Davos 2024: गौतम अदाणी बोले- नेट जीरो कार्बन फ्यूचर के लिए ग्रीन हाइड्रोजन ही विकल्‍प, बस कम करनी होगी लागत

WEF24: गौतम अदाणी का ब्‍लॉग 'Reducing costs: The key to Leveraging Green Hydrogen on The Road to Net Zero' शीर्षक से वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वेबसाइट पर पब्लिश हुआ है.

Source: Adani Group

Gautam Adani in World Economic Forum: अदाणी ग्रुप (Adani Group) के चेयरमैन गौतम अदाणी ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 54वीं सालाना बैठक में नेट जीरो कार्बन इमिशन (Net Zero Carbon Emissions) का लक्ष्‍य हासिल करने में ग्रीन हाइड्रोजन के महत्व पर जोर दिया. उन्‍होंने कहा कि ऐसा करना भारत और भारत जैसे देशों के लिए जरूरी है, जो एनर्जी इंपोर्ट पर काफी ज्‍यादा निर्भर हैं.

'Reducing costs: The key to Leveraging Green Hydrogen on The Road to Net Zero' शीर्षक से उनका ब्‍लॉग वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वेबसाइट पर भी पब्लिश हुआ है. इस ब्‍लॉग में उन्‍होंने रिन्यूएबल एनर्जी के भविष्य पर चर्चा करते हुए ग्रीन हाइड्रोजन को, जीवाश्‍म ईंधन के मुख्‍य विकल्‍प के तौर पर बेहद अहम बताया है.

न्‍यायसंगत समाधान पर जोर

पिछले दिनों संयुक्‍त राष्‍ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP28) में शीर्षक वक्‍तव्‍य में 'न्‍यायसंगत' शब्‍द को देख अदाणी उत्‍साहित हुए थे. अपने ब्‍लॉग में उन्‍होंने साल 2021 में लंदन में हुए ग्‍लोबल इन्‍वेस्‍टर समिट को याद करते हुए कहा, 'मैंने तब 'न्‍यायसंगत' परिवर्तन के बारे में बात की थी और अब पूरी दुनिया जिस तरह इसे आत्‍मसात कर रही है, ये देखना मेरे लिए उत्‍साहजनक है.

उन्‍होंने गुजरात के बिट्टा में 2021 में लगाए 40 मेगावाट के अपने पहले सोलर प्रोजेक्‍ट की चर्चा करते हुए कहा, 'तब टैरिफ 15 रुपये/kWh (किलोवाट-घंटा) था और पैनल इफिशिएंसी 14-15% थी. और आज प्‍लांट 23% पैनल इफिशिएंसी के साथ 1.99 रुपये/kWh की टैरिफ हासिल कर चुका है, जो देश में सबसे कम टैरिफ है. विज्ञान में प्रगति से दक्षता (Efficiency) में और सुधार होगा.'

ग्रीन हाइड्रोजन का महत्‍व

गौतम अदाणी ने अपने ब्‍लॉग में लिखा, 'सौर और पवन ऊर्जा जैसे रिन्यूएबल एनर्जीज ने एक लंबा सफर तय किया है. जब सूरज में चमक नहीं रहती या फिर हवा नहीं चल रही होती, उनकी प्रकृति के लिए एनर्जी स्‍टोरेज सॉल्‍यूशन की जरूरत होती है. ऐसे में रिन्यूएबल एनर्जी का इस्‍तेमाल कर हाइड्रो इलेक्‍ट्रोलिसिस से प्राप्‍त ग्रीन हाइड्रोजन, सटीक विकल्‍प है.

आगे उन्‍होंने लिखा, 'हाइड्रोजन को एक सदी से अधिक समय से संभावित एनर्जी स्‍टोरेज माध्यम के रूप में जाना जाता है. ये पानी के साथ मिलकर बिजली पैदा कर सकता है. ये टरबाइन को कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन के बिना चला सकता है. इसमें वेस्ट प्रोडक्ट के रूप में धुएं की जगह सिर्फ पानी का ही उत्सर्जन (एमिशन) होता है. ये उर्वरकों और रसायनों के लिए फीडस्टॉक है.'

