10 में से 7 लोग अपनी नौकरी से खुश नहीं! 54% क्‍यों छोड़ना चाहते हैं अपनी जॉब? कारण से लेकर उपाय तक, हर डिटेल यहां

63% लोगों का कहना है कि वर्कप्‍लेस पर कनफ्लिक्‍ट, सहकर्मियों (Jobmates) के साथ सहयोग में बड़ी बाधा है.

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देश में 10 में से 7 नौकरीपेशा लोग अपनी जॉब से खुश नहीं हैं. वहीं आधे से ज्‍यादा लोग नौकरी छोड़ने के बारे में विचार कर रहे हैं. हैप्‍पीएस्‍ट प्‍लेसेस टू वर्क की रिपोर्ट 'हैप्‍पीनेस एट वर्क' (Happiness at Work) के मुताबिक, 70% भारतीय कर्मी अपनी नौकरी से असंतुष्‍ट हैं.

रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि एक ही एज ग्रुप के लोगों में उनके काम को लेकर संतुष्टि का लेवल काफी अलग है. देश के अलग-अलग हिस्‍साें और अलग-अलग इंडस्‍ट्री सेक्‍टर्स में भी महिला-पुरुष कर्मियों के बीच उनकी जॉब को लेकर हैप्‍पीनेस में काफी अंतर है.

फिनटेक में 40% कर्मी जॉब से खुश

रिपोर्ट से पता चलता है कि फिनटेक सेक्‍टर में सबसे ज्‍यादा कर्मी अपने काम से खुश हैं. इनकी संख्‍या 40% है. इसका मतलब ये भी हुआ कि बाकी 60% कर्मी अपनी जॉब से खुश नहीं हैं या फिर संतुष्‍ट नहीं हैं.

फिनटेक के बाद बायोटेक्‍नोलॉजी (39%) और IT (38%) सेक्‍टर की स्थिति ठीक है. बैंकिंग, इंश्‍योरेंस, फाइने‍ंशियल सर्विसेज और FMCG सेक्‍टर में 30% लोग अपनी जॉब से खुश हैं, जबकि 70% नाखुश हैं.

सबसे बुरी स्थिति रियल एस्‍टेट और कंस्‍ट्रक्‍शन सेक्‍टर की है, जहां महज 20% लोग ही अपनी जॉब से खुश हैं, ज‍बकि 80% लोग अपनी नौकरी से खुश नहीं हैं.

नीचे बाकी सेक्‍टर्स का भी हाल देख लीजिए.

जॉब छोड़ना चाहते हैं 54% लोग

सर्वे में शामिल लोगों के मुताबिक, उनमें काम को लेकर पर्सनल संतुष्टि का लेवल कम है. वहीं सपोर्ट सिस्‍टम का पर्याप्‍त न होना इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे सकती है. RPG ग्रुप के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने इस सर्वे रिपोर्ट की भूमिका लिखी है. उनका मानना है कि कर्मियों का नौकरी से संतुष्‍ट होना कंपनी के लिए भी अच्‍छा है.

ये रिपोर्ट एक बुनियादी सच्‍चाई को उजागर करती है. अपने काम से खुश रहने वाले कर्मियों की प्रोडक्टिविटी ज्‍यादा होती है. वे ज्‍यादा व्‍यस्त होते हैं और वर्कप्‍लेस के प्रति ज्‍यादा प्रतिबद्ध होते हैं. यानी ज्‍यादा से ज्‍यादा कर्मी खुश रहें तो कंपनी की प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी.
हर्ष गोयनका, चेयरमैन, RPG Group

क्‍यों जॉब छोड़ना चाहते हैं लोग?

  • 63% लोगों का कहना है कि वर्कप्‍लेस पर कनफ्लिक्‍ट, सहकर्मियों (Jobmates) के साथ सहयोग में बड़ी बाधा है. सौहार्द में कमी आती है और टीमवर्क ज्‍याादा मुश्किल हो जाता है और ऐसे में ओवरऑल मोरल डाउन होता है.

  • 62% कर्मचारी काम पर अपने विचार खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते. स्वतंत्र रूप से राय व्यक्त करने में असमर्थता एक निगेटिव वर्क कल्‍चर बनाती है, जिससे कर्मचारी अलग-थलग महसूस करते हैं.

  • कर्मियों को पर्सनल इंटरेस्‍ट के लिए समय नहीं मिलता. अगर ऐसा हो तो 60% कर्मी जॉब छोड़ने का इरादा छोड़ देंगे.

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  • कर्मियों को उनके काम के लिए एप्रीशिएट नहीं किया जाता. ऐसा किया जाए तो स्थिति 62% तक सुधर सकती है.

  • जॉब को लेकर अनिश्चितता बड़ी चिंता का विषय है. ऐसी स्थिति में शांत रहने वाले 63% कर्मी जॉब छोड़ने का इरादा नहीं करते.

  • काम या रोल को लेकर आजादी नहीं मिलती. फ्री हैंड छोड़ा जाए तो नौकरी छोड़ने का इरादा 60% तक कम हो सकता है.

मिलेनियल्‍स सबसे ज्‍यादा असंतुष्‍ट

मिलेनियल्स यानी 28-44 एज ग्रुप में नौकरी छोड़ने का इरादा सबसे ज्‍यादा 59% है. 80% मिलेनियल्स अक्‍सर कनफ्लिक्‍ट के चलते जॉबमेट्स के साथ काम करने से बचते हैं. 63% मिलेनियल्स को काम पर उनके योगदान के लिए पर्याप्त सराहना और सम्मान नहीं दिया जाता है. 59% मिलेनियल्स अपनी रुचि के लिए समय नहीं निकाल पाते.

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...तो आखिर कैसे सुधरेगी स्थिति?

  • सर्वे के निष्कर्ष बताते हैं कि वर्कप्‍लेस पर एक सहायक, समावेशी और सहयोगी वर्क कल्‍चर को बढ़ावा देना ही खुशी और संतुष्टि को बढ़ाने की कुंजी है.

  • जिस तरह महामारी के बाद नौकरीपेशा वर्ग की लाइफस्‍टाइल प्रभावित हुई है, ऐसे में वर्क आवर्स को लेकर थोड़ी ढील या लचीलापन भी जरूरी है.

  • हाइब्रिड या रिमोट वर्किंग ने लोगों को ट्रैवलिंग कॉस्‍ट और समय बचाने के साथ-साथ ट्रैफिक जाम से दूर रखने में मदद की है, ऐसे में वे थोड़ी ढील चाहते हैं.

  • किसी व्यक्ति को उसके शेड्यूल पर स्वायत्तता (Autonomy) की गहरी जरूरत होती है, ताकि वो जिम्‍मेदारी, संतुलन और प्रतिबद्धता के साथ काम पूरा कर सके.

  • 73% कर्मचारियों के लिए एक संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण संचार शैली महत्वपूर्ण है, जो पारस्परिक सम्मान और सपोर्ट वैल्‍यू को रेखांकित करती है.

  • ऑर्गनाइजेशन में बेहतर पारदर्शिता, सरल और आसान कम्‍यूनिकेशन, चुनौतियों से उबरने की सक्षमता और अपनेपन की भावना बेहद जरूरी बताई गई.

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