जिन शादियों को बचाना संभव न हो, अब सुप्रीम कोर्ट से मिलेगा तलाक, जानिए फैसला

बेंच ने कहा कि शादी को बचाना असंभव होने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से तलाक का आदेश दिया जाना अधिकार का विषय नहीं है बल्कि एक विवेक है जिसे बहुत सावधानी के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए

Source: Reuters

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तलाक (Divorce) को लेकर एक बेहद अहम फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिन शादियों को बचाना असंभव हो उन शादियों को सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके सीधा खत्म कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने ये फैसला दिया है.

विशेष शक्तियों का इस्तेमाल

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को मिली विशेष शक्ति का इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट शादी को खत्म करने का ऐसा आदेश दे सकता है. अपने फैसले में पीठ ने ये भी कहा कि आपसी सहमति से तलाक के लिए हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत 6 महीने के वेटिंग पीरियड की बाध्यता को भी सुप्रीम कोर्ट खत्म कर सकता है.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि शादी को खत्म करने के लिए दोनों पार्टियां सीधे सुप्रीम कोर्ट नहीं आ सकती हैं, संविधान के आर्टिकल 32 के तहत एक रिट याचिका दाखिल करके शादी तोड़ने की मांग कर सकती हैं. आर्टिकल 32 भारतीय नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित होने पर सुप्रीम कोर्ट से संवैधानिक उपाय हासिल करने का अधिकार देता है.

संविधान का आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित किसी भी मामले में 'पूर्ण न्याय' करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों संबंधित है. अनुच्छेद 142(1) के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश पूरे भारत में लागू होता है.

'ये अधिकार नहीं विवेक का विषय'

न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 (1), जो सर्वोच्च न्यायालय को पूर्ण न्याय करने के लिए "व्यापक और विशाल शक्ति" देता है, को वैध तरीके से और सावधानी के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए, क्योंकि यह फैसला पार्टियों के बीच मुकदमेबाजी को खत्म करता है.

बेंच ने कहा कि शादी को बचाना असंभव होने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से तलाक का आदेश दिया जाना अधिकार का विषय नहीं है बल्कि एक विवेक है जिसे बहुत सावधानी के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए, और ये देखना भी जरूरी है कि दोनों पक्षों के साथ 'पूर्ण न्याय' किया गया है.

अभी क्या है तरीका?

हिंदू विवाह सेक्शन 1955 के 13-B में आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया बताई गई है. जो ये कहता है कि दोनों पार्टियां जिला अदालत में अपनी शादी को खत्म करने के लिए याचिका दे सकती हैं. इसका आधार ये होना चाहिए कि पति और पत्नी दोनों साल भर या इससे अधिक समय से अलग रह रहे हों, या उनका साथ रहना संभव न हो, या फिर दोनों ने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला ले लिया है.

बेंच ने कहा कि इस विवेकाधीन शक्ति का इस्तेमाल पक्षों के साथ 'पूर्ण न्याय' करने के लिए किया जाना है, जिसमें यह कोर्ट संतुष्ट है कि स्थापित तथ्यों से पता चलता है कि विवाह पूरी तरह विफल हो गया है और इस बात की कोई संभावना नहीं है कि दोनों पक्ष साथ रह सकेंगी और औपचारिक रूप से इसे जारी रखना कानूनी संबंध अनुचित है.