...तो इस वजह से मोदी सरकार की गोल्ड बांड योजना हुई फेल

सरकार की बहु-प्रचारित सरकारी स्वर्ण बांड खरीद योजना से प्राप्त अंतिम राशि पर यदि नजर डालें तो यह योजना लोगों को आकर्षित करने में एक तरह से विफल रही है। इस योजना से करीब 150 करोड़ रुपये जुटाए जा सके। बैंकों ने इसके लिए ऊंचे निर्गम मूल्य को जिम्मेदार ठहराया है।

प्रतीकात्मक फोटो

सरकार की बहु-प्रचारित सरकारी स्वर्ण बांड खरीद योजना से प्राप्त अंतिम राशि पर यदि नजर डालें तो यह योजना लोगों को आकर्षित करने में एक तरह से विफल रही है। इस योजना से करीब 150 करोड़ रुपये जुटाए जा सके। बैंकों ने इसके लिए ऊंचे निर्गम मूल्य को जिम्मेदार ठहराया है। सरकारी बैंकों ने महत्वाकांक्षी सरकारी स्वर्ण बांड योजना के लिए सुस्त मांग के दूसरे कारणों में कई छुट्टियां पड़ना और सोने को लेकर जनता का लगाव बताया है।

यद्यपि रिजर्व बैंक ने औपचारिक तौर पर इस स्कीम के तहत जुटाई गई कुल राशि का खुलासा नहीं किया है। बैंकों ने जुटाई गई कुल राशि करीब 150 करोड़ रुपये होने का अनुमान जताया है।

बाजार से अधिक कीमत पर क्यों होगी सोने की खरीद?
एक सरकारी बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘ अनुमान से कम संग्रह का प्रमुख कारण इसका ऊंचा निर्गम मूल्य है। आरबीआई ने 2,684 रुपये प्रति ग्राम का मूल्य रखा था, जबकि बाजार में सोने की कीमत कम है। ऐसे में कोई व्यक्ति इसे ऊंचे मूल्य पर क्यों खरीदेगा।’ उसने कहा कि उनके बैंक ने इस योजना से करीब 50 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन वह इसका केवल 20 प्रतिशत जुटा सका।

सोने की पूजा होती है, उसे खरीदने से नहीं रोक सकते
बाजार विशेषज्ञों ने कहा कि बाजार मूल्य पर 4-5 प्रतिशत प्रीमियम खरीदारों को स्वीकार्य नहीं है, इसलिए मांग सुस्त रही। एक अन्य सरकारी बैंक के अधिकारी ने कहा, ‘ हमारे देश में लोग धनतेरस पर सोने की पूजा करते हैं। धनतेरस सोना खरीदने के लिए एक शुभ दिन है। हम खुद को सोना खरीदने से नहीं रोक सकते।’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोने की मांग में कमी लाने और घरों व मंदिरों में बेकार पड़े 800 अरब डालर मूल्य के 20,000 टन सोने को बाहर लाने के लिए 5 नवंबर को तीन महत्वाकांक्षी योजनाएं पेश की थीं। यह योजनाएं थीं- सरकारी स्वर्ण बांड, स्वर्ण मौद्रिकरण और भारतीय स्वर्ण सिक्का योजना।

लेखक Reported by Bhasha