SEBI ने F&O यानी फ्यूचर्स और ऑप्शंस ट्रेडिंग के नियम सख्त कर दिए हैं. नए नियम 20 नवंबर से अलग-अलग चरणों में लागू होंगे. दरअसल इन नए नियमों से छोटे ट्रेडर्स बड़े नुकसान से बच पाएंगे. SEBI ने इंडेक्स वायदा के कॉन्ट्रैक्ट साइज, अपफ्रंंट प्रीमियम, एक्सपायरी के नियमों में बदलाव किया है.
कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ाया गया
F&O पर जारी नए सर्कुलर के मुताबिक कॉन्ट्रैक्ट साइज कम से कम 15 से 20 लाख रुपये का होगा. मतलब अब ट्रेडर को कम से कम 3 गुना पैसा ज्यादा लगाना होगा. ये नियम भी 20 नवंबर से लागू हो जाएगा. अभी कॉन्ट्रैक्ट साइज 5 से 10 लाख रुपये का है. कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ाने से ट्रेडर्स को पोजीशन लेने के लिए ज्यादा पैसा लगाना होगा, इससे वो कम लॉट में ट्रेड कर पाएंगे.
1 अप्रैल 2025 से इंट्राडे पोजीशन की लिमिट की भी निगरानी होगी. इसके उल्लंघन पर पेनल्टी देनी होगी.
एक्सचेंज को हर हफ्ते एक ही एक्सपायरी की इजाजत होगी. ये नियम भी 20 नवंबर से लागू होगा. मतलब NSE के 4 इंडेक्स की वीकली एक्सपायरी होती है, मगर सबसे ज्यादा ट्रेड निफ्टी और बैंक निफ्टी में होता है, आने वाले दिन में NSE को इन चारों में से एक को वीकली एक्सपायरी के लिए चुनना होगा. BSE के पास भी बैंकेक्स और सेंसेक्स के वीकली कॉन्ट्रैक्ट्स हैं. उसे भी इनमें से एक को चुनना होगा
अपफ्रंट प्रीमियम और वीकली एक्सपायरी
1 फरवरी 2025 से ऑप्शंस के खरीदार को अपफ्रंट प्रीमियम देना होगा. फिलहाल अपफ्रंट प्रीमियम ऑप्शंस सेलर (बेचने वाला) देता था, अब खरीदार को भी पूरा प्रीमियम अपफ्रंट देना होगा. इस फैसले से छोटे ट्रेडर बड़ा दांव नहीं लगा पाएंगे. इसका असर ये होगा कि अब ट्रेडर को कई गुना ज्यादा पैसा लगाना होगा.
कैलेंडर स्प्रेड का फायदा भी होगा खत्म
कैलेंडर स्प्रेड का फायदा भी 1 फरवरी 2025 से खत्म हो जाएगा. F&O पर नए नियमों से एक्सचेंजेज और ब्रोकर्स का बिजनेस प्रभावित होगा. कैलेंडर स्प्रेड के तहत दो अलग-अलग एक्सपायरीज में अपोजिट पोजीशंस ली जाती हैं.
एक्सपायरी के दिन टेल ऑप्शंस के जोखिम कवरेज में बढ़ोतरी
टेल ऑप्शंस एक ऐसा ऑप्शंस स्ट्राइक होता है, जिसके 'इन-द-मनी' जाने की संभावना बेहद कम होती है, इसका मतलब है कि शेयर या इंडेक्स का भाव उस स्ट्राइक तक आने की संभावना नहीं के बराबर होती है. दूसरे शब्दों में, शेयर या इंडेक्स का हाजिर भाव के ऑप्शन स्टाइक को हिट करने की संभावना नहीं होती, ऐसे ऑप्शंस को टेल ऑप्शंस कहते हैं. ट्रे़डर इन सस्ते ऑप्शंस पर बहुत दांव लगाते हैं. उन्हें हीरो या जीरो कह कर भी छोटे ट्रे़डर्स को फंसाया जाता है. इस कदम से ऑप्शंस ट्रेडर्स के साथ-साथ ब्रोकर्स के लिए भी जोखिम कम हो गया है. एक्सचेंजों और ब्रोकर पर इस फैसले का नहीं के बराबर असर होगा, लेकिन इनकी आय कुछ कम हो सकती है.
SEBI ने स्ट्राइक प्राइस पर कोई फैसला नहीं लिया है. दरअसल एक्सपर्ट्स ने स्ट्राइक प्राइस को सीमित करने का सुझाव दिया था.
नुकसान से बचेंगे छोटे ट्रेडर
दरअसल SEBI ने एक रिपोर्ट में बताया था कि F&O में FY22-FY24 के बीच 93% ट्रेडर्स को हुआ है. मतलब छोटे ट्रेडर्स को SEBI के नए नियमों के जरिए नुकसान से बचाया जा सकेगा. कॉन्ट्रैक्ट साइज बढ़ाने से भी F&O में छोटे ट्रेडर्स की भागीदारी कम होगी.