Lakme India: नेहरू, JRD टाटा और वो दिन जब बना देश का पहला कॉस्मेटिक ब्रैंड

लैक्मे का जलवा आज भी बरकरार है. यह 1,000 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार वाले हिंदुस्तान यूनिलीवर के 'क्लब ऑफ ब्रांड्स' में शामिल है. इसके पास 300 से ज्यादा प्रोडक्ट हैं.

Source: Lakme website

लैक्मे  (Lakme). इस छोटे से नाम से ही एक मुकम्मल तस्वीर खिंच जाती है. कामयाबी की बुलंदियां छूने वाला देश का पहला स्वदेशी कॉस्मेटिक ब्रांड. यही लैक्मे अब 70 साल का हो चला है. इस लंबे सफर में लैक्मे का संबंध देवी लक्ष्मी, देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और विख्यात उद्योगपति JRD टाटा से भी जुड़ता है. आइए, जानते हैं लैक्मे की पूरी कहानी.

कैसे हुआ जन्म?

टाटा ग्रुप ने कॉस्मेटिक्स के कारोबार में लैक्मे के जरिए ही शुरुआत की थी. तब इस ग्रुप के चेयरमैन थे जेआरडी टाटा. खास बात ये कि आजाद भारत में स्थापित पहली कॉस्मेटिक कंपनी भी यही है. टाटा सेंट्रल आर्काइव्स की वेबसाइट tatacentralarchives.com पर इस बारे में कई रोचक तथ्य मिलते हैं.


देश के आजाद होने के वक्त तक सौंदर्य प्रसाधन के मामले में महिलाओं के सामने दो ही मुख्य विकल्प थे. एक परंपरागत तरीका, जिसमें हल्दी, नीम, दही, नारियल तेल जैसी प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल होता था. खर्च भी कम और सब कुछ घर में ही उपलब्ध. लेकिन दूसरा विकल्प ज्यादा खर्चीला था. सौंदर्य प्रसाधन बेचने में विदेशी कंपनियों का बोलबाला था. ज्यादातर इनका आयात ही होता था. इस तरह इन कंपनियों के जरिए देश का पैसा बाहर जा रहा था. यही बात पं. जवाहरलाल नेहरू को खटक रही थी.

पं. नेहरू ने इस बारे में अपने मित्र जेआरडी टाटा से चिंता जाहिर की. टाटा ने इसे एक अवसर के रूप में देखा. इस तरह 1952 में लैक्मे की नींव पड़ गई. एक भारतीय कंपनी, जो भारत के लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर प्रोडक्ट तैयार करने लगी और बाद में पूरी तरह छा गई.

शुरू में TOMCO की सहायक कंपनी

लैक्मे को टाटा ऑयल मिल्स कंपनी (TOMCO) की सहायक कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था. पहले इस  TOMCO के बारे में थोड़ा जान लीजिए. TOMCO को 1920 में कोचीन (मौजूदा कोच्चि) में स्थापित किया गया. मकसद था निर्यात के लिए नारियल तेल का उत्पादन करना. बाद में कंपनी धीरे-धीरे साबुन, खाना पकाने के तेल, डिटर्जेंट, शैंपू भी बनाने लगी. आगे चलकर TOMCO ने 1953 में दो नामी फ्रेंच फर्म - रॉबर्ट पिगुएट  (Robert Piguet) और रेनॉयर (Renoir) के सहयोग से लैक्मे को लॉन्च किया.

खास बात ये है कि इन विदेशी सहयोगियों की इक्विटी में कोई भागीदारी नहीं थी. उनकी भागीदारी केवल परफ्यूम बेस और कुछ तकनीकी जानकारी देने तक सीमित थी. बदले में उन्हें इसकी रकम मिलती. सीधे-सीधे ये समझ लीजिए कि शुरुआत से ही लैक्मे पूरी तरह से 'मेक इन इंडिया' मिशन था.

नाम की दिलचस्प कहानी (How was Lakme Named)

लैक्मे को आप लक्ष्मी का ही फ्रेंच रूप समझ सकते हैं. इसे लैक्मे नाम दिए जाने की कहानी भी काफी दिलचस्प है. कंपनी के फ्रेंच सहयोगियों से एक नाम सुझाने को कहा गया था. कोई ऐसा नाम, जिसमें फ्रेंच टच हो और भारतीयता की दमक भी आए. ऐसे में लैक्मे नाम सामने आया. ये नाम उस समय के फ्रांस के एक प्रसिद्ध ओपेरा से प्रेरित है. साथ ही ये नाम देवी लक्ष्मी के भी बहुत करीब है. धन-धान्य की देवी और सुंदरता का प्रतीक. बस, नाम पर लग गई मुहर.

