देश में को-वर्किंग स्पेस (Coworking Space) का चलन बीते एक दशक में, खासतौर पर कोरोना के बाद जबरदस्त तेजी पकड़ चुका है. दिल्ली, मुंबई, बंगलुरू जैसी मेट्रो सिटी में ये रियल एस्टेट का एक अहम हिस्सा बन चुका है. ऐसे में इनके किराये में भी जोरदार तेजी देखी जा रही है.
एनारॉक की हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि देश का फ्लेक्सी ऑफिस स्पेस (को-वर्किंग ऑफिस) अब 55 मिलियन स्कवायर फीट पहुंच चुका है. इसमें से 34 मिलियन स्कवायर फीट स्पेस 2017 के बाद से जोड़ा गया है.
मुंबई में बढ़ा सबसे ज्यादा किराया
बीते चार साल में सबसे ज्यादा किराया मुंबई में बढ़ा हैं, जहां फ्लेक्सी स्पेस में एक सीट के औसत मासिक किराये में 27% तक की बढ़ोतरी हुई है. मुंबई में औसत किराया 15,900 रुपये है, जबकि चार साल पहले ये 12,500 रुपये/सीट पर था.
इसके बाद ग्रोथ गुरुग्राम में हुई है, जहां इस अवधि में 19% किराया बढ़ा है और एक सीट का किराया 8,500 रुपये से बढ़कर 10,100 रुपये पहुंच गया है.
दिल्ली में बीते चार साल में किराया 18% बढ़ा है और एक सीट का औसत किराया 10,000 रुपये महीने से बढ़कर 11,800 रुपये पहुंच गया.
वहीं बेंगलुरू में फ्लेक्सी स्पेस में किराया 7,800 रुपये/सीट/महीने से बढ़कर 9,000 रुपये/सीट/महीने पर पहुंच गया है.
नोएडा में बीते चार साल में किराये में 14% की ग्रोथ हुई और एक सीट का मासिक किराया 6,500 रुपये से बढ़कर 7,400 रुपये पर पहुंच गया.
रिपोर्ट में 7 शहरों के आंकड़ों को लिया गया है. इनमें दिल्ली, मुंबई, गुरुग्राम, बंगलुरू, हैदराबाद, पुणे और नोएडा शामिल हैं.
रिपोर्ट की अन्य अहम बातें
बीते दो साल में इन शहरों में जितना कुल ऑफिस स्पेस बढ़ा है, उसमें 20% हिस्सेदारी को-वर्किंग वाले फ्लेक्सी ऑफिस स्पेस की है.
इंडस्ट्री के 3 में से 2 प्रोफेशनल्स का मानना है कि 2030 तक पारंपरिक ऑफिस स्पेस के मुकाबले को-वर्किंग ऑफिस स्पेस ज्यादा हो जाएगा.
होटेल्स और F&B आउटलेट्स ने भी को-वर्किंग विंग बनाना शुरू कर दिया है, ताकि दिन में खाली रहने वाली इन्वेंट्री से अधिकतम कमाई की जा सके.
दुनिया की कुछ बड़ी कंपनियां भी अब को-वर्किंग ऑफिस स्पेस का रुख कर रही हैं. इनमें गूगल, सैमसंग, रॉल्स रॉयस एनर्जी, कोटक महिंद्रा बैंक आदि शामिल हैं.