ELSS या टैक्स सेविंग FD? अच्छे रिटर्न के साथ टैक्स बचाने के लिए क्या है बेहतर ऑप्शन?

देश में टैक्स कानूनों के तहत ऐसे कई विकल्प मौजूद हैं, जिनमें टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट (Tax-Saving FD) और इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS) काफी लोकप्रिय हैं.

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अपनी पूंजी पर बेहतर रिटर्न के साथ ही साथ अगर टैक्स बेनिफिट (Tax Benefit) भी मिल जाए, तो किसी भी इनकम टैक्सपेयर्स (Income Taxpayers) के लिए इससे बेहतर निवेश भला क्या हो सकता है.

अपने देश में टैक्स कानूनों के तहत ऐसे कई विकल्प मौजूद हैं, जिनमें टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट (Tax-Saving FD) और इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS) काफी लोकप्रिय हैं. इन दोनों में निवेश करने पर इनकम टैक्स में छूट का लाभ मिलता है. लेकिन इस एक समानता के अलावा निवेश के इन दोनों विकल्पों में कई अंतर और अलग-अलग खूबियां भी हैं, जिनके बारे में हम यहां बात करेंगे. 

टैक्स बेनिफिट की तुलना: इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये के निवेश पर टैक्स छूट का लाभ टैक्स-सेविंग FD और ELLS दोनों में ही मिलता है. लेकिन दोनों से जुड़े टैक्स छूट के प्रावधानों में कुछ अंतर भी है. टैक्स सेविंग FD में किए गए निवेश पर आपको जो ब्याज मिलता है, वो आयकर स्लैब के मुताबिक टैक्सेबल होता है.

हां, इसमें ब्याज पर मिलने वाला सामान्य डिडक्शन जरूर मिलता है, जो उम्र से जुड़ा होता है. यानी आम लोगों के लिए 10 हजार रुपये और सीनियर सिटिजन के लिए 40 हजार रुपये तक के सालाना ब्याज पर टैक्स नहीं देना होता. दूसरी तरफ ELSS में निवेश पर मिलने वाले 1 लाख रुपये तक के मुनाफे पर कोई टैक्स नहीं लगता. 1 लाख रुपये से ऊपर के मुनाफे पर भी 10% की दर से ही टैक्स देना होता है. जाहिर है, इन नियमों के चलते ELSS में किया गया निवेश टैक्स सेविंग के लिहाज से FD के मुकाबले बेहतर नजर आता है. 

लिक्विडिटी में अंतर: टैक्स सेविंग FD में टैक्स छूट का लाभ लेने के लिए 5 साल का लॉक-इन पीरियड होता है. यानी इसमें पैसे एक बार लगाने के बाद आप कम से कम 5 साल तक निकाल नहीं सकते. वहीं ELSS में निवेश पर टैक्स सेविंग का लाभ लेने के लिए लॉक-इन पीरियड सिर्फ 3 साल है. दरअसल, इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80C के तहत जितने भी टैक्स सेविंग ऑप्शन हैं, उनमें सबसे कम लॉक-इन पीरियड ELSS का ही है.

ऐसे में ELSS में किया गया निवेश लिक्विडिटी के मामले में 5 साल के FD के मुकाबले कहीं बेहतर दिखता है. लेकिन यहां यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि इक्विटी में निवेश पर बाजार के उतार-चढ़ाव का असर पड़ता है, जिसकी वजह से 3 साल बाद पैसे निकालते समय आपको कितना रिटर्न मिलेगा, उसकी कोई गारंटी नहीं होती. आम तौर पर इक्विटी में किए गए निवेश लंबे समय तक बने रहने पर ही बेहतर रिटर्न देते हैं. 