किराये के कैंपस से ऑपरेशन

लैक्मे ने मुंबई के पेडर रोड पर एक छोटे-से किराये के कैंपस से कामकाज शुरू किया. सौंदर्य प्रसाधन की तमाम चीजें बाजार में पेश कर दीं. 1960 आते-आते कंपनी का कारोबार इतना फैल गया कि उसे बड़े परिसर की जरूरत महसूस होने लगी. ये जल्द ही TOMCO की सेवरी फैक्ट्री में शिफ्ट कर दी गई. पेडर रोड कैंपस के मुकाबले तीन गुना बड़े क्षेत्र में. कमाल देखिए, बढ़ते कारोबार की वजह से ये जगह भी बहुत जल्द छोटी पड़ गई. अब कंपनी को और बड़ी जगह लेनी पड़ी, जहां प्रोडक्शन दो शिफ्ट में होने लगा.

सिमोन टाटा का योगदान

लैक्मे को नई ऊंचाई तक ले जाने में सिमोन टाटा का भी बड़ा योगदान रहा, जो कि नवल एच. टाटा की पत्नी थीं. इन्होंने 1961 में कंपनी की मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में कार्यभार संभाला. सिमोन टाटा को भारतीय स्त्रियों की सोच और सौंदर्य की परख तो थी ही, उन्हें बिजनेस में भी महारत हासिल थी. फिर क्या था, लैक्मे एक प्रतिष्ठित ब्रांड के रूप में स्थापित हो गया. उन्होंने कई साल तक कंपनी का नेतृत्व किया. 1982 में वो इसकी चेयरपर्सन बनीं.

लैक्मे की कामयाबी के पीछे क्या?

सवाल उठता है कि वो कौन-कौन-सी चीजें हैं, जो लैक्मे को मजबूती देती रहीं? इसकी फेहरिस्त बड़ी लंबी है. सेल्स ऑफिस, सेल्स पर्सन, डीलर और एजेंट के बीच एक मजबूत नेटवर्क. वक्त-वक्त पर बाजार में सर्वे. सर्वे के आधार पर नई रणनीति. कंपनी ने देश के हर उस शहर में अपने प्रोडक्ट भेजे, जिसकी आबादी तब 20 हजार या उससे ज्यादा थी. रिसर्च लगातार चलता रही. अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से क्वलिटी का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया. बाद में कंपनी ने पुरुषों के लिए भी प्रोडक्ट पेश किए, जिससे कंपनी को और ज्यादा बुलंदी मिली.

लैक्मे ने 1980 में पहली बार ब्रांडेड ब्यूटी सैलून खोला और इसका नेटवर्क तैयार किया. ब्यूटी स्कूल भी शुरू किया गया, जिसमें थ्योरी और प्रैक्टिस वाला 6 महीने का इंटेंसिव कोर्स कराया जाता है. कोर्स के बाद छात्रों को डिप्लोमा दिया जाता है.

अपने देश के लोग फिल्मी हीरो और हिरोइनों की कॉपी करने में देर नहीं लगाते. आम लोगों की इसी नब्ज को टटोलकर फिल्मों में भी लैक्मे के प्रोडक्ट का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया. टॉप की कई हिरोइन और मॉडल्स लैक्मे की ब्रांड एम्बेसडर बनीं. इनमें रेखा, हेमा मालिनी, ऐश्वर्या राय, करीना कपूर, कैटरीना कैफ जैसे नाम शामिल हैं.

लैक्मे आज कहां है?

साल 1993 में एक रणनीतिक सौदे में TOMCO का हिंदुस्तान यूनिलीवर (पूर्व में हिंदुस्तान लीवर) के साथ विलय हो गया. इसके बाद, 1996 में टाटा ग्रुप और हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL) के बीच लैक्मे में 50:50 की साझेदारी हो गई. दो साल बाद,1998 में लैक्मे की पूरी हिस्सेदारी हिंदुस्तान यूनिलीवर के पास आ गई. तब से लैक्मे, हिंदुस्तान यूनिलीवर का ही हिस्सा है.

लैक्मे का जलवा आज भी बरकरार है. यह 1,000 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार वाले हिंदुस्तान यूनिलीवर के 'क्लब ऑफ ब्रांड्स' में शामिल है. इसके पास 300 से ज्यादा प्रोडक्ट हैं. 70 से ज्यादा देशों में कारोबार फैला है. लैक्मे ब्रांड के तहत देशभर में पहले से 460 सैलून मौजूद हैं. कंपनी इसे और विस्तार देने की कोशिश कर रही है. 'लैक्मे फैशन वीक' की तो बात ही क्या! बस नाम ही काफी है.