मार्केट रेगुलेटर SEBI ने F&O ट्रेडिंग को लेकर नियमों में जो सख्ती की है, उसका असर किस तरह से और किस पर पड़ेगा, इसे लेकर कई तरह के विचार सामने आ रहे हैं. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि नए प्रतिबंधों से रिटेल निवेशक जिनका पूंजी आधार कम है, वो इससे दूरी बनाएंगे, जिसका वॉल्यूम पर पड़ेगा.
एक्सिस सिक्योरिटीज के टेक्निकल और डेरिवेटिव्स के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट राजेश पालविया ने NDTV प्रॉफिट को बताया, ये फैसला पहले से ही तय था, आगे चलकर ऑप्शंस ट्रेडिंग में वॉल्यूम घटने की संभावना है.
SEBI की ओर से किया गया एक बड़ा बदलाव अपफ्रंट कलेक्शन को लेकर है. SEBI ने बायर्स से अपफ्रंट से ऑप्शंस प्रीमियम लेना अनिवार्य कर दिया है. इससे जो अनाप शनाप इंट्राडे लेवरेज दिया जाता है, वो बंद होगा. SEBI ने अपने सर्कुलर में कहा है कि 'ट्रेडिंग मेंबर या क्लियरिंग मेंबर की ओर से ऑप्शंस खरीदारों से ऑप्शंस प्रीमियम का अपफ्रंट कलेक्शन अनिवार्य करने का फैसला लिया गया है.' ये नियम फरवरी, 2025 से लागू हो जाएगा.
'जुआ' खेलने की लत दूर नहीं होगी
तो क्या SEBI के नए सख्त कदमों से सबकुछ सही हो जाएगा, क्या रिटेल ऑप्शंस ट्रेडर्स तुरंत ही इससे दूर हो जाएंगे. मार्केट एक्सपर्ट सुनील सुब्रमण्यम का मानना है कि इन नियमों के बाद F&O में लागत के साथ-साथ नुकसान की सीमा भी बढ़ेगी, लेकिन 'सट्टेबाज' बाजार में बने रहेंगे. NDTV प्रॉफिट से बात करते हुए उन्होंने इसकी तुलना जुए पर नियमों से की. उन्होंने कहा कि कोई भी प्रतिबंध जुआरी को जुआ खेलने से नहीं रोक सकता है. जुए की लत की वजह से उसका नुकसान बढ़ जाएगा, लेकिन उन्हें ये जुआ खेलने से नहीं रोका जा सकता है. मुझे (गतिविधि में) किसी भी बड़ी गिरावट की कोई उम्मीद नहीं है.' उन्होंने कहा कि रिस्क और बढ़ गया है, इसलिए वो और ज्यादा इनाम की उम्मीद लगाकर चलेंगे. जुआरी की आदत कभी दूर नहीं होगी.
कैलेंडर स्प्रेड के नियम बदलने का क्या फायदा
F&O की स्ट्रैटेजी में कैलेंडर स्प्रेड का बहुत इस्तेमाल होता है. इसमें निवेशक अलग अलग डिलिवरी डेट्स पर एक ही अंडरलाइंग एसेट्स में लॉन्ग और शॉर्ट दोनों ही पोजीशन एक साथ ले सकता है. पालविया का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी डेट पर कैलेंडर स्प्रेड हटाने से रिटेल निवेशकों और अनुभवी खिलाड़ियों के बीच एक लेवल प्लेइंग फील्ड बनेगा, क्योंकि इसमें ऊंचे मार्जिन की जरूरत पड़ेगी. उन्होंने कहा कि कैलेंडर स्प्रेड का इस्तेमाल वो निवेशक करते हैं, जो साधन संपन्न होते हैं, जो एल्गो ट्रेडिंग स्ट्रैटिजीज का इस्तेमाल करते हैं और पूर्व निर्धारित प्रोग्रामिंग का इस्तेमाल करके ट्रेड लेते हैं, अब वो ऐसा नहीं कर पाएंगे.
डिस्काउंट ब्रोकर्स पर पड़ेगा असर
इसके अलावा SEBI ने कई और नियमों को सख्त किया है. जैसे- SEBI ने इंडेक्स डेरिवेटिव के लिए न्यूनतम कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ाकर 15 लाख रुपये कर दिया है. स्टॉक एक्सचेंजों को केवल एक बेंचमार्क इंडेक्स पर वीकली एक्सपायरी डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स की अनुमति होगी, जिससे एक्सपायरी वाले दिन में सट्टा ट्रेडिंग और अस्थिरता कम हो जाएगी. ये नियम 20 नवंबर से लागू होंगे.
इन बदलावों का सीधा असर डिस्काउंट ब्रोकर्स पर पड़ेगा. मार्केट एक्सपर्ट सुनील सुब्रमण्यम का कहना है कि इन बदलावों से डिस्काउंट ब्रोकर्स के ऑपरेटिंग मार्जिन पर असर पड़ेगा, जिन्होंने बड़े पैमाने पर इक्विटी ट्रेडिंग को कॉस्ट फ्री रखा है, लेकिन डेरिवेटिव में चार्ज पर निर्भर हैं. उन्होंने कहा, निश्चित तौर पर डिस्काउंट ब्रोकरों और एक्सचेंजों पर असर पड़ेगा और री-रेटिंग भी हो सकती है.'