क्या हमारे रुपये का भी सारी दुनिया में वैसा ही डंका बज सकता है, जैसा पिछले कई दशकों से अमेरिकी डॉलर का बजता रहा है? ये सवाल इसलिए, क्योंकि रिजर्व बैंक के एक ग्रुप की ताजा सिफारिशों ने ऐसी उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं. आइए जानते हैं कि आखिर क्या है ये पूरा मामला.
दरअसल, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के एक इंटर-डिपार्टमेंटल ग्रुप (IDG) ने जुलाई 2023 के पहले सप्ताह में अपनी कुछ सिफारिशें पेश कीं. इनमें कहा गया कि भारतीय रुपये में अंतरराष्ट्रीय करेंसी बनने की पूरी क्षमता है. आसान शब्दों में कहें, तो ग्रुप ने भरोसा जताया कि हमारा रुपया भी एक दिन अमेरिकी डॉलर की तरह दुनिया भर में धूम मचा सकता है. RBI के ग्रुप ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की सलाह दी और इसके लिए कुछ उपाय भी सुझाए. अब आप पूछ सकते हैं कि आखिर रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का मतलब क्या है? आपके इस सवाल का जवाब भी आगे जानेंगे, लेकिन पहले एक नजर इस बात पर कि दुनिया में लंबे अरसे से क्यों कायम है डॉलर का वर्चस्व?
दुनिया के बाजार में अमेरिकी डॉलर का दबदबा दशकों से कायम है. ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय लेनदेन US डॉलर में ही होते हैं. तमाम देशों के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) में भी सबसे बड़ा हिस्सा US डॉलर का ही होता है. अमेरिकी करेंसी के इस वर्चस्व की वजह है उसकी अर्थव्यवस्था का विशाल आकार, फाइनेंशियल नेटवर्क का जबरदस्त विस्तार और फाइनेंशियल मार्केट्स की मजबूती और लिक्विडिटी. लेकिन कई जानकारों का मानना है कि किसी बेहतर विकल्प की कमी भी डॉलर के दबदबे की एक बड़ी वजह है. यही कारण है कि रिजर्व बैंक के ग्रुप की सिफारिशें सामने आने के बाद ये सवाल भी किए जाने लगे हैं कि क्या भारतीय रुपया आगे चलकर डॉलर के विकल्प की इस कमी को दूर कर सकता है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए करेंसी के अंतरराष्ट्रीयकरण का मतलब अच्छी तरह समझना जरूरी है.
किसी देश की करेंसी का 'अंतरराष्ट्रीयकरण' एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए इंटरनेशनल ट्रेड और क्रॉस-बॉर्डर लेन-देन में उस मुद्रा का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होने लगता है. मिसाल के तौर पर अगर वक्त के साथ साथ ज्यादा से ज्यादा इंटरनेशनल ट्रेड, इनवेस्टमेंट और पेमेंट सेटलमेंट भारतीय मुद्रा में होने लगें, तो इसे रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में आगे बढ़ने की प्रक्रिया कहा जा सकता है.
जब कोई व्यक्ति निजी तौर पर किसी दूसरे देश में जाकर अपने किसी लेनदेन के लिए या शॉपिंग के लिए रुपये का इस्तेमाल करता है, तो उसे 'रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण' नहीं कहा जा सकता. रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण का मतलब है इंटरनेशनल ट्रेड, इनवेस्टमेंट और क्रॉस बॉर्डर पेमेंट सेटलमेंट में भारतीय करेंसी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होना.
RBI के ग्रुप ने रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए कुछ लघुकालिक और कुछ दीर्घकालिक उपायों पर अमल का सुझाव दिया है. शॉर्ट टर्म उपायों में क्रॉस-बॉर्डर ट्रेड और इनवेस्टमेंट के लिए रुपये के इस्तेमाल को बढ़ावा देना, रुपया आधारित बॉन्ड जारी करना और दूसरे देशों के साथ मिलकर रुपये के क्लियरिंग नेटवर्क का विस्तार करना शामिल है. इसी तरह ग्रुप ने कुछ लॉन्ग टर्म उपाय भी सुझाए हैं. इनमें रुपये की ट्रेडिंग और सेटलमेंट के लिए मजबूत मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना, विदेशों में रुपये के मार्केट का विकास करना और फाइनेंशियल मार्केट रिफॉर्म्स को बढ़ावा देने जैसे उपाय शामिल हैं.
