वार्ड पार्षद से तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने तक; खूब परवान चढ़ा देवेंद्र फडणवीस का सियासी सफर

Devendra Fadnavis ने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा. लेकिन वे BJP की केंद्रीय राजनीति से बहुत दूर भी नहीं रहे. BJYM के जरिए अपने क्षेत्र और महाराष्ट्र के आगे संगठन की राजनीति में भी सक्रिय रहे.

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'मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा'

दिसंबर 2019 में BJP सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई, तो विधानसभा में देवेंद्र फडणवीस ने ये शेर कहा था. तब यकीन करना बहुत मुश्किल था कि सिर्फ तीन साल बाद शिवसेना में टूट पड़ेगी और BJP वापस सत्ता में आएगी. मुश्किल था ये मानना कि 2024 में NDA 230 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ वापसी करेगी और देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन ये हुआ और जोर शोर से हुआ.

कच्ची उम्र से पढ़ा राजनीति का ककहरा

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देवेंद्र फडणवीस की राजनीतिक का ककहरा सीखने की शुरुआत उनके घर से ही हुई. 22 जुलाई 1970 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े गंगाधर और सरिता फडणवीस के घर देवेंद्र फडणवीस का जन्म हुआ. गंगाधर फडणवीस जनसंघ के जमाने से RSS के राजनीतिक संगठन का हिस्सा रहे थे. वे नागपुर से MLC भी रहे. इमरजेंसी के दौरान उन्हें भी MISA के तहत जेल में बंद किया गया था.

इसी से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया देवेंद्र फडणवीस सुनाते हैं. फडणवीस की शुरुआती पढ़ाई इंदिरा कॉन्वेंट में चल रही थी. लेकिन जब उनके पिता को इमरजेंसी में जेल भेजा गया, तो नन्हें फडणवीस ने इंदिरा के नाम वाले स्कूल में जाने से इनकार कर दिया. इसके बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए सरस्वती विद्यालय भेज दिया गया.

फिर 1987 का साल भी आया, जो फडणवीस परिवार को बड़ा सदमा देकर गया. देवेंद्र फडणवीस जब महज 17 साल के थे, तब उनके सर से पिता का साया उठ गया. कम उम्र में देवेंद्र फडणवीस के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई.

2 साल बाद, मतलब महज 19 साल की उम्र में वार्ड संयोजक के तौर पर फडणवीस का राजनीतिक जीवन शुरू हो गया था. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी पढ़ाई के लिए अपनी गंभीरता को कम नहीं किया. वार्ड संयोजक, पार्षद रहते भी उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की. बिजनेस मैनेजमेंट में PG की डिग्री की. फिर DSE बर्लिन से प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में डिप्लोमा भी लिया.

राजनीतिक जीवन शुरू होने के करीब डेढ़ दशक बाद 2005 में देवेंद्र फडणवीस ने 'अमृता रानाडे' से शादी की. अमृता पेशे से बैंकर हैं, दोनों की एक बेटी दिविजा है.

चुनावी राजनीति में फडणवीस

देवेंद्र फडणवीस ने राजनीति में 'अ से ज्ञ' तक का सफर तय किया है. वार्ड संयोजक के तौर पर पहले छोटे लेवल पर अपनी समझ मजबूत की. इसके बाद 1992 में 22 साल की उम्र में वे नागपुर नगर निगम के काउंसलर चुने गए. लेकिन नागपुर शहर की राजनीति में उनके सूरज को और परवान चढ़ना था. 1997 में वे नागपुर नगर निगम के मेयर चुने गए. 27 साल की उम्र में मेयर बनने वाले फडणवीस देश के दूसरे सबसे युवा मेयर चुने गए थे.

