Telecommunication Bill 2023 Explained: टेलीकॉम और इंटरनेट कंपनियों के लिए भारत एक बड़ा बाजार है. सबसे ज्यादा आबादी (142 करोड़+) वाले इस देश में हर दिन करोड़ों लोग मोबाइल, इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. देश में टेलीकॉम सेवाओं का संचालन तीन कानूनों (Act) के तहत होता आ रहा है. 3 में से 2 कानून औपनिवेशिक काल के ही हैं, केवल 1 कानून आजादी के बाद का है.
केंद्र सरकार ने संसद के निचले सदन लोकसभा में टेलीकॉम बिल, 2023 का मसौदा पेश कर दिया है, जो 138 साल पुराने टेलीग्राफ एक्ट समेत तीनों पुराने कानूनों को रिप्लेस करेगा. संसद से पास होने के बाद ये बिल कानून का रूप लेगा और लागू हो जाएगा.
टेलीकॉम बिल 2023 देश में दूरसंचार सेवाओं के संचालन, नियमन और निगरानी के लिए तैयार किया गया बिल है, जो संसद से पास होने के बाद कानून का रूप लेगा. इसमें स्पेक्ट्रम की निलामी से लेकर संचार सेवाओं पर नियंत्रण और किसी तरह के उल्लंघन पर कार्रवाई के प्रावधान तय किए गए हैं. नया कानून, इंडियन टेलीग्राफ एक्ट (1885), इंडियन वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट (1933) और टेलीग्राफ वायर(Unlawful Possession) एक्ट (1950) को रिप्लेस करेगा.
टेलीकॉम बिल में एक अहम प्रावधान स्पेक्ट्रम की नीलामी व्यवस्था में बदलाव से जुड़ा है. सैटेलाइट कम्यूनिकेशंस के लिए कंपनियों को स्पेक्ट्रम नीलामी के जरिए देने की बजाय प्रशासनिक तरीके (Administrative Method) से दिया जाएगा. बिल में ये तय किया गया है कि किन परिस्थितियों में प्रशासनिक तरीके से स्पेक्ट्रम आवंटित किए जाएंगे.
बिल में एक अहम प्रावधान राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है. इसके मुताबिक, किसी इमरजेंसी पर सरकार टेलीकॉम सेवाओं या किसी मोबाइल नेटवर्क को अस्थाई तौर पर अपने कंट्रोल में ले सकती है या उसे सस्पेंड कर सकती है.
दो गुटों में संघर्ष या जातीय/धार्मिक दंगों की स्थिति में मोबाइल कंपनियों को सेवाएं सीमित या बंद करने के लिए कहा जाता रहा है. अब सरकार खुद ऐसा कर पाएगी. पब्लिक सेफ्टी के लिए सरकार किसी भी कंपनी का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकती है.
बिल में एक प्रावधान के मुताबिक, टेलिकॉम कंपनियों को सिम कार्ड जारी करने से पहले अनिवार्य रूप से उपभोक्ताओं की बायोमेट्रिक पहचान करनी होगी. हाल ही में सरकार ने एक पहचान कार्ड पर अधिकतम मोबाइल कनेक्शन की संख्या 9 तक सीमित कर दी है.
नए टेलीकॉम बिल में नियमों के उल्लंघन पर जुर्माने और सजा का भी प्रावधान है. इसके मुताबिक, जो कोई भी अवैध रूप से फोन कम्यूनिकेशन को बाधित करने का प्रयास करेगा, अनाधिकृत (Unauthorised) डेटा ट्रांसफर करने की कोशिश करेगा या टेलीकॉम नेटवर्क तक अवैध तरीके से पहुंच हासिल करने की कोशिश करेगा, उसे 3 साल तक के लिए जेल और 2 करोड़ रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
इस बिल में पहले ओवर-द-टॉप (OTT) और वॉट्सऐप जैसे इंटरनेट-आधारित कॉलिंग और मैसेजिंग ऐप्स को भी टेलीकम्युनिकेशन सर्विस की परिभाषा के तहत लाने का प्रस्ताव दिया गया था. लेकिन कंसल्टेशन पेपर पर पब्लिक और स्टेकहोल्डर्स से जो प्रस्ताव मिलें, उन पर विचार करने के बाद इन्हें बिल के दायरे से बाहर कर दिया गया.
अधिकारियों के मुताबिक, OTT प्लेयर्स से जुड़े मुद्दों को कैबिनेट की मंजूरी मिलने से पहले ही सुलझा लिया गया था. बिल में OTT और व्हाट्सऐप-टेलीग्राम जैसे ऐप्स को टेलीकम्युनिकेशन सर्विस की परिभाषा से हटा दिया गया है.
इस बिल को लेकर कुछ बिंदुओं पर विवाद की आशंका भी जताई जा रही है. सैटेलाइट कम्यूनिकेशंस के लिए प्रशासनिक तरीके से स्पेक्ट्रम आवंटन का नियम ग्लोबल सैटेलाइट सर्विस कंपनियों की मांग के मुताबिक है, जबकि जियो और वोडाफोन जैसी घरेलू कंपनियां इसके विरोध में रही हैं.
नए टेलीकॉम बिल में प्रस्ताव है कि दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए सरकार को प्रवेश शुल्क माफी, लाइसेंस शुल्क, जुर्माना वगैरह जैसे कदम उठाने की शक्ति दी जाए.
टेलीकॉम एक्सपर्ट डॉ प्रभात सिन्हा कहते हैं कि ये बिल टेलीकॉम रेगुलेटर अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) की शक्तियों को काफी हद तक कमजोर करता है. ऐसा हुआ तो TRAI केवल एक रबर स्टांप बनकर रह जाएगा.
सिन्हा ने बताया, 'बिल में TRAI के चेयरमैन पद पर प्राइवेट सेक्टर के कॉर्पोरेट अधिकारियों की नियुक्ति किए जाने का भी प्रावधान है. मसौदे के अनुसार, इस पद पर किसी ऐसे कार्यकारी को नियुक्त किया जा सकता है, जिसके पास कम से कम 30 साल का पेशेवर अनुभव है और उसने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के मेंबर या किसी कंपनी के CEO के तौर पर काम किया हो.' ये प्रावधान संभवतः एक बहस शुरू कर सकता है.
टेलीकॉम बिल 2023 को लोकसभा में मनी बिल यानी धन विधेयक के तौर पर पेश किया गया है. अमूमन सरकार अपनी वित्तीय योजनाओं को पूरा करने के लिए मनी बिल लाती है, जो राजस्व बढ़ाने और खर्च करने के लिए कानूनी ताकत देते हैं.
आलोचकों का कहना है कि लोकसभा की तरह राज्यसभा में सत्ता पक्ष बहुमत में नहीं है. अगर राज्यसभा में बिल का विरोध किया जा सकता था. मनी बिल की तरह पेश करने का एक मकसद, इसे संसद में बिना किसी बाधा के पारित कराना हो सकता है.
दरअसल मनी बिल और फाइनेंस बिल में मूल अंतर ये है कि फाइनेंस बिल को संसद के दोनों सदनों में पेश करना जरूरी होता है, जबकि मनी बिल को राज्यसभा में पेश करने की जरूरत नहीं पड़ती. यानी केवल लोकसभा से पास होने के बाद बिल को कानून का रूप दिया जा सकता है.