ELSS Investment Strategy: टैक्स प्लानिंग (Tax Planning) के लिए निवेश करने का सीजन अब आने वाला है. इस दौरान निवेशक ऐसे विकल्पों की तलाश करेंगे, जहां पैसे लगाने से बेहतर रिटर्न के साथ ही साथ टैक्स में छूट का लाभ भी मिल सके. वैसे तो इनकम टैक्स सेविंग के कई उपाय मौजूद हैं, लेकिन इनमें इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS) काफी बेहतर माना जाता है. ये निवेश का एक ऐसा तरीका है, जो टैक्स बचाने के साथ ही आपको बेहतर रिटर्न भी दे सकता है. यहां तक कि आप 4 से 5 साल में अपना पैसा डबल भी कर सकते हैं. इसे लंबी अवधि के लिए निवेश करने के मकसद से प्राथमिकता दी जा सकती है.
ELSS में 3 साल का लॉक-इन पीरियड होता है, यानी इसमें निवेश करने पर 36 महीने के पहले पैसे निकाले नहीं जा सकते. ऐसे में एक सवाल ये भी उठता है कि लॉक इन खत्म होने के बाद निवेशकों को क्या करना चाहिए. अपने निवेश को निकाल लेना चाहिए या लंबी अवधि तक बनाए रखना चाहिए?
ELSS में 3 साल बाद क्या होता है ऑप्शन
अगर आपने कोई राशि एकमुश्त जमा की है तो 3 साल का लॉक-इन पीरियड खत्म होने के बाद आपके पास ब्याज सहित पूरी राशि निकालने का विकल्प होता है. लेकिन अगर आपने सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी SIP के जरिए निवेश किया है तो ऐसा नहीं है. SIP करने वाले निवेशक सिर्फ वही रकम निकाल सकते हैं, जिसकी अवधि 3 साल पूरी हो गई हो. ऐसा इसलिए, क्योंकि 3 साल का लॉक-इन पीरियड SIP की हर किस्त के लिए अलग-अलग होता है.
मिसाल के तौर पर अगर आपने ELSS के तहत अपने SIP की पहली किस्त 1 जनवरी 2021 को जमा की थी, तो उसके 3 साल 1 जनवरी 2024 को पूरे हो जाएंगे. लेकिन जो किस्त आप 1 जनवरी 2024 को जमा करेंगे, उसके 3 साल तो 1 जनवरी 2027 को पूरे होंगे. यानी आप 1 जनवरी 2021 से 1 जनवरी 2024 के दौरान SIP में जितनी रकम जमा करते हैं, उसे पूरी तरह से 2 जनवरी 2027 को ही निकाल पाएंगे.
लॉक इन पूरा होने पर क्या करें
ELSS एक इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम है, यानी आपके फंड का बड़ा हिस्सा इक्विटी में निवेश किया जाता है. ELSS में कम से कम 80% एक्सपोजर इक्विटी में होता है. ये टेक्निकली 100% तक हो सकता है. इक्विटी इन्वेस्टमेंट में ग्रोथ और कंपाउंडिंग का फायदा तभी मिलता है, जब आप लंबी अवधि के लिए निवेश बनाए रखते हैं. इसलिए ये जरूरी नहीं है कि लॉक-इन पूरा होने के बाद आप अपना निवेश निकाल ही लें. अगर फंड में बेहतर रिटर्न मिल रहा है तो 3 साल पूरा होने के बाद भी आप स्कीम से बाहर निकलने की जगह निवेश जारी रखने का विकल्प चुन सकते हैं. यानी बेहतर रिटर्न मिलने पर 3 साल के लॉक इन पीरियड के बावजूद स्कीम को लंबे समय तक होल्ड करना बेहतर रहता है.
हालांकि, अगर आपको पैसे की जरूरत है तो लॉक-इन खत्म होने के बाद पैसे निकाल सकते हैं, लेकिन अगर लॉक-इन खत्म होने के बाद भी आप अगले 3 से 5 साल तक निवेश बनाए रखते हैं, तो बेहतर रिटर्न मिलने की गुंजाइश रहेगी. क्योंकि ऐसा करने पर आपको इक्विटी निवेश की ग्रोथ और कंपाउंडिंग - दोनों का पूरा फायदा मिलेगा. लेकिन इस बारे में फैसला करने से पहले यह जरूर देख लें कि उस स्कीम में रिटर्न कैसा है.
अगर रिटर्न बढ़िया नहीं है, तो लॉक-इन पीरियड के बाद पैसे निकालकर बेहतर ग्रोथ देने वाली किसी और स्कीम में लगा सकते हैं. अगर आपके निवेश का मुख्य मकसद टैक्स सेविंग है, तो आप पूरी रकम निकालकर टैक्स बेनेफिट के लिए फिर से निवेश भी कर सकते हैं. ELSS का लंबी अवधि का रिटर्न देखने पर साफ हो जाएगा कि इसमें लंबी अवधि के लिए निवेश की स्ट्रैटजी क्यों सही है.
टैक्स के नियम
ELSS में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स लगता है, लेकिन 1 लाख तक की आय टैक्स फ्री है. जबकि 80C के तहत जिन फिक्स्ड इनकम वाले विकल्पों में छूट मिलती है, उनमें होने वाली पूरी आय टैक्सेबल है. वहीं इनमें जरूरी नहीं है कि लॉक इन के बाद पैसे निकाल लें. अगर मुनाफा हो रहा है तो जब तक चाहें, तब तक होल्ड कर सकते हैं. इस स्कीम में जब पैसे हों तब एसआईपी शुरू कर सकते हैं.
SIP और SIP टॉप अप की सुविधा
ELSS में निवेश करते समय एक सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) का विकल्प चुन सकते हैं. इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि आपके पास सिर्फ टैक्स बचाने के लिए किसी भी टैक्स सेविंग प्रोडक्ट में निवेश करने की आखिरी मिनट की हड़बड़ी नहीं होती है. पूरे साल SIP के माध्यम से निवेश करने में एवरेजिंग का फायदा होता ही है, आपको समय के साथ बेहतर रिस्क एडजस्टेड रिटर्न मिलता है. ELSS में निवेश करने से आपके पास जरूरत पड़ने पर अपना निवेश बढ़ाने का भी विकल्प होता है. आप एक नियमित राशि के साथ एसआईपी शुरू कर सकते हैं, जो आपको टैक्स बचत के लिए चाहिए. जैसे-जैसे आपकी इनकम बढ़े इसमें योगदान बढ़ा सकते हैं.