लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी कैसे रहेगी टैक्स फ्री? समझ लीजिए नए नियम

टैक्स विभाग ने विस्तृत रूप से इस पर बयान जारी किया है. जितने भी लोग लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी में टैक्स-फ्री पेआउट चाहते हैं, उनको इन चीजों का ख्याल रखना जरूरी है.

Source: Envato

हाल ही में, इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 10 (10D) में बदलाव किए गए हैं. ये बदलाव लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी में टैक्स-फ्री अमाउंट की रसीद से जुड़े हुए हैं.

पिछले कुछ समय में, इस सेक्शन में कई बदलाव किए गए हैं, जो सबसे ताजा बदलाव किया गया है उसके मुताबिक- लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए अगर सालाना प्रीमियम की राशि 5 लाख रुपये से ज्यादा की है, तो मिलने वाली रकम पर टैक्स देना होगा.

टैक्स विभाग ने इसको लेकर एक विस्तारपूर्व बयान जारी किया है. इसलिए जो लोग भी लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी में टैक्स-फ्री पेआउट चाहते हैं, उनको इन चीजों का ख्याल रखना जरूरी है.

पॉलिसी इश्यू करने की तारीख

नियमों में ये बदलाव तभी लागू होगा, जब लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी 1 अप्रैल 2023 को या इसके बाद जारी की गई हो. यानी वो पॉलिसीज जो इस तारीख के पहले जारी की जा चुकी हैं, यानी पुरानी पॉलिसीज, उन पर नियमों में ये बदलाव लागू नहीं होगा, यानी वो टैक्स फ्री रिसीट का लाभ उठाना जारी रख सकते हैं.

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मृत्यु पर लागू नहीं

एक फैक्टर, जिसका ध्यान रखना जरूरी है वो ये, कि पॉलिसी में साफ लिखा गया है कि पॉलिसीहोल्डर की मृत्यु हो जाने की स्थिति में पूरा अमाउंट टैक्स फ्री रहेगा.

इसको ऐसे भी कहा जा सकता है कि पॉलिसी प्रीमियम पर मैच्योर होने वाली राशि के 5 लाख रुपये से ज्यादा होने पर टैक्स लगता. लेकिन पॉलिसी में लाइफ-कवर भी जुड़ा हुआ है, तो पॉलिसीहोल्डर की मृत्यु होने पर ये रकम टैक्सेबल नहीं रहेगी.

टर्म पॉलिसी को निकाला गया

नई पॉलिसी के अनुसार, लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी में यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी (ULIP) को हटा दिया गया है. ये बदलाव इसलिए किया गया है, क्योंकि पिछले साल संशोधित ULIP पॉलिसी में सालाना आधार पर 2.5 लाख रुपये से ज्यादा प्रीमियम देने पर उसे टैक्स के दायरे में ला दिया गया था.

लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी की इस फेहरिस्त में टर्म पॉलिसी के लिए भी छूट का प्रावधान किया गया है, भले ही सालाना प्रीमियम 5 लाख रुपये से ज्यादा का हो. टर्म पॉलिसी वो होती है, जिसका भुगतान तब होता है जब, पॉलिसी टर्म के दौरान पॉलिसीहोल्डर की मृत्यु हो जाए.

टर्म पॉलिसी में दूसरे बीमा के मुकाबले कम प्रीमियम पर बड़ा पॉलिसी कवर मिलता है, क्योंकि इसमें केवल एक रिस्क पॉलिसीहोल्डर की मृत्यु का होता है. टर्म पॉलिसी में, ये देखने के लिए कि कौन सी पॉलिसी 5 लाख रुपये की सीमा से अधिक है, टर्म पॉलिसी पर भुगतान किए गए प्रीमियम के आंकड़े को भी नहीं गिना जाता है.

अगर कई पॉलिसी हों तो कैसे होगा कैलकुलेशन?

अगर किसी व्यक्ति के पास केवल एक लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी है, तो उसके लिए ये कैलकुलेट करना आसान हो जाता है कि प्रीमियम 5 लाख रुपये से कम है कि नहीं. और प्रीमियम कम है, तो रसीद दिखाकर इनकम टैक्स में छूट मिल जाएगी. हालांकि, अगर किसी के पास कई पॉलिसी हैं, तो उसमें केवल उन पॉलिसी पर ही छूट मिलेगी, जिनमें एग्रीगेट प्रीमियम 5 लाख रुपये से कम है.

उदाहरण के लिए, किसी शख्स के पास 3 पॉलिसी हैं, जिसमें वो 3 लाख रुपये, 2 लाख रुपये और 2 लाख रुपये का प्रीमियम दे रहा है. ऐसी सूरत में, केवल शुरू की 2 ही पॉलिसी पर टैक्स में छूट मिलेगी, जिसमें कुल प्रीमियम 5 लाख रुपये से ज्यादा नहीं है. इसमें वो अपनी मर्जी के हिसाब से, उन पॉलिसीज में से चुन सकता है, ये देखते हुए कि उनमें से कौन सा सबसे ज्यादा फायदेमंद है, जब उसे प्रीमियम को 5 लाख रुपये की सीमा से नीचे रखना हो.

GST को बाहर करना होगा

लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी का प्रभाव गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) पर भी पड़ता है, जो पॉलिसीहोल्डर द्वारा भुगतान किए गए प्रीमियम पर लगाया जाता है. 5 लाख रुपये लिमिट पर कैलकुलेशन के लिए, GST के हिस्से को बाहर रखना होगा, ये देखने के लिए कि पॉलिसी प्रीमियम छूट की सीमा के अंदर आता है या नहीं. ये बहुत जरूरी है, खासकर उन मौकों पर, जहां पर वास्तविक प्रीमियम को जोड़ने पर कुल पेमेंट 5 लाख रुपये से ज्यादा हो जाता है.

लेखक अर्णव पंड्या Moneyeduschool के फाउंडर हैं.