'इंटरनेशनल बैकलॉरिएट' क्या है, जिसका क्रेज बढ़ता जा रहा है?
IB. सिर्फ इतना ही लिखा हो, तो अपने यहां ज्यादातर लोग इसे 'इंटेलिजेंस ब्यूरो' समझ लें. लेकिन यहां जिस IB पर चर्चा होने वाली है, वो है 'इंटरनेशनल बैकलॉरिएट' (International Baccalaureate). एक संस्थान, एक एजुकेशन सिस्टम, जो 'अंतर्राष्ट्रीय स्तर का' है. भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों के हजारों स्कूल इससे जुड़े हैं. लेकिन इन IB स्कूलों का सिस्टम क्या है? इनमें बच्चों को पढ़ाने का फायदा क्या है? अपने देश में कितने स्कूल IB से जुड़े हैं और यहां फीस कितनी ली जाती है? आइए, ऐसे ही कई सवालों पर विस्तार से बात करते हैं.
इंटरनेशनल बैकलॉरिएट (IB) क्या है?
1968 में स्विट्जरलैंड के जिनेवा में एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में इसकी स्थापना हुई थी. मकसद था बच्चों को एक ऐसी शिक्षा-व्यवस्था से जोड़ना, जहां उनकी सोचने-समझने की क्षमता का भरपूर विकास हो. जहां उन्हें सिर्फ किताबी ज्ञान ही न मिले, बल्कि किसी भी चीज के व्यावहारिक पक्ष को लेकर भी समझ विकसित हो. पहले इसे 'इंटरनेशनल बैकलॉरिएट ऑर्गनाइजेशन' (IBO) कहा जाता था. अब सीधे IB कहते हैं.
IB एक प्राइवेट इंटरनेशनल बोर्ड है, जिससे जुड़े सारे स्कूलों में पाठ्यक्रम करीब-करीब एक जैसा है. इसके सर्टिफिकेट की मान्यता भी इंटरनेशनल लेवल पर है. यह 3 साल से लेकर 19 साल तक के स्टूडेंट को अलग-अलग कोर्स के हिसाब से शिक्षा मुहैया कराता है. भारत के चुनिंदा स्कूल इस बोर्ड से संबद्ध हैं.
IB से संबद्ध कहां, कितने स्कूल?
इंटरनेशनल बैकलॉरिएट की वेबसाइट ibo.org पर तमाम आंकड़े मौजूद हैं. इसके मुताबिक, पूरी दुनिया की बात करें, तो 160 देशों में IB के 5,500 स्कूल हैं. 19 लाख से ज्यादा स्टूडेंट शिक्षा पा रहे हैं. IB से जुड़ने से स्कूलों की भी प्रतिष्ठा बढ़ती है, इसलिए इसकी संबद्धता पाने वाले स्कूलों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. IB स्कूलों के मामले में भारत टॉप 5 देशों में शामिल है. आज की तारीख में भारत के 209 स्कूल इससे संबद्ध हैं. टॉप 5 में आने वाले देशों और IB स्कूलों की संख्या पर एक नजर:
IB स्कूल वाले टॉप 5 देश
अमेरिका- 1935
कनाडा- 377
चीन- 267
ऑस्ट्रेलिया - 215
भारत- 209
(स्रोत: ibo.org)
भारत में कैसे हुई शुरुआत?
भारत में IB ने 1976 में अपनी जगह बनाई, जब कोडैकनाल का कोडाई स्कूल इस बोर्ड से जुड़ गया. इस संस्थान को अब कोडैकनाल इंटरनेशनल स्कूल कहा जाता है. यहां IB डिप्लोमा प्रोग्राम और मिडिल स्कूल प्रोग्राम चल रहे हैं.
देश में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद जब संपन्नता बढ़ी, तो इस ओर लोगों का रुझान बढ़ा. हालांकि हाल के एक-डेढ़ दशक में इसका ग्राफ काफी तेजी से ऊपर गया है. देश में मुंबई और बेंगलुरु में सबसे ज्यादा IB स्कूल हैं. इनके बाद हैदराबाद, चेन्नई और पुणे का नंबर आता है. राजधानी दिल्ली छठे नंबर पर है.
IB स्कूलों में पढ़ने का फायदा?
जब इससे संबद्ध दुनियाभर के स्कूलों में सिलेबस एक जैसा होगा, पढ़ाई-लिखाई का ढंग-ढर्रा एक जैसा होगा और इसके सर्टिफिकेट की मान्यता 'इंटरनेशनल लेवल' पर होगी, तो इसके लिए आकर्षण होना स्वाभाविक है. ऐसे कई अभिभावक होंगे, जो आज भारत या किसी अन्य देश में रह रहे हैं, कुछ समय बाद में वे किसी और देश में काम कर रहे होंगे. स्थान का बदलाव कितनी बार होना है, ये भी तय नहीं. ऐसी स्थिति में IB जैसे बोर्ड की अहमियत सामने आती है. जाहिर है, जब बोर्ड ही एक होगा, तब ट्रांसफर के बाद स्टूडेंट के एडमिशन में कोई दिक्कत नहीं होगी. छात्र भी नई जगह जाकर वहां के माहौल में ढलने में बेहद कम वक्त लेंगे.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान का एक और बड़ा फायदा है. जो लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे स्कूलिंग के बाद विदेश जाकर पढ़ाई करें, उनके लिए IB बढ़िया प्लेटफॉर्म जैसा है. यहां से निकले बच्चों की सोच और शिक्षा का स्तर उन्हें विदेशी संस्थानों में पढ़ने के काबिल बनाते हैं. साथ ही कई विदेशी संस्थान IB के सर्टिफिकेट देखकर उन्हें प्राथमिकता देते हैं.
