लागत को लेकर अभी हमें और ब्योरे का इंतजार है. हमने कहा है कि इसका प्रभाव होगा, पर कितना अभी नहीं कहा जा सकता. अभी इसकी लागत को लेकर पर्याप्त सूचना उपलब्ध नहीं है.’ छह सदस्यीय एमपीसी ने कहा, ‘मुद्रास्फीति का परिदृश्य कई अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है. राज्यों द्वारा सातवें वेतन आयोग के क्रियान्वयन, कच्चे तेल के ऊंचे दाम, सीमा शुल्क में बढ़ोतरी तथा 2017-18 में राजकोषीय घाटा लक्ष्य से अधिक यानी 3.5 प्रतिशत रहने के अनुमान और अगले वित्त वर्ष के लिए ऊंचे लक्ष्य से मुद्रास्फीति के ऊपर जाने का जोखिम बना हुआ है.’ रिजर्व बैंक ने 2017-18 की चौथी तिमाही के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर 5.1 प्रतिशत कर दिया है. 

अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही में इसके 5.1 से 5.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है. हालांकि, अगले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में मुद्रास्फीति के घटकर 4.5 से 4.6 प्रतिशत पर आने का अनुमान लगाया गया है. केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘आम बजट में राजकोषीय घाटा लक्ष्य से अधिक रहने का अनुमान लगाया गया है. इसका मुद्रास्फीति के परिदृश्य पर असर पड़ेगा. महंगाई पर इसका सीधा प्रभाव तो पड़ेगा ही, साथ ही राजकोषीय मोर्चे पर चूक के वृहद वित्तीय प्रभाव होंगे. विशेषरूप से अर्थव्यवस्था के स्तर पर ऋण की लागत बढ़ेगी. इसमें पहले ही वृद्धि शुरू हो गई है.’ रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल सहित एमपीसी के पांच सदस्यों ने ब्याज दरों के मोर्चे पर यथास्थिति कायम रखने के पक्ष में मत दिया. वहीं कार्यकारी निदेशक माइकल पात्रा एकमात्र सदस्य रहे जिन्होंने नीतिगत दर में बढ़ोतरी के पक्ष में मत दिया. रिजर्व बैंक ने हालांकि कहा कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले असर का अभी आकलन करना मुश्किल है.

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एमपीसी ने कहा कि सकारात्मक पक्ष यह है कि कमजोर क्षमता इस्तेमाल तथा ग्रामीण वेतन में धीमी वृद्धि जैसे कारकों का प्रभाव कम हो रहा है. आम बजट 2018-19 में ग्रामीण और बुनियादी ढांचा खर्च पर ध्यान दिया गया है, जो स्वागतयोग्य है. रिजर्व बैंक ने इसके साथ ही चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है. पहले उसने वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था. अगले वित्त वर्ष में वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है. वैश्विक वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव के संदर्भ में रिजर्व बैंक ने कहा कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति में सामान्यीकरण की रफ्तार को लेकर अनिश्चितता इसकी प्रमुख वजह है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

लेखक Bhasha
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