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1999 में BJP ने उन्हें नागपुर पश्चिम से उम्मीदवार बनाया. उन्होंने कांग्रेस के अशोक धवड़ को 14,000 वोटों से हराया. 2004 में भी वे नागपुर पश्चिम से चुनाव जीते. अगले चार चुनाव (2009, 2014, 2019 और 2024) वे नागपुर दक्षिण पश्चिम से इलेक्शन जीते. इस तरह फडणवीस अब तक लगातार 6 चुनाव जीत चुके हैं.

मजबूत होता कद

फडणवीस ने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा. लेकिन वे BJP की केंद्रीय राजनीति से बहुत दूर भी नहीं रहे. BJYM के जरिए अपने क्षेत्र और महाराष्ट्र के आगे संगठन की राजनीति में भी सक्रिय रहे. 2001 में उन्हें BJYM का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया.

जब बात नागपुर की हो, तो नितिन गडकरी के बिना चर्चा अधूरी होती है. गडकरी और देवेंद्र फडणवीस के पिता साथ में BJP के लिए काम कर चुके थे. कहा जाता है कि नितन गडकरी लंबे समय तक देवेंद्र फडणवीस के पॉलिटिकल मेंटर भी रहे. अच्छी प्रतिभा को जब बढ़िया मार्गदर्शन मिलता है, तो अच्छे नतीजे आने ही होते हैं. 2009 में गडकरी BJP के अध्यक्ष बने. 2010 में उन्होंने सुधीर मंगतिवार को महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया. जबकि देवेंद्र फडणवीस जनरल सेक्रेटरी बने.

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अगले तीन साल में बहुत कुछ घटा. नरेंद्र मोदी तेजी से सिर्फ BJP में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में उभर रहे थे. इस दौरान फडणवीस ने भी संगठन को मजबूत करने के लिए पूरी ताकत से काम किया. नतीजा ये हुआ कि 2013 में उन्हें प्रदेश BJP का अध्यक्ष बना दिया गया.

...और देवा भाऊ बन गए मुख्यमंत्री

ये देवेंद्र फडणवीस ही थे, जिनके नेतृत्व और मोदी लहर के बीच महाराष्ट्र में BJP का 15 साल का सूखा खत्म हुआ. पार्टी ने पिछले चुनाव से 76 सीटों का इजाफा करते हुए 122 सीटें जीती. जबकि सहयोगी शिवसेना ने 63. इस तरह महायुति को 185 सीटों का साफ मैंडेट मिला. प्रधानमंत्री मोदी के प्रभाव वाली BJP में गोपीनाथ मुंडे, खुद नितिन गडकरी जैसे बड़े नेताओं वाले महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री चुना गया. नाम नया था, राष्ट्रीय स्तर पर उतना जाना-पहचाना भी नहीं था, पहले सरकार में कोई प्रशासनिक अनुभव भी नहीं था. लेकिन युवा फडणवीस को मौका दिया गया. वे शरद पवार के बाद BJP के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने.

2019 के चुनाव में भी मैंडेट NDA को ही मिला. लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों सहयोगियों; BJP और शिवसेना में भारी रार हो गई. आखिरकार शिवसेना ने कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर सरकार बना ली. 105 सीटें जीतने वाली BJP को विपक्ष में बैठना पड़ा. हालांकि फडणवीस ने वापसी की पूरी कोशिश की. एकबारगी लगा कि वे अजित पवार का साथ लेकर कुछ विधायक तोड़कर सरकार बना ही लेंगे. 23 नवंबर 2019 को उन्होंने शपथ भी ली. लेकिन शरद पवार की रणनीति भारी पड़ी और अजित पवार पलट गए. महज 5 दिन बाद 28 नवंबर को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

फिर लौटकर आ ही गया 'समंदर'

देवेंद्र फडणवीस ने महाविकास अघाड़ी पर जनता का मैंडेट चुराने का आरोप लगाया. इसी दौरान देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में कहा, 'मेरा पानी उतरता देख मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा.'

तो 2024 विधानसभा चुनाव के नतीजे देखकर कहा जा सकता है कि समंदर अब लौटकर आ गया है.