साल 2019 में धारा 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली बार हो रहे विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की जीत होती दिख रही है. अब तक जो तस्वीर साफ हुई हैये दोनों पार्टियां मिलकर प्रदेश में सरकार बनाने जा रही है. नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने ऐलान किया है कि उमर अब्दुल्ला, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बनेंगे.
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बडगाम सीट से जीत दर्ज की है. डॉ फारूक अब्दुल्ला ने कहा, 'लोगों ने अपना फैसला सुना दिया है. सबका शुक्रगुजार हूं कि लोगों ने चुनाव में हिस्सा लिया. नतीजा आपके सामने है. उन्होंने ये भी कहा कि उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बनेंगे.'
जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और कांग्रेस के गठबंधन ने BJP के खिलाफ मजबूत दावेदार के रूप में खुद को स्थापित किया है. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो क्या वजहें रही हैं, जिसने चुनावी रण में इस गठबंधन को जीत का सेहरा पहनाया.
चुनाव-पूर्व गठबंधन और रणनीति
चुनावों से पहले लग रहा था कि BJP बड़ी ताकत बन कर उभर सकती है. ऐसे में त्रिशंकु विधानसभा से बचने के उद्देश्य से नेशनल कॉन्फेंस और कांग्रेस ने चुनाव-पूर्व गठबंधन बनाया. गठबंधन ने उनके वोटों को ना केवल मजबूत किया बल्कि BJP के खिलाफ एक मजबूत विकल्प पेश किया.
दोनों पार्टियों ने सीट-बंटवारे पर समझौता किया, जिसमें NC ने 51 सीटों पर और कांग्रेस ने 32 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि पांच अन्य सीटों पर फ्रेंडली फाइट यानी दोस्ताना मुकाबला हुआ. इसका उद्देश्य विरोधियों के खिलाफ वोटों को एकजुट करना था.
जनभावना का फायदा
आर्टिकल 370 को खत्म करने के साथ BJP ने ये मुद्दा बनाया था कि अब कश्मीर कभी पुरानी स्थिति में नहीं लौटेगा. इस बात ने जम्मू में तो फायदा किया लेकिन कश्मीर के इलाके में उसे नुकसान पहुंचा. कांग्रेस और NC ने इस जनभावना का इस्तेमाल अपने लिए किया. यहां ये नैरेटिव फैला कि BJP स्थानीय हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है.
प्रदेश में BJP के खिलाफ जनभावनाएं ज्यादा थीं. जम्मू क्षेत्र में BJP बहुत मजबूत होकर उभरी तो बाकि कश्मीर में इस गठबंधन ने दूसरी सभी पार्टियों का करीब सफाया ही कर दिया. इसी वजह से NC -कांग्रेस गठबंधन को फायदा मिला.
NC -कांग्रेस गठबंधन ने राज्य का दर्जा बहाल करने और BJP के केंद्रीय नेतृत्व में उपजी शिकायतों को दूर करने के वादों पर अभियान चलाया. वोटर्स को भी उनके राज्य को केंद्रशासित करना शायद पसंद नहीं आया. उन्हें महसूस हुआ कि उनके राज्य को डाउनग्रेड किया गया है.
प्रभावी चुनावी कैंपेनिंग
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस, दोनों पुरानी पार्टियां हैं. लिहाजा वोटर्स उनके कामकाज के अभ्यस्त हैं. अब्दुल्ला परिवार का कश्मीर रीजन में अच्छा असर है. निश्चित तौर पर जम्मू रीजन में BJP को कैंपेनिंग का फायदा हुआ, लेकिन कांग्रेस-NC को कश्मीर में कैंपेनिंग का फायदा मिला.
दोनों ही दलों ने अपनी कैंपेनिंग को स्थानीय शिकायतों, विशेष रूप से अनुच्छेद 370 की बहाली और जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा देने की मांग पर केंद्रित किया. NC ने BJP के साथ गठबंधन करने के लिए PDP को विश्वासघाती करार दिया. कांग्रेस ने स्थानीय शासन के मुद्दों को प्राथमिकता देने का वादा किया.
दोनों दलों के वरिष्ठ नेताओं की भागीदारी महत्वपूर्ण थी. राहुल गांधी और अन्य प्रमुख कांग्रेस नेताओं ने रैलियां की. NC ने भी प्रचार के दौरान उच्च नेतृत्व दिखाना सुनिश्चित किया.
काम और सम्मान को बनाया मुद्दा
जम्मू-कश्मीर में लंबे समय बाद हो रहे चुनाव में लोग यहां ऐसी सरकार चाहते हैं, जो राज्य के पुराने सम्मान और ताकत बहाल करें. दोनों पार्टियों ने इसे मुद्दा बनाया. लोगों से वादे किए कि चुनाव जीतने के बाद राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिलाएंगे. लिहाजा ये बात असर कर गई. राज्य के लोग नहीं चाहते कि उनकी सरकार दिल्ली से चलाई जाए.
उनकी रणनीति में पिछले 5 साल में जम्मू-कश्मीर में BJP शासन की कड़ी आलोचना शामिल थी. उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि BJP लोगों से किए गए वादों को पूरा करने में फेल रही है. रोजगार और सरकार में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व को उन्होंने मुद्दा बनाया. निश्चित तौर पर इन मुद्दों ने कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस को फायदा पहुंचाया.