New Income Tax Bill Explainer: नया इनकम टैक्स बिल ( New Income Tax bill) लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश कर दिया है. नया इनकम टैक्स बिल 1 अप्रैल, 2026 से लागू होने की उम्मीद है.
सरल, सुस्पष्ट, समझने में आसान और गैर-जरूरी प्रावधानों की छंटनी... लोकसभा में पेश किए गए नए इनकम टैक्स बिल, 2025 की ये कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं. इनकम टैक्स कानून का आसान और पारदर्शी बनाने के लिए केंद्र नया इनकम टैक्स बिल लेकर आई है.
622 पेज का ये बिल संसद से पास होने और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद 6 दशक पुराने इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की जगह लेगा. कहा जा रहा है कि इसे 1 अप्रैल 2026 से लागू किया जा सकता है. इस बिल का मुख्य उद्देश्य टैक्स प्रावधानों को आम लोगों की समझ के लिए आसान बनाना, पुराने और अनावश्यक नियमों को हटाना और टैक्स सिस्टम को और पारदर्शी बनाना है.
सरल, संक्षिप्त और सुस्पष्ट
ड्राफ्ट बिल का उद्देश्य लगभग 3 लाख शब्दों की कटौती करके मौजूदा इनकम टैक्स एक्ट की जटिलता को काफी हद तक कम करना यानी इसे सरल बनाना है. ऐसा करके सरकार कानून को अधिक स्पष्ट और संक्षिप्त बनाने की उम्मीद कर रही है, जिससे बेहतर अनुपालन सुनिश्चित होगा. साथ ही ये स्पष्ट भी होगा. ड्राफ्ट बिल, समीक्षा और सिफारिशों के लिए स्थाई समिति को भेजा जाएगा.
नए बिल की खास बातें
इस बिल से मौजूदा एक्ट की अनावश्यक धाराओं को खत्म कर दिया गया है, जो पुरानी या अप्रासंगिक हो गई हैं. इसके अतिरिक्त, लिटिगेशन यानी मुकदमेबाजी के मैनेजमेंट में सुधार करने, टैक्स-संबंधी विवादों के लंबित मामलों को कम करने और त्वरित समाधान को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है.
सरल और स्पष्ट भाषा:
नए बिल में टैक्स प्रावधानों को आसान और स्पष्ट भाषा में लिखा गया है. पुराने कानून में कई जगह 'नॉटविथस्टैंडिंग' (Notwithstanding) जैसे कठिन शब्दों का इस्तेमाल होता था, जिन्हें अब 'इरिस्पेक्टिव ऑफ एनीथिंग' (Irrespective of anything) जैसे सरल शब्दों से बदल दिया गया है. इससे आम लोगों को कानूनी प्रावधान समझने में आसानी होगी.
नई अवधारणा: 'टैक्स ईयर'
नए बिल में 'असेसमेंट ईयर' (Assessment Year) की जगह 'टैक्स ईयर' (Tax Year) की एक नई अवधारणा पेश की गई है. टैक्स ईयर 1 अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च तक चलेगा. अगर कोई नया व्यवसाय या पेशा शुरू किया जाता है, तो टैक्स ईयर उसके शुरू होने की तारीख से शुरू होगा और उसी वित्तीय वर्ष में खत्म होगा.
वर्चुअल/डिजिटल एसेट्स अब कैपिटल एसेट
क्रिप्टोकरेंसी और अन्य डिजिटल एसेट्स को अब संपत्ति की श्रेणी में रखा गया है. यानी, इन्हें कैपिटल एसेट (Capital Asset) माना जाएगा और इन पर टैक्स लगेगा. इससे डिजिटल एसेट्स पर टैक्स लगाने में स्पष्टता आएगी.
पुराने गैर-जरूरी प्रावधानों का सफाया
बिल से कई पुराने और अनावश्यक प्रावधान हटा दिए गए हैं. उदाहरण के लिए, सेक्शन 54E को हटा दिया गया है, जो अप्रैल 1992 से पहले के कैपिटल गेन्स (Capital Gains) पर छूट देता था. इसके अलावा, कई पुराने नियम और छूट, जो अब प्रासंगिक नहीं थे, उन्हें भी हटा दिया गया है.
TDS और प्रेजम्प्टिव टैक्सेशन
नए बिल में TDS और प्रेजम्प्टिव टैक्सेशन (Presumptive Taxation) से जुड़े प्रावधानों को टेबुलर फॉर्मेट में पेश किया गया है. इससे टैक्सपेयर्स को इन प्रावधानों को समझने में आसानी होगी.
डिस्प्यूट रेजोल्यूशन पैनल (DRP)
नए बिल में DRP से जुड़े प्रावधानों को और स्पष्ट किया गया है. अब DRP के निर्णयों के पीछे के कारणों को स्पष्ट रूप से बताया जाएगा, जिससे विवादों को सुलझाने में आसानी होगी.
नए बिल में क्या नहीं बदला?