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आपके निवेश का लक्ष्य: आपके लिए कौन सा टैक्स सेविंग ऑप्शन बेहतर है, FD या ELSS, इस सवाल का जवाब आपके निवेश के लक्ष्य और इनवेस्टमेंट होराइजन (investment horizon) यानी आप कितने समय के लिए पैसे लगाना चाहते हैं, इस पर भी निर्भर करता है. अगर आपका इनवेस्टमेंट होराइजन कम है या आपको निश्चित समय पर एक तय रकम की जरूरत पड़ने वाली है, तो आपके लिए FD बेहतर विकल्प हो सकता है, क्योंकि उसमें मैच्योरिटी अमाउंट और उसकी तारीख पहले से तय होती है. लेकिन अगर आप ज्यादा समय के लिए निवेश करना चाहते हैं और रिटर्न की जरूरत के मामले में भी फ्लेक्सिबल हैं, तो ELSS में निवेश करके बेहतर रिटर्न पाने की उम्मीद कर सकते हैं.

निवेश का फैसला करने से पहले आपको अपनी रिस्क लेने की क्षमता भी जरूर देखनी चाहिए. अगर आप निवेश पर कुछ जोखिम उठाने को तैयार हैं, तो ELSS की तरफ जा सकते हैं, वरना पहले से तय और गारंटीड रिटर्न के लिए कई सरकारी बैंकों, संस्थानों या पोस्ट ऑफिस के टैक्स सेविंग एफडी में निवेश कर सकते हैं.

डायवर्सिफिकेशन : निवेश के बारे में फैसला करते समय आपको अपने पोर्टफोलियो के डायवर्सिफिकेशन यानी अलग-अलग तरह के विकल्पों में निवेश करने के सिद्धांत पर भी विचार करना चाहिए. आमतौर पर अपनी सारी पूंजी को किसी एक ही विकल्प या एक ही कैटेगरी के इंस्ट्रूमेंट में निवेश करने की बजाय, अलग-अलग कैटेगरी के इनवेस्टमेंट ऑप्शन में बांट देना बेहतर माना जाता है.

इसलिए निवेश का फैसला करने से पहले आप को ये देख लेना चाहिए कि अब तक आपकी ज्यादातर पूंजी किस तरह के इंस्ट्रूमेंट में लगी हुई है. अगर आपने ज्यादातर पैसे अब तक FD में डाल रखे हैं तो बाकी पहलुओं पर विचार करने के बाद अब आप ELSS में निवेश पर विचार कर सकते हैं. लेकिन अगर आपका इक्विटी या उससे जुड़ी स्कीम में पहले से ही काफी एक्सपोजर है, तो आप डायवर्सिफिकेशन के लिहाज से एफडी में सुरक्षित निवेश करने की सोच सकते हैं. 

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रिस्क और रिटर्न : जैसा कि नाम से जाहिर है ELSS एक इक्विटी आधारित निवेश स्कीम है, जिसमें लगाई गई पूंजी की सुरक्षा और उस पर मिलने वाला रिटर्न शेयर बाजार के उतार-चढ़ावों से जुड़ा हुआ है. जबकि FD यानी फिक्स्ड डिपॉजिट एक निश्चित रिटर्न देने वाला विकल्प है, जिसमें जोखिम ELSS के मुकाबले कम माना जाता है. लेकिन यहां यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि एफडी में निवेश पर रिटर्न भी आमतौर पर दीर्घकालीन ELSS की तुलना में कम मिलता है.

लिहाजा, निवेश का फैसला करने से पहले आपको अपने रिस्क प्रोफाइल यानी जोखिम उठाने की क्षमता और निवेश के अपने लक्ष्य के मुताबिक रिटर्न की उम्मीद - इन दोनों रही पहलुओं की अच्छी तरह तुलना करनी चाहिए. इसके बाद आप अपनी खास जरूरतों के हिसाब से सही विकल्प का चुनाव कर सकते हैं. 

इन तमाम पहलुओं पर विचार करने के बाद निवेश का फैसला आपको खुद अपने हालात और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ही करना चाहिए. अगर आपको फैसला लेने में कोई भी कंफ्यूजन है तो निवेश से पहले उसे हर हाल में दूर कर लेना चाहिए. जरूरत हो तो किसी भरोसेमंद निवेश सलाहकार की राय लेने से भी हिचकिचाना नहीं चाहिए.

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