देश की जनता जिसे सबसे ज्यादा वोट दे, वो जीता. यही तो सीधा सा फॉर्मूला है जिसे दुनिया के तकरीब हर चुनावी प्रक्रिया में अपनाया जाता है. लेकिन सुपरपावर अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव थोड़ा हटके है.
आज से दो दशक पहले जब अमेरिका की नींव रखने वाले उनके फाउंडिंग फादर्स ने राष्ट्रपति चुनने के लिए एक प्रक्रिया बनाने की सोची, तो उन्होंने एक ऐसा कठिन सिस्टम चुना जिससे राष्ट्रपति का चुनाव न तो सिर्फ लोगों के वोट से तय हो और न ही कांग्रेस से. इसलिए उन्होंने एक ऐसा सिस्टम बनाया जिसमें अगर किसी कैंडिडेट को जनता का पूरा वोट भी मिल जाए तो भी इसकी गारंटी नहीं थी कि वो राष्ट्रपति बन सकता है.
अमेरिका का इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम
ऐसे में उन्होंने एक सिस्टम बनाया, जिसे इलेक्टोरल कॉलेज कहते हैं. यही वो सिस्टम है जिसकी वजह से अमेरिका के इतिहास में 5 बार ऐसा हुआ कि किसी कैंडिडेट को लोगों का एकतरफा वोट मिलने के बावजूद राष्ट्रपति कोई दूसरा बना. 2016 में, हिलेरी क्लिंटन को डॉनल्ड ट्रंप को ही ले लीजिए, हिलेरी को करीब 28 लाख ज्यादा वोट पड़े, लेकिन सरकार बनी ट्रंप की. साल 2000 में भी डेमोक्रैट अल गोर को 5 लाख से ज्यादा वोट मिले लेकिन राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे रिपब्लिकन जॉर्ज डब्ल्यू बुश.
इलेक्टोरल कॉलेट क्या है, अमेरिकी चुनाव की जटिल प्रक्रिया को आसानी से समझने की कोशिश करते हैं, ये कई चरणों में होती है.
प्रेसिडेंशियल प्राइमरीज
इसका आयोजन राज्य और लोकल अथॉरिटीज कराती हैं और इसमें सीक्रेट बैलट के जरिए पार्टीज प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट चुने जाते हैं. ये जरूरी नहीं है कि वोट देने वाले लोग किसी पार्टी से जुड़े हों.
कॉकस
कॉकस जो कि प्राइवेट इवेंट्स होते हैं इन्हें पॉलिटिकल पार्टीज करवाती हैं. इन इवेंट्स में ये तय किया जाता है कि हर पार्टी के लिए चुने गए कैंडिडेट्स में से राष्ट्रपति उम्मीदवार कौन होगा.
नेशनल कन्वेंशन
इस चरण में दोनों ही पार्टियां अपने-अपने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के फाइनल नामों का ऐलान होता है. मतलब ये बताती हैं कि उनकी पार्टी की तरफ से आधिकारिक रूप से कैंडिडेट कौन होगा. जैसे कि इस बार प्रेसिडेंट के पद के लिए सामने आया डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से डॉनल्ड ट्रंप का नाम है.
इलेक्टर्स का चुनाव
इलेक्टोरल कॉलेज वो प्रक्रिया है जिससे अमेरिकी अपने राज्य के मतदाताओं के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से अपने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. कुल 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोट हैं. राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए 270 या इससे ज्यादा चाहिए होंगे. जनरल इलेक्शन से पहले स्टेट इलेक्टर्स की लिस्ट का चयन करते हैं. नवंबर में मतदाता अपना वोट डालते हैं, उसके बाद, लोकप्रिय वोट जीतने वाला उम्मीदवार ये तय करता है कि वोटर्स का कौन सा समूह - रिपब्लिकन, डेमोक्रेट या कोई तीसरा पक्ष - राष्ट्रपति के लिए इलेक्टोरल कॉलेज में चुनावी वोट डालेगा.
जनरल इलेक्शन
इसमें अमेरिका के आम लोग वोट करते हैं, इसे पॉपुलर वोट कहते हैं, सबसे पहले वोटिंग के अगले दिन पॉपुलर वोट्स की गिनती की जाती है. इसमें मेल बैलेट्स, मिलिट्री बैलेट्स के जरिए वोटों की गिनती होती है. अगर कोई कैंडिडेड जीत भी जाता है तो वो राष्ट्रपति नहीं बन सकता. क्योंकि फैसला इलेक्टोरल कॉलेज के वोट से तय होता है.
इलेक्टर्स की मीटिंग
जब सारे वोट्स की गिनती हो जाती है तो इलेक्टोरल कॉलेज की बारी आती है. मध्य दिसंबर में इलेक्टर्स अपने संबंधित स्टेट्स में बैठक करते हैं. सभी इलेक्टर्स राष्ट्रपति के लिए वोट डालने को लेकर मिलते हैं. इस साल इलेक्टर्स 17 दिसंबर को मिल रहे हैं. आमतौर पर ऐसा होता आया है कि स्टेट्स अपने सभी वोट्स उसी को देते हैं जिसने पॉपुलर वोट्स जीता होता है. इसका पता भी 17 दिसंबर को चल जाएगा. इसके बाद 6 जनवरी को नई US कांग्रेस मिलती है और इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों की गिनती करती है. गिनती पूरी होने के बाद नए राष्ट्रपति का ऐलान होता है.