China's White Paper: ट्रेड वॉर के बीच चीन ने की बातचीत की पेशकश, अमेरिका पर लगाया प्रेशर पॉलिटिक्‍स का आरोप

Amid US-China Trade War: चीन ने एक श्वेत पत्र जारी कर अमेरिका के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंधों पर अपना रुख स्पष्ट किया है.

Source: NDTV Profit Hindi Gfx

अमेरिका की ओर से 104% टैरिफ लगाए जाने के बाद चीन ने इस मसले को सुलझाने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत करने की पेशकश की है. हालांकि अपने व्हाइट पेपर में ये भी कहा है कि वो इस जंग को आखिर तक लड़ेगा. चीन ने कहा कि उसके पास अमेरिका के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए पर्याप्त साधन हैं.

चीन ने एक श्वेत पत्र जारी कर अमेरिका के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंधों पर अपना रुख स्पष्ट किया है. रिपोर्ट के अनुसार, चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक सहयोग न केवल दोनों देशों के लिए फायदेमंद है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास के लिए भी जरूरी है.

दरअसल, ट्रंप ने अमेरिका में इंपोर्ट होने वाली सभी चीनी सामानों पर अतिरिक्त 34% टैरिफ लगाने की घोषणा की और फिर चीन ने भी अमेरिका पर 34% टैरिफ लगा दिया. फिर ट्रंप ने 24 घंटे के अंदर इसे वापस लेने की चेतावनी दी. नहीं मानने पर मंगलवार को ट्रंप ने चीन पर अतिरिक्त 50% टैरिफ लगा दिया. इससे चीन पर कुल टैरिफ (20+34+50) 104% हो गया है, जिसमें 20% टैरिफ पहले से ही लागू है.

व्‍हाइट पेपर में चीन ने क्‍या कहा?

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन और अमेरिका, दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं. बीते 46 वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है– 1979 में जहां यह व्यापार केवल 2.5 अरब डॉलर था, वहीं 2024 में यह बढ़कर 688.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया.

हालांकि, हाल के वर्षों में अमेरिका की एकतरफा और संरक्षणवादी नीतियों ने दोनों देशों के सामान्य व्यापारिक संबंधों को नुकसान पहुंचाया है. अमेरिका ने 2018 से अब तक 500 बिलियन डॉलर से अधिक के चीनी उत्पादों पर टैरिफ लगाए हैं. इसके जवाब में चीन ने अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए.

प्रेशर पॉलिटिक्‍स का आरोप

चीन ने अमेरिका पर आर्थिक मोर्चे पर वादाखिलाफी और दबाव की राजनीति का आरोप लगाया है. चीन सरकार की ओर से जारी श्वेत पत्र में कहा गया है कि अमेरिका ने 'फेज वन ट्रेड डील' में किए गए अपने वादे नहीं निभाए, उल्टा चीन पर पाबंदियां लगाकर नुकसान पहुंचाया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020 में दोनों देशों के बीच 'फेज वन ट्रेड डील' हुई थी, जिसमें चीन ने पूरी ईमानदारी से अपने वादों को निभाया. चीन ने बौद्धिक संपदा की रक्षा को मजबूत किया, कृषि और वित्तीय क्षेत्रों में अमेरिकी कंपनियों के लिए बाजार खोला और डॉलर में व्यापार बढ़ाया.

चीन का आरोप है कि अमेरिका ने इस समझौते का सम्मान नहीं किया. उसने निर्यात पर नियंत्रण, चीनी कंपनियों पर पाबंदियां और निवेश में रुकावटें लगाई हैं, जिससे दोनों देशों के बीच भरोसे की कमी आई है.

व्यापारिक सहयोग से दोनों को फायदा

रिपोर्ट में आंकड़ों के साथ बताया गया है कि चीन और अमेरिका का व्यापार परस्पर लाभकारी रहा है. अमेरिका को चीन में कृषि, सेवाओं, शिक्षा, चिकित्सा और वित्तीय क्षेत्रों से बड़ा लाभ मिलता है. 2022 में चीन को निर्यात से अमेरिका में 9.3 लाख नौकरियां बनीं. वहीं अमेरिकी कंपनियों को चीन में 490 अरब डॉलर से अधिक की बिक्री हुई.

चीन ने खोले अपने दरवाजे

चीन ने अमेरिका की प्रमुख वित्तीय कंपनियों (जैसे JP मॉर्गन, गोल्डमैन सैक्स, अमेरिकन एक्सप्रेस) को चीन में पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनियां शुरू करने की अनुमति दी है. साथ ही चीन ने डिजिटल व्यापार, बौद्धिक संपदा संरक्षण और डेटा प्रवाह को लेकर भी मजबूत कदम उठाए हैं.

चीन की अपील, सहयोग से समाधान संभवव

चीन का मानना है कि व्यापार विवादों का हल संवाद और सहयोग से निकाला जा सकता है, न कि दबाव और पाबंदियों से. रिपोर्ट में अमेरिका से अपील की गई है कि वो बहुपक्षीय व्यवस्था का सम्मान करे, चीन के मोस्ट फेवर्ड नेशन (Most Favored Nation) दर्जे को न छिने, और एकतरफा कदमों से परहेज करे.

चीन ने अपने व्‍हाइट पेपर में ये संदेश देने की कोशिश की है कि वो वैश्विक नियमों के तहत व्यापार करना चाहता है. वो अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा के बजाय सहयोग को प्राथमिकता देता है. अगर दोनों देश मिलकर काम करें, तो न केवल दोनों की इकोनॉमी को फायदा होगा, बल्कि पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिरता भी बनी रहेगी.

Also Read: ट्रेड वॉर में उलझे US और चीन, क्या भारतीय बाजारों पर पड़ेगा निगेटिव असर?