एक बुनियादी फायदा तो है ही कि बच्चों को किताबी रटंत ज्ञान देने की जगह उन्हें सोचने-समझने और नॉलेज के इस्तेमाल करने का हुनर सिखाया जाता है. जहां तक छात्र-शिक्षक अनुपात की बात है, भारत के ज्यादातर IB स्कूलों में यह रेश्यो 20:1 है. मतलब हर 20 स्टूडेंट पर एक टीचर. यह अन्य बोर्डों के मुकाबले काफी बेहतर कहा जाएगा.
कितने तरह के प्रोग्राम?
IB के चार तरह के कार्यक्रम हैं:
1. प्राइमरी ईयर्स प्रोग्राम (PYP)
यह 3-12 साल के बच्चों के लिए है. लक्ष्य है इस आयु-वर्ग में आने में छात्रों के लिए एक जैसा सामान्य पाठ्यक्रम तैयार करना, जो उनमें सीखने की ललक पैदा करे.
2. मिडिल ईयर्स प्रोग्राम (MYP)
यह 11-16 साल के छात्रों के लिए है. यह कार्यक्रम इस तरह बनाया गया है, जो छात्रों को उनकी पढ़ाई और वास्तविक दुनिया के बीच व्यावहारिक संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है. MYP पाठ्यक्रम के ढांचे में आठ विषय समूह शामिल हैं.
3. डिप्लोमा प्रोग्राम (DP)
यह 16-19 साल के स्टूडेंट के लिए है. इस कार्यक्रम का मकसद छात्रों को शारीरिक, बौद्धिक और भावनात्मक रूप से योग्य बनाना है. DP पाठ्यक्रम 6 विषय समूहों और कोर से बना है. छात्रों को 6 विषय समूहों में हरेक में से एक-एक विषय चुनना होता है. पहला ग्रुप सबके लिए अनिवार्य होता है. इनमें 'ज्ञान का सिद्धांत', रचनात्मकता, गतिविधि, सेवा और शोध-पत्र लिखना शामिल है. दरअसल, 'ज्ञान का सिद्धांत' मूल रूप से दर्शनशास्त्र का ही परिचय है.
जहां तक भारत की बात है, यहां सबसे लोकप्रिय यही डिप्लोमा कार्यक्रम है.
4. करियर रिलेटेड प्रोग्राम (CP)
यह 16-19 आयु-वर्ग के लिए है. यह प्रोग्राम छात्रों के करियर से जुड़ी जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है. इससे आगे की उच्च शिक्षा और रोजगार में मदद मिलती है. CP के स्टूडेंट कम से कम दो IB डिप्लोमा प्रोग्राम (डीपी) पाठ्यक्रम लेते हैं, जिनमें चार कंपोनेंट होते हैं.
IB स्कूलों की फीस कितनी है?
एक स्टडी के मुताबिक, दुनियाभर के IB स्कूलों की फीस में बड़ा अंतर देखा जाता है. भारत के उदाहरण से इस अंतर को समझा जा सकता है.
भारत के मेट्रो शहरों में IB स्कूलों की फीस 8-10 लाख रुपये सालाना है. मुंबई जैसे महानगरों में यह फीस 17-18 लाख रुपये भी हो सकती है. लेकिन यह अंतिम सीमा नहीं है. किसी प्रीमियर IB वर्ल्ड स्कूल में यह फीस 40 लाख रुपये सालाना तक जा सकती है. हालांकि इससे छोटे नगरों में छात्रों की फीस 2.5-3 लाख रुपये सालाना है, जो थोड़ी राहत की बात है.
IB स्कूलों की फीस ज्यादा रहने की वजह भी स्पष्ट है. एक तो IB के बोर्ड से संबद्धता हासिल करने के लिए स्कूलों को शुल्क के तौर पर भारी-भरकम रकम देनी पड़ती है. साथ ही इन स्कूलों को अंतरराष्ट्रीय मानकों पर भी खरा उतरना पड़ता है. इसके लिए उन्हें योग्य शिक्षक, स्टाफ से लेकर बुनियादी ढांचे तक पर बड़ा खर्च करना पड़ता है.
चुनौतियां और क्या-क्या हैं?
महंगी फीस की बात की जा चुकी है. लेकिन चुनौतियां और भी हैं. जहां तक भारत की बात है, यहां IB का डिप्लोमा कोर्स पॉपुलर तो है, लेकिन हर कोई डिप्लोमा लेकर सीधे विदेश की फ्लाइट पकड़ने में सक्षम हो नहीं सकता. ऐसे में छात्र मुश्किल में पड़ सकते हैं. IB स्कूलों से पढ़ने के बाद फिर भारत में ही उपलब्ध उच्च शिक्षा से तालमेल बिठाना कइयों को असहज लग सकता है. आंकड़े बताते हैं कि करीब 20-30 फीसदी छात्र भारत में ही रह जाते हैं, क्योंकि वे विदेश जाकर पढ़ाई करने में समर्थ नहीं होते.
पिछले साल दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन ने IB के साथ एक समझौते पर दस्तखत किए थे. मकसद था दिल्ली सरकार के 30 स्कूलों में एक साल के लिए IB पाठ्यक्रम को अपनाना. महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसी ही सुगबुगाहट देखी गई थी. अगर आने वाले समय में इसी तरह की पहल कुछ अन्य राज्यों के बोर्ड की ओर से भी होती है, तो शायद IB और भीतर तक अपनी पैठ बना पाए.