हरियाणा में विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Elections) के नतीजे एग्जिट पोल के अनुमानों के बिल्कुल उलट रहे और BJP ने जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाबी पाई है.
7 प्रमुख एग्जिट पोल्स में कांग्रेस की जीत का ना सिर्फ अनुमान लगाया गया था, बल्कि पार्टी को BJP से दर्जन भर से ज्यादा सीट के मार्जिन से जीतते हुए दिखाया गया था.
लेकिन इसके बावजूद मंगलवार को कांग्रेस BJP से करीब 11 सीट पीछे है. हालांकि पिछली बार की तुलना में कांग्रेस वोट शेयर के साथ-साथ सीटें भी बढ़ाने में कामयाब रही.
यहां समझते हैं कांग्रेस की हार की प्रमुख वजह
आंतरिक कलह
कांग्रेस की आंतरिक कलह स्पष्ट तौर पर कई बार सामने आई, इससे मतदाताओं में खराब संदेश गया. सबसे अहम पार्टी की पूरी ताकत से लड़ने की क्षमता प्रभावित हुई.
एक तरफ जहां रणदीप सुरजेवाला थे, जो केंद्रीय नेतृत्व के करीब हैं, दूसरी तरफ दिग्गज नेता कुमारी शैलजा का धड़ा था. हालांकि दोनों के बीच इतनी कड़वाहट नहीं थी. लेकिन पारंपरिक तौर पर पार्टी में मजबूत रहा भूपिंदर हुड्डा का धड़ा अपनी मनमानी करने में कामयाब रहा. उदाहरण के तौर पर सुरजेवाला कैथल से खुद टिकट चाहते थे, लेकिन हुड्डा ग्रुप के दबाव में उनके बेटे को टिकट दिय गया. कुमारी शैलजा के बारे में तो पार्टी बदलने की संभावना की खबरें तक आईं, हालांकि बाद में उन्होंने इनका खंडन किया. शैलजा और हुड्डा की अनबन की खबरें आए दिन मीडिया में आती रहीं और कई बार सार्वजनिक मंचों पर भी उनके समर्थकों के बीच तनातनी हुई.
इंडिया अलायंस में फूट
कांग्रेस गठबंधन बनाने में नाकामयाब रही, जिसका खामियाजा पार्टी को कई सीटों पर भुगतना पड़ा. अगर वोट परसेंटेज के हिसाब से देखें तो कांग्रेस को 39.09% वोट मिले हैं. जबकि BJP को इससे महज 0.85% वोट ज्यादा मिले, पार्टी को कुल 39.94% वोट मिले हैं. जबकि यहां आम आदमी पार्टी को करीब 1.8% वोट मिले हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक इंडिया अलायंस की साझेदार आम आदमी पार्टी कांग्रेस से 10 सीटें मांग रही थी. लेकिन इस पर बात नहीं बनी. AAP ने इसके बाद 29 सीटों पर कैंडिडेट उतार दिए. इसी तरह CPM का वोट शेयर भी करीब 0.25% रहा.
लेकिन अलायंस ना होने का घाटा सिर्फ वोट परसेंटेज कम होने में नहीं है. दरअसल अलायंस बनने से वोटर्स में कांग्रेस+ के और ताकतवर होने का मैसेज जाता, जिससे स्विंग वोटर्स में पार्टी को कुछ फायदा होने की संभावना और बढ़ जाती.
CM फेस डिक्लेयर ना करना पड़ा महंगा
जैसा ऊपर बताया कांग्रेस में 3 धड़े खींचतान में लगे हुए थे. दरअसल कुमारी शैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला और भूपिंदर सिंह हुड्डा में मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनने की होड़ थी. अगर आलाकमान पहले ही एक कैंडिडेट की घोषणा करता, तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं में ज्यादा साफगोई रहती. अगर कांग्रेस चेहरे की घोषणा के साथ शुरू में ही बाकी नेताओं को संतुष्ट करने में कामयाब रहती, तो बहुत हद तक तमाम नेताओं की आपसी प्रतिस्पर्धा को रोका जा सकता और उन्हें एक पेज पर लाया जा सकता.
जाट वोटों पर ज्यादा फोकस
कांग्रेस का मुख्य फोकस जाट वोटर्स पर रहा. पार्टी ने 28 प्रत्याशी जाट समुदाय से चुने. इसकी तुलना में BJP ने 16 जाट प्रत्याशियों को मैदान में उतारा. कांग्रेस गैर-जाट सीटों पर उतना सेंध लगाने में कामयाब नहीं हुई, जितनी जरूरत थी. ऊपर से हरियाणा में जाट वर्सेज नॉन जाट वोटर्स का अंडर करंट भी पार्टी के खिलाफ वोट कंसोलिडेशन में कामयाब रहा.