‘केवल आरोप या FIR के आधार पर घर नहीं गिरा सकते', बुलडोजर जस्टिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक; जारी किए सख्‍त दिशानिर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती. कानूनी प्रक्रिया को आरोपी के अपराध के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए.

Source: NDTV Profit Gfx

कथित ‘बुलडोजर जस्टिस’ मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सख्‍त टिप्‍पणियां की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी का घर सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता कि उस पर कोई आपराधिक आरोप है.  

बुलडोजर कार्रवाई पर सख्त निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी व्‍यक्ति पर कोई आरोप है तो आरोप में सच्‍चाई न्‍यायपालिका ही तय करेगी. 

‘कार्यपालिका, न्‍यायपालिका की जगह नहीं ले सकती’ 

सुप्रीम कोर्ट ने 'बुलडोजर कार्रवाई' के मुद्दे पर कड़ा रुख इख्तियार करते हुए सख्‍त टिप्‍पणी की. कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती. कोर्ट ने ये भी कहा कि कानूनी प्रक्रिया को आरोपी के अपराध के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए.

जस्टिस BR गवई और जस्टिस KV विश्वनाथन की बेंच ने आपराधिक आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. उत्तर प्रदेश समेत कई राज्‍यों में इस कार्रवाई को ‘बुलडोजर जस्टिस' कहा जाता है. 

हर परिवार का सपना होता है 'घर’ 

पिछले कुछ महीनों से इस मामले में सुनवाई चल रही है. पूर्व में सरकारी अधिकारियों ने तर्क दिया था कि ऐसे मामलों में केवल अवैध संरचनाओं को ही ध्वस्त किया गया है. जस्टिस गवई ने कहा कि हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना घर हो और कोर्ट के सामने एक महत्वपूर्ण सवाल ये है कि क्या कार्यपालिका को आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए. 

सुनवाई कर रही बेंच ने कहा, ‘कानून का शासन एक लोकतांत्रिक सरकार की नींव है... ये मुद्दा आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता से संबंधित है, जो ये अनिवार्य करता है कि कानूनी प्रक्रिया को आरोपी के अपराध के बारे में पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए.'

कानून व्‍यवस्‍था बनाए रखना सरकार की जिम्‍मेदारी 

कोर्ट ने कहा कि ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वो राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखे. ये राज्य की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को मनमाने कार्यों से बचाए. हमने संविधान के तहत दिए गए अधिकारों पर विचार किया है, जो नागरिकों को राज्य की मनमानी कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करते हैं.

कोर्ट ने साथ ही ये भी कहा कि सभी पक्षों सुनने के बाद हम आदेश जारी कर रहे हैं. फैसले को जारी करते समय सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले पर भी विचार किया है.

बुलडोजर कार्रवाई पर SC के दिशानिर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने स्‍पष्‍ट किया है कि केवल आरोप या FIR के आधार पर आरोपी का घर-मकान नहीं गिराया जा सकता. वहीं राज्‍य के अधिकारियों की ओर से चूंकि ये तर्क दिया गया था कि संरचना अवैध होने पर कार्रवाई की जाती है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए हैं. यानी अगर संरचना अवैध हो और बुलडोजर कार्रवाई जरूरी हो, तब भी इन दिशानिर्देशों का पालन करना जरूरी होगा. 

  • यदि मकान ध्‍वस्‍त करने का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए.

  • बिना अपील के रात भर ध्वस्तीकरण के बाद महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर देखना सुखद तस्वीर नहीं है.

  • बिना कारण बताओ नोटिस के ध्वस्तीकरण नहीं. सड़क, नदी तट आदि पर अवैध संरचनाओं को प्रभावित न करने के निर्देश.

  • मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा और अवैध संरचना के बाहर चिपकाया जाएगा. 

  • नोटिस से 15 दिनों का समय नोटिस तामील होने के बाद है. तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी. 

  • कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे. 

नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, निजी सुनवाई की तिथि और किसके समक्ष सुनवाई तय की गई है, निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल उपलब्ध कराया जाएगा, जहां नोटिस और उसमें पारित आदेश का विवरण उपलब्ध होगा.

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