Garlic Price Hike: टमाटर और प्याज के बाद अब लहसुन ने किचन का बजट बिगाड़ रखा है. देश भर में पिछले कुछ हफ्ते से लहसुन की कीमतों (Garlic Price) में तेजी का दौर जारी है. क्रिसमस, ईद और नए साल जैसे अवसरों और 14 जनवरी के बाद रिज्यूम होने वाले शादी सीजन में भी ये तेजी जारी रहने के आसार हैं.
लहसुन का मौजूदा भाव 3 महीने पहले के (130-150 रुपये/किलो) 2 गुना से भी ज्यादा हो गया है. दिल्ली-मुंबई समेत कई शहरों के खुदरा बाजारों में इन दिनों सामान्य लहसुन 280 से 300 रुपये/किलो, जबकि बढ़िया क्वालिटी का लहसुन 330 से 400 रुपये/किलो के भाव बिक रहा है. पिछले साल इसी सीजन के दौरान लहसुन 60 से 80 रुपये के भाव बिक रहा था.
थोक मंडियों में भी लहसुन के भाव में तेजी है. गार्लिक मर्चेंट एसोसिएशन के मुताबिक, दिल्ली की आजादपुर मंडी में लहसुन अभी 18,000 से 20,000 रुपये/ क्विंटल के भाव चल रहा है. खुदरा बाजार आते-आते कीमतें कुछ ज्यादा ही बढ़ जा रही है.
क्यों है लहसुन के भाव में तेजी?
सारा खेल 'डिमांड एंड सप्लाई' यानी मांग और आपूर्ति का है. दिल्ली के आजादपुर मंडी में गार्लिक मर्चेंट एसोसिएशन के महासचिव सन्नी लांबा ने NDTV Profit हिंदी से बातचीत में बताया कि एक तो ठंड का मौसम, दूसरा- फेस्टिव और शादी सीजन होने के चलते लहसुन की डिमांड बढ़ जाती है. डिमांड के हिसाब से सप्लाई भी होती रहे तो दिक्कत नहीं, लेकिन इन दिनों सप्लाई शॉर्ट है.
मध्य प्रदेश में सबसे अधिक उत्पादन, लेकिन...
लहसुन की खेती देश में मुख्य तौर पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, तमिलनाडु, राजस्थान और कर्नाटक में की जाती है, लेकिन मध्य प्रदेश लहसुन का सबसे बड़ा उत्पादक है. देश के कुल लहसुन उत्पादन 31.64 लाख टन का 62.85% अकेले मध्य प्रदेश के किसान उपजाते हैं.
लहसुन की खेती दो फसल सीजन, रबी और खरीफ में की जाती है. खरीफ सीजन में जून-जुलाई के महीने में इसके पौधे (बीज के रूप में) लगाए जाते हैं. सितंबर-अक्टूबर में कटाई होती है. फिर रबी सीजन के लहसुन की रोपाई सितंबर से नवंबर के बीच में होती है, जबकि इसकी कटाई फरवरी से मार्च के बीच की जाती है. लेकिन इस साल बुआई में ही देरी हुई है, जिसके चलते उत्पादन प्रभावित हुआ है.
देश की सबसे बड़ी लहसुन मंडी का हालहाल
मध्य प्रदेश के मंदसौर में देश की सबसे बड़ी लहसुन मंडी है. यहां लहसुन 12,000-15,000 रुपये/क्विंटल के भाव बिक रहा है. मंदसौर के किसान कन्हैयालाल पाटीदार बताते हैं कि किसानों के लिए लहसुन की खेती सट्टे की तरह है. औसतन 4 साल में एक साल तो भाव इतना गिरा होता है कि लहसुन फेंकना पड़ जाता है. दूसरे साल लागत ऊपर होती है. तीसरे साल ठीक-ठाक प्रॉफिट होता है और फिर चौथे साल बहुत ज्यादा मुनाफा होता है.
लहसुन की खेती का हिसाब-किताब समझ लीजिए
मंदसौर के किसान कन्हैयालाल ने बताया कि रबी सीजन में देसी बीज से बुआई करने पर खेती का खर्च औसतन 80 हजार/बीघा पड़ा है, जबकि उच्च क्वालिटी (ऊंटी वाले) बीज से बुआई पर खर्च औसतन 1 लाख/बीघा पड़ा है.
एक बीघे में औसतन 12 क्विंटल उपज मानें तो सामान्य लहसुन की लागत 67 रुपये/किलो और अच्छी क्वालिटी के लहसुन की लागत 83 रुपये/किलो आती है. ऐसे में 100 से 150 रुपये का बाजार भाव मिल जाए तो किसानों के लिए राहत रहेगी.
तो कब सस्ता होगा लहसुन?
किसानों का कहना है कि इस साल मध्य प्रदेश और उत्तर भारत के राज्यों में मॉनसून में हुई देरी और लहसुन के प्रति जोखिम के चलते इसकी रोपाई में देर हुई. इसलिए खरीफ की लहसुन सितंबर महीने के बजाय नवंबर के अंतिम सप्ताह में बाजार में आया.
अभी मार्केट में खरीफ सीजन के लहसुन हैं, जबकि बुआई में देरी होने के चलते रबी सीजन के लहसुन की सप्लाई में देर है. गार्लिक मर्चेंट एसोसिएशन के महासचिव सन्नी लांबा कहते हैं कि नई फसल जनवरी के अंत या फरवरी के शुरुआती हफ्ते में आएगी. फरवरी तक लहसुन का भाव कम होने की संभावना है.