रिजर्व बैंक के आंतरिक ग्रुप ने रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिशों को सफल बनाने के लिए उसकी कन्वर्टिबिलिटी में सुधार करने की जरूरत पर भी जोर दिया है. ग्रुप का मानना है कि करंट एकाउंट कन्वर्टिबिलिटी को और आसान बनाने के साथ ही साथ कैपिटल एकाउंट ट्रांजैक्शन से जुड़ी बंदिशों को भी धीरे-धीरे कम करने की जरूरत है. ग्लोबल स्तर पर अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में रुपये के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए ऐसा करना जरूरी है.
RBI के आंतरिक ग्रुप ने विदशों में रुपये का मार्केट तैयार करने के लिए तमाम देशों में इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर्स यानी IFSC बनाने का सुझाव भी दिया है. इन सेंटर्स के जरिए विदेशी निवेशक रुपया आधारित (rupee-denominated) फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स में ट्रेडिंग कर पाएंगे. इनके अलावा IDG ने रुपी ट्रेड मेकेनिज्म (RTM) के नाम से एफिशिएंट और सुरक्षित पेमेंट सिस्टम विकसित करने की सलाह भी दी है. ग्रुप का मानना है कि रुपये के माध्यम से क्रॉस-बॉर्डर लेनदेन को आसान बनाने के लिए ऐसा सिस्टम होना जरूरी है.
रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण की कोशिश में जितनी सफलता मिलेगी, भारतीय कारोबारियों को उतना ही फायदा होने की उम्मीद की जा रही है. ऐसा इसलिए, क्योंकि इंटरनेशनल ट्रेड और लेनदेन बड़े पैमाने पर रुपये में होने पर भारतीय बिजनेस के लिए विदेशी मुद्राओं की कीमतों में होने वाले उथल-पुथल का जोखिम कम हो जाएगा. इससे विदेशी मुद्रा भंडार बरकरार रखने का दबाव भी कम हो जाएगा. इससे देश की अर्थव्यवस्था को बाहरी झटकों का सामना करने में भी मदद मिलेगी. इसके अलावा इससे अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भारत की साख और हैसियत भी बढ़ जाएगी.
ऐसा नहीं है कि रिजर्व बैंक सिर्फ कोरी बातें ही कर रहा है. दरअसल, उसने पिछले कुछ अरसे में भारतीय रुपये के अंतराष्ट्रीयकरण के लिए कई उपाय भी किए हैं. 15 जुलाई 2023 को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और यूनाइटेड अरब अमीरात (UAE) के सेंट्रल बैंक ने दो आपसी समझौतों (MoU) पर दस्तखत किए. इन समझौतों में दोनों देशों का आपसी व्यापार रुपये और दिरहम यानी UAE की करेंसी के जरिए करने की बात कही गयी है. इतना ही नहीं, करीब एक साल पहले यानी जुलाई 2022 में RBI ने बैंकों को रुपये में इंटरनेशनल ट्रेड सेटलमेंट करने की इजाजत भी दी थी. ये छोटे-छोटे कदम भारतीय करेंसी को अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में आगे बढ़ाने वाले माने जा रहे हैं. श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे हाल ही में कह चुके हैं कि उनका देश चाहता है, रुपये का इस्तेमाल उतने ही बड़े पैमाने पर किया जाए, जितना अमेरिकी डॉलर (US Dollar) का होता है. जाहिर है भारत के तमाम लोग एक अच्छा पड़ोसी होने के नाते श्रीलंका की इस ख्वाहिश को जल्द से जल्द पूरा करना चाहेंगे!