सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के प्रस्ताव को 'अपमानजनक' बताते हुए खारिज किया

सहारा ने 2,500 करोड़ रुपये तीन दिन के अंदर और 17,400 करोड़ रुपये 15 महीने में किश्त में देने का प्रस्ताव रखा था। वहीं सेबी ने कोर्ट के सामने कहा कि सहारा को 37,000 करोड़ रुपये लौटाने हैं। कोर्ट ने सहारा की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि पैसे वापस करने के लिए सुब्रत रॉय का जेल से बाहर आना जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने निवेशकों के 20 हजार करोड़ रुपए लौटाने के संबंध में सहारा समूह का प्रस्ताव आज ठुकरा दिया। न्यायालय ने कहा कि उसे कोई 'सम्मानजनक' प्रस्ताव पेश करना होगा।

सहारा समूह के मुखिया सुब्रत रॉय को अभी मंगलवार तक तिहाड़ जेल में ही रहना होगा, क्योंकि न्यायालय इस मामले में अब 11 मार्च को ही आगे विचार करेगा। शीर्ष अदालत ने इस बात पर नाराजगी जाहिर किया कि विशेष पीठ को उसके मामले पर विचार के लिए बैठना पड़ा, लेकिन उसने कोई ठोस प्रस्ताव पेश नहीं किया। न्यायालय ने कहा कि यह तो पीठ का 'अपमान' है।

न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की पीठ के सामने सहारा समूह ने कहा कि वह तीन दिन के भीतर 2500 करोड़ रुपए का नकद भुगतान करने के लिए तैयार है। समूह ने आश्वासन दिया कि बाकी के 14,900 करोड़ रुपए का भुगतान पांच किस्तों में जुलाई, 2015 के अंत तक कर दिया जाएगा।

सेबी ने भी इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि सहारा समूह को 17,400 करोड़ नहीं, बल्कि 34 हजार करोड रुपए का भुगतान करना है। सेबी का कहना था कि समूह 17,400 करोड रुपए का भुगतान करने के लिए तैयार हो गया था।

इस पर न्यायाधीशों ने कहा, 'यह सही प्रस्ताव नहीं है और प्रस्ताव सम्मानजनक होना चाहिए।' न्यायमूर्ति खेहड़ ने कहा, 'आपने हमे एकत्र (विशेष पीठ) किया और फिर आप कह रहे हैं कि आप धन देने की स्थिति में नहीं है। यह हमारा अपमान है। यह उचित नहीं है। आपको हमें एकत्र नहीं करना चाहिए था अगर आपके पास उचित प्रस्ताव नहीं था।

वरिष्ठ अधिवक्ता सीए सुंदरम ने न्यायालय को संतुष्ट करने का प्रयास किया कि राय के जेल में होने के कारण उनके लिए अधिक धन जुटाना संभव नहीं है और उनके लोगों का न्यायिक हिरासत में उनसे संपर्क हो पा रहा है। उन्होंने कहा, 'एक व्यक्ति जो धन की व्यवस्था कर सकता है वह इस स्थिति में नहीं है। सिर्फ वही धन की व्यवस्था कर सकते हैं। यदि उन्हें बाहर आने दिया गया, तो वही कुछ रास्ता निकाल सकते हैं। हमें भी उनसे मुलाकात की अनुमति नहीं है।'

इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि रॉय के वित्तीय सलाहकार और वकीलों को हिरासत में उनसे मुलाकात की व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि धन का भुगतान करने से बचने का कोई रास्ता नहीं है।

न्यायाधीशों ने कहा, 'पिछले डेढ़ साल से वह (रॉय) बाहर थे और वह पिछले कुछ दिन से ही जेल में हैं। हम मुलाकात की व्यवस्था कर सकते हैं, लेकिन आपको धन का भुगतान करना होगा।'

इसके बाद न्यायालय ने रॉय के वित्तीय सलाहकार और वकीलों को रोजाना सुबह दस बजे से दोपहर बारह बजे तक उनसे मुलाकात की अनुमति देने का आदेश दिया।

एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर प्रसाद ने दावा किया कि समूह के खिलाफ किसी भी निवेशक ने शिकायत नहीं की है और न्यायालय को इस पहलू पर भी विचार करना चाहिए कि यह सहारा समूह के 14 लाख कर्मचारियों की आजीविका का मसला है।

इस पर न्यायाधीशों ने सवाल किया, 'क्या कोई असली निवेशक है।' इस मसले का सुबह न्यायमूर्ति राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन की पीठ के समक्ष उल्लेख किया गया था, लेकिन न्यायालय ने प्रस्ताव पर गौर करने से इनकार कर दिया था क्योंकि इसकी प्रति सेबी को नहीं दी गई थी।

लेखक NDTV Profit Desk
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