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अदाणी ने लिखा, 'हालांकि, आज लगभग सभी हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) से पैदा होते हैं, जो हर साल लगभग 100 करोड़ टन CO2 के बराबर उत्सर्जन करते हैं. इसके विपरीत, ग्रीन हाइड्रोजन एक स्वच्छ ईंधन, एक स्केलेबल एनर्जी स्‍टोरेज सॉल्‍यूशन और एक जीरो-इमिशन इंडस्ट्रियल फीडस्टॉक है.'

उन्‍होंने आगे लिखा, 'इन भूमिकाओं को पूरा करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन के लिए, रिन्यूएबल एनर्जी की तरह ही प्रोडक्‍शन कॉस्‍ट में भी गिरावट होनी चाहिए. ऐसा तभी हो सकता है जब प्रोडक्‍शन की रिन्यूएबल कॉस्‍ट ग्रीन हाइड्रोजन की तुलना में तेजी से गिरे, ये देखते हुए कि ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में 60-70% का खर्च सिर्फ बिजली पर होता है.'

गौतम अदाणी ने अपने ब्‍लॉग में कहा, 'भारत के लिए, ग्रीन हाइड्रोजन एक घरेलू अवसर पेश करता है क्योंकि ये रिन्यूएबल एनर्जी के साथ-साथ अपनी इकोनॉमी से महंगी एनर्जी इंपोर्ट के बोझ को खत्‍म करने का विकल्‍प है.'

जीवाश्‍म ईंधन का कार्बन-न्‍यूट्रल विकल्‍प

गौतम अदाणी अपने ब्‍लॉग में कहते हैं, 'जिम्मेदार बिजनेस नेट जीरो की दिशा में कदम बढ़ाते हुए ऑपरेशन का इलेक्ट्रिफिकेशन कर रहे हैं, बायो-फ्यूल्‍स अपना रहे हैं और सक्रिय रूप से रिन्‍यूएबल एनर्जी की सोर्सिंग कर रहे हैं. इलेक्ट्रिक व्‍हीकल्‍स बेशक, कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में महत्वपूर्ण योगदान देंगे, लेकिन हैवी-ड्यूटी ट्रांसपोर्टेशन के लिए अन्य समाधानों की जरूरत है.'

उन्‍होंने लिखा, 'बायो-फ्यूल्‍स, जीवाश्म ईंधन का एक कार्बन-न्‍यूट्रल विकल्प है, लेकिन ये पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है. ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन में समाधान करने की क्षमता है. ये भारत में कई सेक्‍टर्स के लिए नेट-जीरो की जर्नी में महत्‍वपूर्ण हो सकता है. इसे व्‍यापक तौर पर अपनाया जाए, इसके लिए लागत मौजूदा 3-5 डॉलर/किलो से काफी कम होनी चाहिए. उत्‍पादन की घटती लागत (1 डॉलर/किलो) के साथ ये जीवाश्‍म ईंधन का स्‍वच्‍छ विकल्‍प बन जाएगा.'

(प्रतीकात्मक तस्वीर/Source: Canva)

उत्पादन की चुनौतियों पर काबू पाना

गौतम अदाणी ने ग्रीन हाइड्रोजन के इस्तेमाल को व्यावहारिक (Viability) बनाने को भारत के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक बताते हुए लिखा, 'यहां प्रमाणित भंडार (Significant Proven Sequestration Reserves) का अभाव है. जिससे कार्बन कैप्चर और स्‍टोरेज अव्यवहारिक हो जाता है. इसके अलावा, इंपोर्टेड लिक्विफाइड नैचुरल प्राकृतिक गैस की कीमत पिछले एक दशक में लगभग 7.5 डॉलर/MMBtu या इससे अधिक रही है. हाइड्रोजन ट्रांसपोर्टेशन से जुड़ी शुरुआती चुनौतियों का मतलब है कि ट्रेड के लिए शुरुआती फोकस ग्रीन अमोनिया और मेथनॉल जैसे उत्पादों पर होने की संभावना है.'

उन्‍होंने आगे लिखा, 'हाइड्रोजन हब (जहां हरित हाइड्रोजन और उसके डेरिवेटिव का उत्पादन, इस्‍तेमाल और एक्‍सपोर्ट सह-स्‍थापित (Co-Located) हैं) को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, हरित हाइड्रोजन को फास्ट-ट्रैक करने के लिए नीतिगत उपाय पेश किए जा रहे हैं, जैसे-

  • रिन्‍यूएबल एनर्जी के लिए तेजी से परमिट देने की व्‍यवस्‍था.

