Dream Projects of Ratan Tata: नैनो से लेकर जानवरों के अस्पताल तक...इंसान हो या जानवर, रतन टाटा को हर किसी की फिक्र थी

रतन टाटा की कामयाबियां भले आसमान पर थीं, लेकिन नजरें हमेशा जमीन पर रही. हमेशा इस जुगत में लगे रहना जिससे किसी आम आदमी की जिंदगी बेहतर हो सके.

Source: Insta/Ratan Tata

रतन टाटा, कई दशकों तक ये नाम पूरी दुनिया में भारतीय उद्योग जगत का परिचायक रहा, लेकिन ये नाम सिर्फ एक विजनरी या उद्योगपति का नहीं, ये नाम एक ऐसे भावुक और संवेदनशील व्यक्ति का भी है, जिसकी दुनिया टाटा कंपनियों की बैलेंसशीट, उनके घाटे और मुनाफे की जद्दोजहद से काफी ऊपर थी. कामयाबियों के फलक छूने के बावजूद वो कभी भी करोड़पतियों की उस फेहरिस्त में अपना नाम नहीं देखना चाहते थे, जिसकी इच्छा आमतौर पर इतनी ऊंचाई पर पहुंचने वाले लोगों में आ ही जाती है.

नैनो: रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट

रतन टाटा की कामयाबियां भले आसमान पर थीं, लेकिन नजरें हमेशा जमीन पर रही. हमेशा इस जुगत में लगे रहना जिससे किसी आम आदमी की जिंदगी बेहतर हो सके. ये रतन टाटा ही थे, जिनका दिल स्कूटर पर सवार एक परिवार के चार लोगों को देखकर पसीज गया और उन्होंने 1 लाख में नैनो लॉन्च करने का फैसला किया. ये एक ऐसा प्रोजेक्ट था, जो रतन टाटा के दिल के बेहद करीब था. नफा-नुकसान से दूर रतन टाटा के लिए ये प्रोजेक्ट देश को कुछ लौटाने जैसा था.

नैना की परिकल्पना रतन टाटा ने साल 2000 के शुरुआत में ही कर ली थी, वो चाहते थे कि देश का मिडिल क्लास सड़क पर अपने परिवार के साथ सुरक्षित और एक आरामदायक सफर कर सके. किसी आम परिवार को लेकर इस कदर फिक्रमंद होना, यही तो थे रतन टाटा.

'नैनो को लेकर रतन टाटा ने कहा था कि जिस चीज ने मुझे वास्तव में प्रेरित किया, और इस तरह की गाड़ी का निर्माण करने की इच्छा जगाई, वो थी लगातार भारतीय परिवारों को स्कूटर पर देखना, शायद मां और पिता के बीच में बैठा बच्चा, जहां भी वे जा रहे थे, अक्सर फिसलन भरी सड़कों पर सवारी करते हुए. आर्किटेक्चर स्कूल में रहने का एक लाभ ये था कि जब मैं खाली होता था तो इसने मुझे डूडल बनाना सिखाया था. सबसे पहले हम ये पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि दोपहिया वाहनों को कैसे सुरक्षित बनाया जाए, डूडल चार पहिये बन गए, कोई खिड़कियां नहीं, कोई दरवाजे नहीं, बस एक बेसिक सी छोटी गाड़ी, लेकिन आखिरकार मैंने फैसला किया कि ये एक कार होनी चाहिए. नैनो, हमेशा हमारे सभी लोगों के लिए थी.

इसे रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाने लगा, जिसे रतन टाटा खुद किसी भी कीमत पर पूरा करना चाहते थे. वो दिन भी आया, रतन टाटा ने मार्च 2009 में लॉन्च किया. लेकिन नैनो का सफर कभी आसान नहीं रहा. पश्चिम बंगाल के जिस सिंगूर प्लांट में रतन टाटा ने नैनो को बनाने के लिए प्लांट लगाया था, वहां विपक्ष के विरोध की वजह से उन्हें प्लांट को गुजरात के साणंद में शिफ्ट करना पड़ा.

रतन टाटा नैनो को मिडिल क्लास की कार बनाना चाहते थे, लेकिन इसे 'Poor Man's Car' का टैग मिल गया, जिससे खरीदार दूर हो गए. एक समय के बाद धीरे धीरे करके ये कार जिस धूम से लॉन्च हुई थी, अतीत के पन्नों में कहीं गुम हो गई और अप्रैल 2020 में ही टाटा ने इसको बंद करने का फैसला किया. इस तरह रतन टाटा का एक सपना, जो भले ही बिजनेस के उसूलों पर खरा न हो, लेकिन इंसानियत के पैमाने पर 100 फीसदी खरा था, टूट गया. नैनो को 'Poor Man's Car' का टैग मिलने पर रतन टाटा ने खुद ये कहा था कि ये एक 'कलंक' जैसा है.

जानवरों के लिए वर्ल्ड क्लास अस्पताल

रतन टाटा की संवेदनशीलता सिर्फ इंसानों तक ही सीमित नहीं थी, उनका जानवरों को लेकर भी प्रेम जगजाहिर है, खासतौर पर कुत्तों को लेकर. अपने जीवन के अंतिम साल में भी, उन्होंने सपने देखने बंद नहीं किए, कुछ बदलाव करने का जुनून उम्र की दहलीजों को नहीं मानता, ये उन्होंने साबित कर दिया. उन्होंने मुंबई में स्मॉल एनिमल हॉस्पिटल की शुरुआत की, ये उनकी जिंदगी का आखिरी प्रोजेक्ट रहा. 98,000 वर्गफीट में बना ये अस्पताल 1 जुलाई 2024 को शुरू हुआ.

रतन टाटा की हर प्रेरणा के पीछे एक कहानी है. रतन टाटा को कुत्तों से बहुत प्रेम रहा है, उन्हें ये अस्पताल बनाने का ख्याल भी यहीं से आया, जब उनके एक प्यारे कुत्ते को ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी की जरूरत पड़ी. रतन टाटा को इसके लिए अमेरिका जाना पड़ा, लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी. इस घटना के बाद ही रतन टाटा ने तय किया कि वो भारत में एक विश्व स्तरीय जानवरों का अस्पताल बनवाएंगे. साल 2017 में इसे बनाने का ऐलान किया. पहले इसे नवी मुंबई में बनाने की योजना थी, लेकिन बाद में इसे महालक्ष्मी में बनाया गया, ताकि लोगों की पहुंच आसान हो सके.

ये एक ऐसा दौर है, जब इंसान का इंसान से जुड़ाव मुश्किल है, रतन टाटा इंसानियत की एक अलग ही पंक्ति में खड़े दिखाई दिए. दूसरों की जिंदगी को बेहतर बनाने का जुनून रतन टाटा के साथ उनकी आखिरी सांस तक रहा.

RIP - रतन टाटा