टेलीकॉम कंपनियों सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया (Vi) और टाटा टेलीसर्विसेज की उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें उनके एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) बकाया से जुड़े ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज माफ करने की मांग की गई थी. जस्टिस जे बी पारदीवाला की अगुवाई वाली बेंच ने आज अपने फैसले में कहा कि याचिकाओं को 'गलत तरीके से तैयार' किया गया है.
45,000 करोड़ छूट की मांग की थी
वोडाफोन आइडिया ने गंभीर वित्तीय संकट का हवाला देते हुए और अस्तित्व को बनाए रखने के लिए AGR से जुड़ी देनदारियों में 45,000 करोड़ रुपये की छूट की मांग की थी. भारती एयरटेल ने भी इसी तरह की याचिका दायर करते हुए राहत की मांग की.
भारती एयरटेल ने अपनी यूनिट भारती हेक्साकॉम के साथ मिलकर अपनी याचिका में ब्याज और जुर्माने से संबंधित बकाया राशि में 34,745 करोड़ रुपये की छूट की अपील की थी. याचिका में दावा किया गया है कि 1 सितंबर, 2020 को AGR पर सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले ने पूरे टेलीकॉम सेक्टर पर काफी वित्तीय दबाव डाला है.
'सरकार मदद करने के लिए आजाद'
वोडाफोन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी से पीठ ने कहा, 'हमारे सामने आई इन याचिकाओं से हम वाकई हैरान हैं. एक मल्टीनेशनल कंपनी से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती. हम इसे खारिज कर देंगे'.
बेंच ने कहा कि ये मामला कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है और न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने वोडाफोन आइडिया से कहा, 'हमें इसमें पक्ष न बनाएं'.
वोडाफोन आइडिया ने तर्क दिया कि उसने पहले ही लगभग 50,000 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है और ये भी बताया कि सरकार के पास अब कंपनी में लगभग 50% हिस्सेदारी है. तब कोर्ट ने कहा कि सरकार सपोर्ट करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन न्यायपालिका उसे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती.
कोर्ट ने कहा कि दूरसंचार ऑपरेटर अन्य कानूनी उपायों की तलाश कर सकते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जरिए नहीं.
रोहतगी ने पहले कहा था कि दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए याचिकाकर्ता कंपनी का अस्तित्व महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि हाल ही में ब्याज बकाया के इक्विटी में बदलने के बाद अब केंद्र के पास कंपनी में 49% हिस्सेदारी है. कंपनी की याचिका में कहा गया है, 'मौजूदा रिट याचिका फैसले की समीक्षा की मांग नहीं करती है, बल्कि फैसले के तहत ब्याज, जुर्माने और जुर्माने के ब्याज के भुगतान की कठोरता से छूट मांगती है'
इसलिए याचिकाकर्ता ने केंद्र को 'निष्पक्ष और जनहित में कार्य करने' और 'AGR बकाया पर ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज के भुगतान' पर जोर न देने के लिए उचित निर्देश देने की मांग की.