  • ऑफटेक के लिए एग्रीगेटिंग डिमांड (ग्रीन हाइड्रोजन खरीदने के लिए एक एग्रीमेंट).

  • उपकरण मैन्‍युफैक्‍चरिंग के लिए प्रोडक्‍शन लिंक्‍ड इंसेंटिव (PIL Scheme) की शुरूआत.

  • ग्रीन हाइड्रोजन के प्रोग्रेसिव एडॉप्‍शन को बढ़ावा देने के लिए निश्चित डिमांड बनाए रखना.

उन्‍होंने लिखा, 'इनोवेशन, खास तौर से इलेक्ट्रोलाइजर एफिशिएंसी में सुधार, भी एक बड़ी भूमिका निभाएगा. कुल उत्सर्जन के संबंध में ग्रीन हाइड्रोजन और इसके डेरिवेटिव की एक तय परिभाषा, इन्‍वेस्‍टमेंट को बढ़ावा देगी और प्राइस प्रीमियम को लागू करेगी. GH2, ग्रीन हाइड्रोजन मानक सही दिशा में एक कदम है.'

गौतम अदाणी ने अपने ब्लॉग में हाइड्रोजन उत्पादन की लागत को कम करने और ग्रीन हाइड्रोजन को किफायती बनाने के लिए सप्लाई सीरीज पर जोर दिया है. उन्होंने ग्रीन हाइड्रोजन को किफायती बनाने के लिए वर्टिकल इंटिग्रेशन को अपनाए जाने की बात कही. उन्‍होंने कहा, 'बैकवर्ड इंटिग्रेशन वाली कंपनियां ही दुनिया को किफायती ग्रीन हाइड्रोजन उपलब्‍ध करा सकती हैं. इसके लिए ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत मौजूदा 3-5 डॉलर/किलोग्राम से घटकर 1 डॉलर/किलोग्राम होनी चाहिए.'

न्यायसंगत समाधान

अपने ब्‍लॉग में गौतम अदाणी ने कहा, 'निश्चित तौर पर ग्रीन हाइड्रोजन-आधारित डीकार्बोनाइजेशन सॉल्‍यूशंस को अपनाने के लिए प्रारंभिक प्रयोग, इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर में निवेश के साथ फ्यूल सेल्‍स और हाइड्रोजन टर्बाइन जैसी टेक्‍नोलॉजी के लिए सीखने की अवस्था में निरंतर सुधार की जरूरत होगी. लेकिन जैसे-जैसे 1 डॉलर/किलोग्राम का लक्ष्य हासिल हो जाएगा, नए बिजनेस मॉडल सामने आएंगे और कार्बन प्राइसिंग (ग्रीनहाउस गैसों की बाहरी लागतों पर काबू पाने) जैसे मैकेनिज्‍म अपनाने में तेजी लाने के लिए अधिक प्रभावी हो जाएंगे.'

गौतम अदाणी ने लिखा, 'भारत के लिए न्यायसंगत समाधान का मतलब एक जीवाश्म ईंधन को दूसरे के साथ बदलना नहीं है. न्यायसंगत समाधान का मतलब रिन्यूएबल एनर्जी और ग्रीन हाइड्रोजन की ओर बढ़ना है. सोलर एनर्जी की लागत में कमी लाने को ग्रीन हाइड्रोजन के साथ बदला जा सकता है. इस बदलाव से देश को एनर्जी सिक्‍योरिटी हासिल करने में और देश के शहरों में एयर क्वालिटी सुधारने में मदद मिलेगी.'

उन्‍होंने लिखा, 'ये बदलाव उर्वरकों में एक महत्वपूर्ण घटक 'इंपोर्टेड अमोनिया' की कीमतों की अनिश्चितताओं को दूर करते हुए फूड सिक्‍योरिटी सुनिश्चित करने में भी भूमिका निभाएगा. सबसे महत्वपूर्ण कि ये बदलाव दुनिया को जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के दुष्‍प्रभावों से बचाएगा.'

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