भारत की ब्लू चिप कंपनियों के प्रोमोटर्स (Promoters) ने जून तिमाही में हिस्सेदारी घटाई है. लेकिन उन्होंने ओवरऑल लिस्टेड यूनिवर्स में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है.
NSE निफ्टी 50 कंपनियों के प्रोमोटर्स ने जून तिमाही में अपनी हिस्सेदारी में करीब 50 बेसिस पॉइंट्स यानी 0.5% तक घटा दी है. NSE से डेटा के मुताबिक प्राइवेट प्रोमोटर ऑनरशिप गिरकर 17 तिमाही के सबसे निचले स्तर 29.3% पर पहुंच गई है.
कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी में गिरावट से असर
अप्रैल-जून अवधि में फॉरेन प्रोमोटर ऑनरशिप 13 बेसिस पॉइंट्स घटकर 6.2% पर पहुंच गई है, जो 9 तिमाही का सबसे निचला स्तर है. कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी में गिरावट ने इसमें बड़ा योगदान दिया है. पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग शेयरों ने ब्रॉडर इंडेक्स के मुकाबले आउटपरफॉर्म किया है. सरकारी प्रोमोटर ऑनरशिप बढ़कर 18 तिमाही की ऊंचाई पर पहुंच गई है.
NSE लिस्टेड कंपनियों में प्रोमोटर की हिस्सेदारी बढ़कर सात तिमाही के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है. इसमें सरकारी और विदेशी प्रोमोटर की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी ने मुख्य योगदान दिया है. ओवरऑल लिस्टेड कंपनियों को देखें तो इनमें प्राइवेट भारतीय प्रोमोटर ऑनरशिप लगातार दूसरी तिमाही में घटी है.
एक्सपर्ट ने क्या बताईं वजहें?
वेल्थमिल्स सिक्योरिटीज प्राइवेट में इक्विटी स्ट्रैटजी के डायरेक्टर Kranthi Bathini ने कहा कि जब प्रोमोटर्स हिस्सेदारी बेचते हैं, तो कंपनी की कॉरपोरेट गवर्नेंस के मजबूत होने की संभावना रहती है. हालांकि उन्होंने कहा कि भारत में जब भी प्रोमोटर्स हिस्सेदारी घटाते हैं तो उसे आम तौर पर नकारात्मक बात माना जाता है.
लेकिन कौन खरीदारी कर रहा है, ये भी अहम है. प्राइम डेटाबेस के डेटा में दिखता है कि इंस्टीट्यूशनल इंवेस्टर्स को बेचने से गवर्नेंस और पारदर्शिता बढ़ती है. साल के पहले छह महीनों में प्रोमोटर्स ने 91,879 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं. जबकि 2023 में 1.26 लाख करोड़ रुपये के शेयरों की बिक्री की थी.
बेंचमार्क इंडेक्स में तेजी दिखी
भारत के बेंचमार्क इंडेक्स- निफ्टी और S&P सेंसेक्स इस साल अब तक 13.7% और 11.8% बढ़े हैं. इसी अवधि में NSE स्मॉलकैप 250 में 27.5% जबकि मिडकैप में 26% की तेजी आई है. यानी बेंचमार्क एक्सचेंज के मुकाबले इनमें ज्यादा बढ़त है.
मिड-कैप बेंचमार्क की निफ्टी 50 और स्मॉल कैप स्टॉक्स से ज्यादा वैल्यू है. उसमें दिक्कतों के बावजूद बढ़त देखने को मिली है. निफ्टी के प्राइस टू इक्विटी रेश्यो की वैल्यू 24 है. जबकि स्मॉल कैप और मिड कैप की वैल्यू क्रमश: 33.07 और 45.3 है.
कुल मिलाकर, ये लंबी अवधि के लिए पॉजिटिव है. Bathini ने कहा कि हमें केस टू केस बेसिस पर देखने की जरूरत है, कि किस तरह के निवेशक ऑनबोर्ड हो रहे हैं. उन्होंने आगे ये भी कहा कि प्रोमोटर्स ज्यादा रिटर्न हासिल करने के लिए बुलिश मार्केट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.