नए बिल में कोई बड़ा संरचनात्मक बदलाव नहीं किया गया है. पुराने टैक्स रिजीम को भी नए बिल में शामिल किया गया है, यानी नया और पुराना दोनों रिजीम चलते रहेंगे.
टैक्स कानूनों का आसान संस्करण पिछले निवेशों से आए कुल आय के आकलन को प्रभावित नहीं करेगा, भले ही उन प्रावधानों के तहत कोई नया निवेश न किया जा सके.
हालांकि, इसमें व्यापक अपवाद हो सकते हैं, जिनमें से पहला पिछले निवेशों से वर्तमान या बाद के वर्षों में हुई आय से संबंधित है. अन्य दो मुकदमे, नोटिस और तलाशी से संबंधित हैं.
जानकार अधिकारियों के अनुसार, लंबित टैक्स एसेसमेंट प्रोसीजर में कुल आय के निर्धारण पर प्रभाव डालने वाले किसी भी प्रावधान को खत्म नहीं किया जाएगा. ये माना जाएगा कि टैक्स एसेसमेंट ईयर 2012-13 से संबंधित कार्यवाही अभी भी नियमित रूप से लंबित हो सकती है.
जिन अन्य प्रावधानों को समीक्षा से बाहर रखा गया है, वे टैक्स एसेसमेंट ईयर 2014-15 या उसके बाद के वर्ष में कार्यवाही को प्रभावित करने वाले प्रावधान होंगे.
आम टैक्सपेयर्स को क्या फायदे होंगे?
नए इनकम टैक्स बिल का उद्देश्य टैक्स-कोड की भाषा को सरल बनाना है, ताकि टैक्सपेयर्स और प्रोफेशनल्स के लिए इसे समझना आसान हो सके. नए बिल में सरल भाषा और कम क्रॉस-रेफरेंसिंग (Cross-Referencing) के कारण टैक्सपेयर्स को कानूनी प्रावधान समझने में आसानी होगी.
सरकार और आम टैक्सपेयर्स के बीच पारदर्शिता बढ़ेगी. पुराने और अनावश्यक प्रावधान हटने से टैक्स सिस्टम और पारदर्शी होगा. क्रिप्टोकरेंसी और अन्य डिजिटल एसेट्स को कैपिटल एसेट मानने से उन पर टैक्स लगाने में स्पष्टता आएगी.
आपके लिए ये जानना भी जरूरी है कि केंद्रीय बजट में कंप्लायंस को आसान बनाने के लिए कई उपायों का प्रस्ताव किया गया है. उदाहरण के लिए, TDS और TCS दरों को तर्कसंगत बनाने का प्रस्ताव है.
इसमें LRS यानी लिबरलाइज्ड रिमिटेंस स्कीम के तहत पैसे विदेश भेजने पर TCS की सीमा को बढ़ाना शामिल है, जिसे वर्तमान में 7 लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दिया गया है.
इसके अलावा, एजुकेशनल खर्चों के लिए भेजे गए पैसों पर TCS लागू नहीं हो सकता है. अन्य संभावित प्रावधानों की बात करें तो टैक्सपेयर्स को ओरिजिनल टैक्स स्टेटमें किसी भी चूक या गलती को सुधारने के लिए अपडेटेड रिटर्न दाखिल करने का विकल्प दिया जाए.
यहां तक कि सीनियर सिटिजन्स के लिए इंटरेस्ट से होने वाली आय पर TDS भी पहले के 50,000 रुपये से बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया गया है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि नया बिल टैक्सपेयर्स के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है. जिंदल ग्रुप से जुड़े प्रैक्टिशनर CA अमित कुमार रंजन कहते हैं, 'पुराने कानून में कई जगह क्रॉस-रेफरेंसिंग और अनावश्यक प्रावधान थे, जिन्हें हटा दिया गया है. अब टैक्सपेयर्स को कानूनी प्रावधान समझने के लिए कई सेक्शन और नियम पढ़ने की जरूरत नहीं होगी.'
उनका कहना है कि, 'नए बिल में डिडक्शन्स (कटौतियों) को एक जगह पर टेबुलर फॉर्मेट में दिखाया गया है, जिससे टैक्सपेयर्स को इन्हें समझने में आसानी होगी.
बिल से कानून बनने की राह
देखा समझा जाए तो नया इनकम-टैक्स बिल, 2025 टैक्स सिस्टम को और सरल, पारदर्शी और आसान बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है. ये बिल न केवल टैक्सपेयर्स के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि टैक्स सिस्टम को और मॉडर्न बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है.
इस बिल को लोकसभा में पेश कर दिया गया है. इसे संसदीय समिति के पास भेजा जाएगा. समिति की सिफारिशों के बाद इसे फिर से संसद में पेश किया जाएगा और अंतिम रूप दिया जाएगा. संसद से पास होने और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद नया इनकम टैक्स बिल, इनकम टैक्स एक्ट के रूप में बदल जाएगा और तय की गई तारीख से लागू हो जाएगा.