Monsoon Updates: भारत में बीते 10 वर्षों में कैसा रहा मॉनसून, क्यों कराया लंबा इंतजार

भारत में बीते 10 सालों में मॉनसून के आगमन और प्रस्थान पर नजर डालें तो 2020 में मॉनसून 15 दिन देर से पहुंचा था.

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मॉनसून (Monsoon) ने दस्तक दे दी है. 4 जून के अनुमान से 3 दिन की देरी. आम तौर पर मॉनसून के दस्तक देने की तारीख 1 जून होती है. इससे आगे जितना वक्त बीतता है उसे हम देरी के रूप में देखते हैं. कह सकते हैं कि 2023 में मॉनसून ने हफ्ते भर की देरी के बाद दस्तक दी है. भारत में बीते 10 सालों में मॉनसून के आगमन और प्रस्थान पर नजर डालें तो 2020 में मॉनसून 15 दिन देर से पहुंचा था. इससे पहले 2014, 2017, 2019 और 2020 में मॉनसून 10 जून को पहुंचा था. बीते दस साल में सिर्फ 2015 और 2021 में मॉनसून समय पर यानी 1 जून को पहुंचा.

हम कह सकते हैं कि मॉनसून में देरी अब स्थायी भाव लेती दिख रही है. ऐसा क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रहा है. इस क्लाइमेट चेंज को भी हमें समझना होगा. हालांकि, यह बात गौर करने की है कि मॉनसून का प्रस्थान समय 28 से 29 सितंबर रहा है. केवल 2020 में यह तारीख 30 सितंबर हुई थी और 2016 में 26 सितंबर थी.

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मॉनसून के आगमन से है बारिश का रिश्ता

अगर मॉनसून के आगमन को बारिश की मात्रा से जोड़ें तो एक बात स्पष्ट है कि जब 1 जून को मॉनसून आता है तो बारिश 2021 में 109%, 2015 में 110% होता है. वहीं जब मॉनसून 15 जून को आता है तो बारिश 99% या फिर 11 जून को आने पर 100% बारिश होती है. मतलब मॉनसून में देरी से बारिश की मात्रा में 10% से 11% की कमी या बढ़ोतरी हो जाती है. इसका व्यापक असर कृषि पर निर्भर भारत में होता है.

भारत में खेती मॉनसून पर निर्भर रही है. सिंधु सभ्यता के समय से ही मॉनसून के प्रमाण मिलते हैं. मगर, अब मॉनसून के आने में देरी और बारिश की मात्रा में अंतर चिंता बनती जा रही है. मौसम विज्ञानी कहते हैं कि मॉनसून पर असर डालने वाले दो बड़े कारक हैं- अलनीनो और ला नीना. अलनीनो प्रभाव उस स्थिति को कहते हैं जब समुद्र से सटे हिस्से गर्म हो जाते हैं और वायु शुष्क होने लग जाती है. इससे आर्द्रता नहीं बन पाती और मॉनसून की गति थम जाती है. इसके विपरीत ला नीना वह प्रभाव है जो समुद्र से सटी हवा को नम या आर्द्र बना देती है. इससे मॉनसून बारिश कराते हुए आगे बढ़ने लग जाती है. इसके अलावा क्लाइमेट चेंज ने भी मॉनसून पर विपरीत असर डाला है.

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पेट भरता है मॉनसून

मॉनसून अच्छा हो तो चावल, गेहूं, कपास और दालों की फसलें बम्पर होती हैं. अगर मॉनसून खराब हो तो इसका उल्टा असर देखने को मिलता है. देश में बीते कई सालों से मॉनसून की अच्छी स्थिति ने अनाज के पैदावार को बेहतर बनाया है. देश की जीडीपी पर मॉनसून का प्रत्यक्ष प्रभाव रहता है. यही कारण है कि मॉनसून में देर होने की खबर मात्र से देशवासी चिंतित हो जाते हैं तो इसकी वजह यही है.

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मॉनसून में देरी और वर्षा की कमी के कारण सूखे की स्थिति का सामना भारत ने कई बार किया है. मॉनसून के कारण अत्यधिक बारिश भी बाढ़ का कारण होती है. बाढ़ के कारण समय-समय पर भयंकर विनाश के बावजूद हम मॉनसून का स्वागत करने को तैयार रहते हैं. अत्यधिक बारिश के कारण विपरीत परिस्थितियां तो हम झेल सकते हैं लेकिन कम बारिश के कारण सूखे की परिस्थिति झेलना बेहद दुष्कर कार्य होता है.

बीते एक दशक में मॉनसून की कमोबेस स्थिति संतोषजनक रही है. इसका असर अनाज के उत्पादन पर सीधा देखा जा सकता है. 2013-14 के बाद से 2022-23 तक अनाज का उत्पादन हमेशा बढ़ता रहा है. यह कभी घटा नहीं है. जहां 2013 में 252.3 मिलियन टन अनाज पैदा हुआ था, वहीं 2022-23 में अनुमानित उत्पादन 330.53 मिलियन टन पहुंच चुका है. हम उम्मीद कर सकते हैं कि इस साल भी मॉनसून देश में अनाज के उत्पादन में और बढ़ोतरी करने वाला है.