दिल्ली सर्विस बिल राज्यसभा से भी पास, पक्ष में 131 और विपक्ष में पड़े 102 वोट

दिल्ली सर्विस बिल पहले ही लोकसभा से पारित हो चुका है. अब दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग की पूरी ताकत केंद्र द्वारा नियुक्त लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास रहेगी.

Source: Reuters

दिल्ली सर्विस बिल (Delhi Service Bill) सोमवार देर रात संसद से पारित हो गया है. राज्यसभा में हुई वोटिंग में बिल के पक्ष में 131 वोट पड़े, जबकि बिल के खिलाफ 102 वोट गए. ये बिल पहले लोकसभा से पारित हो चुका था.

अब संसद से पारित होने के बाद इस बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. वहां से अनुमति मिलने के बाद बिल कानून का रूप ले लेगा. इससे पहले सोमवार को इस बिल पर राज्यसभा में जमकर चर्चा हुई.

राघव चड्ढा बोले- राजनीतिक धोखा है ये बिल

आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने बिल का विरोध करते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा. उन्‍होंने कहा, 'इस बिल से केंद्र सरकार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के संघर्षों को मिट्टी में मिलाने के काम कर रही है.'

1989 से लेकर 2015 तक BJP दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करती आई. इन लोगों ने लंबा संघर्ष किया. और अंत में वो दिन आया जब वाजपेयी सरकार के डिप्‍टी PM लालकृष्ण आडवाणी सदन में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने वाला बिल लाए. उन्‍होंने कहा था कि दिल्ली को अधिकार देने की जरूरत है. लेकिन अब ये बिल उनके वर्षों के संघर्ष को मिट्टी में मिलाने का काम करता है.
राघव चड्ढा

क्‍या है दिल्‍ली सेवा बिल?

ये एक तरह से संशोधन बिल है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) बिल, 2023, उस अध्यादेश की जगह लेता है, जिसने दिल्ली सरकार से नौकरशाहों का नियंत्रण छीन लिया. ये बिल गुरुवार को विपक्ष के हंगामे और वॉकआउट के बीच लोकसभा में इसे ध्‍वनि मत से पारित किया जा चुका है.

बता दें कि केंद्र और अरविंद केजरीवाल सरकार के बीच 8 साल तक चली खींचतान के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 'चुनी हुई सरकार' को दिल्ली का बॉस बताया था. कोर्ट के फैसले के अनुसार, दिल्ली सरकार को अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिया गया था.

इसके बाद केंद्रीय कैबिनेट ने मई में एक अध्‍यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट दिया. इस अध्‍यादेश ने एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाया, जिसे दिल्ली में सेवारत अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर का काम सौंपा गया है. इसमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव सदस्य हैं जो इन विषयों पर वोटिंग कर सकते हैं. हालांकि अंतिम मध्यस्थ उपराज्यपाल होंगे.