मनरेगा में रोजगार की मांग में रिकॉर्ड उछाल, क्या हैं बड़ी वजह

मनरेगा में नौकरी की खोज बढ़ने का अर्थ ये है कि रोजगार के कई दूसरे विकल्पों पर काम की गति सुस्त है.

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मनरेगा के तहत रोजगार चाहने वालों की बढ़ी संख्या ने सबके कान खड़े कर दिए हैं. बीते मई महीने में मनरेगा में रोजगार खोजने वाले लोगों की रिकॉर्ड डिमांड देखने को मिली. क्या है इसकी वजह? रबी की फसल के बाद मॉनसून में देरी? या फिर घटते रोजगार के बाद कृषि पर बढ़ते बोझ की ये अनचाही तस्वीर है? ये गंभीर सवाल भी उठता है कि क्या देश में आर्थिक विकास का लाभ आम लोगों तक नहीं पहुंच रहा है?

ताजा सरकारी आंकड़े कह रहे हैं कि महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्पलॉयमेंट गारंटी स्कीम (MGNREGS) के तहत मई 2023 में 3 करोड़ 17 लाख 40 हजार से ज्यादा घरों से लोगों ने रोजगार मांगे. COVID-19 के महामारी काल के अलावा किसी भी साल मनरेगा में रोजगार के लिए किसी एक महीने में इतनी मांग पैदा नहीं हुई थी. अप्रैल 2023 में करीब 2 करोड़ 40 लाख 60 हजार घरों से रोजगार की मांग आयी थी.

मनरेगा में रोजगार के इच्छुक लोगों को निराश नहीं होना पड़ता

सच ये भी है कि रोजगार की मांग और रोजगार की उपलब्धता के बीच अंतर लगातार घटा है. 2014-15 में 4.6 करोड़ घरों से लोग रोजगार मांग रहे थे तो 2020-21 में ये संख्या दोगुने से भी ज्यादा हो गयी. आंकड़ा 8.55 करोड़ तक जा पहुंचा. हालांकि ये कोविड की महामारी का काल था. 2022-23 में 6.9 करोड़ घरों से रोजगार की मांग आयी तो लगा कि दशा में सुधार हो रहा है. लेकिन, मई 2023 में मनरेगा में सामने आयी सर्वाधिक रोजगार की चाहत चिंता का सबब बन गयी है.

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रबी की फसल के बाद का समय मुफीद

अप्रैल और मई महीने में ग्रामीण इलाकों में मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की तादाद बढ़ना कोई नई बात नहीं है. दरअसल रबी की खेती पूरी होने का बाद किसान खाली होते हैं और इस दौरान वो कुछ कमा लेना चाहते हैं. आर्थिक मामलों के जानकार चर्चा कर रहे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आर्थिक समृद्धि का लाभ नीचे के स्तर तक नहीं पहुंच पा रहा है और यही मनरेगा में रोजगार के लिए बढ़ती मांग की वजह है?

मनरेगा का वेतन बढ़ना, मॉनसून में देरी बड़ी वजह

मनरेगा के तहत रोजगार चाहने वाले घरों की संख्या बढ़ने के पीछे कई वजहों में अहम वजह ये भी है कि 2023-2024 में सरकार ने MNREGA के तहत वेतन में 20% की बढ़ोतरी कर दी है. इससे श्रमिकों के लिए MNREGA के लिए आकर्षण बढ़ गया है. ऐसे में बढ़ी हुई मजदूरी का फायदा उठाने की ललक आम प्रवृत्ति है.

ABPS आधारित भुगतान से भी बढ़ा आकर्षण

3 जून 2023 को PIB की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार मनरेगा के 14.28 करोड़ लाभार्थी हैं. इनमें से 13.75 करोड़ लोग आधार कार्ड से जुड़े हैं. 12.17 करोड़ आधार को अभिप्रमाणित कर दिया गया है. 77.81% लोग आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम (ABPS) से जुड़े हैं. मई 2023 में करीब 88% लोगों को ABPS के माध्यम से भुगतान किया गया. ये भी एक वजह है कि मनरेगा में रोजगार चाहने वालों की संख्या बढ़ी है.

हालांकि ये कहना बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं होगा कि मनरेगा में नौकरी की मांग बढ़ने का मतलब देश में आर्थिक गतिविधियों का बढ़ना है. इसके उलट ये इस बात का प्रमाण है कि गांवों में दुख और बदहाली के साथ-साथ आर्थिक असुरक्षा बढ़ी है. मनरेगा में मिलने वाला काम अस्थायी प्रकृति का होता है और ये बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं है.

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क्या हैं अन्य विकल्प?

छोटे कारोबार को बढ़ावा देकर नौकरियां बढ़ाई जाएं तो गांवों में छिपी बेरोजगारी और मनरेगा पर बढ़ते बोझ को कम किया जा सकता है. इसके अलावा सड़क, रेलवे, पावर प्लांट औ निर्माण के क्षेत्र में गतिविधि बढ़ाकर रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है. श्रमिकों को प्रशिक्षित बनाकर भी रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं. मनरेगा में नौकरी की खोज बढ़ने का अर्थ ये है कि उपरोक्त तमाम विकल्पों पर काम की गति सुस्त है.

पिछले साल के मुकाबले कम बजट

केंद्र सरकार के लिए भी ये चिंता का विषय है. मनरेगा में रोजगार के लिए बजट आवंटन अब बढ़ाना पड़ सकता है. वर्ष 2023-2024 के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिए 60 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. पिछले साल के मुकाबले ये 18% कम है. ये भी सच है कि अतीत में जब कभी जरूरत पड़ी है तो केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिए फंड की कमी को दूर किया है. मनरेगा मांग पर आधारित रोजगार योजना है और फंड का आवंटन इस पर निर्भर करता है कि मांग क्या है. MGNREGA के लिए वित्त वर्ष 2022-23 में 73 हजार करोड़ का बजट आवंटित किया गया था जो बढ़कर 89,400 करोड़ रुपये हो गया था.