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BQ Explainer: क्‍या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, एक देश-एक कानून से क्‍या कुछ बदल जाएगा?

PM मोदी ने पहली बार UCC पर खुलकर बात रखी और इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि सरकार जल्‍द ही इसको लेकर कानून ला सकती है.
NDTV Profit हिंदीनिलेश कुमार
NDTV Profit हिंदी02:01 PM IST, 28 Jun 2023NDTV Profit हिंदी
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Uniform Civil Code Explained in Hindi. 'परिवार में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून हो तो क्या वो घर चल पाएगा? अगर एक घर में 2 कानून नहीं चल सकते तो फिर एक देश में 2 कानून कैसे चल सकते हैं.'

भोपाल में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये बात कही और देश में एक बार फिर से यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) यानी समान नागरिक संहिता पर बहस शुरू हो गई.

PM मोदी ने पहली बार UCC पर खुलकर बात रखी और इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि सरकार जल्‍द ही इसको लेकर कानून ला सकती है. UCC के मुद्दे पर 15 जून से ही 22वें लॉ कमीशन ने प्रक्रिया शुरू कर दी है और इस पर (membersecretary-lci@gov.in) लोगों की राय मांगी जा रही है.

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर PM मोदी के बयान के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इमरजेंसी मीटिंग की और तय किया कि लॉ कमीशन के अध्यक्ष से मुलाकात कर एक ड्राफ्ट सौंपा जाएगा. इस ड्राफ्ट में शरीयत के जरूरी हिस्सों का जिक्र होगा.

यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में विस्‍तार से समझने की कोशिश करते हैं. ये है क्‍या, क्‍यों इसका विरोध होता है, कानून बनने से क्‍या होगा और इसका क्‍या प्रभाव पड़ेगा?

क्‍या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?

यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा मतलब है, सभी नागरिकों के लिए समान कानून. फिर चाहे वो किसी भी धर्म, जाति, समुदाय या क्षेत्र से हो. इससे देश के सभी नागरिक समान रूप से प्रभावित होंगे. शादी-विवाह से लेकर तलाक, संपत्ति बंटवारे और बच्चा गोद लेने तक देश के सभी नागरिकों के लिए नियम-कानून एक समान होंगे.

संविधान में भी समान कानून का जिक्र

1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में समान नागरिक कानून का जिक्र करते हुए कहा गया था कि अपराधों, सबूतों जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है. हालांकि इसमें पर्सनल कानून से छेड़छाड़ की बात शामिल नहीं थी. देश की आजादी के बाद संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ भीमराव आंबेडकर ने IPC, CrPC, संपत्ति हस्तांतरण कानून, नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट का हवाला देते हुए कहा था कि व्‍यवहारिक रूप से देश में समान नागरिक संहिता लागू हैं.

अब बात करें संविधान की तो नीति निदेशक (Directive Principles) तत्वों में शामिल अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है. बहरहाल स्थिति ये है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ तो है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है.

'हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता'

थिंक टैंक सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी से जुड़े लोकनीति के जानकार अविनाश चंद्र कहते हैं, 'समान नागरिक संहिता का मतलब हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता लाना है. फिलहाल देश में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं. जैसे हिंदुओं के लिए अलग एक्ट, मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ.'

अविनाश कहते हैं, 'यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून होगा, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं होगा. ये सबके लिए समान होगा. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा. इसके तहत हर धर्म के कानूनों में सुधार और एकरूपता लाने पर काम होगा.'

UCC लागू हुआ तो क्‍या असर होगा?

  • यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हिंदुओं (बौद्ध, जैन और अन्‍य समेत), मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों के सभी तरह के पर्सनल कानून निरस्त हो जाएंगे.

  • अगर UCC लागू होता है तो देशभर में सभी धर्मों के नागरिकों के लिए शादी, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे को लेकर एक जैसे नियम-कानून होंगे.

  • UCC लागू होने से शादी की उम्र एक समान होगी. 21वें विधि आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, पंजीकरण के बिना शादी मान्‍य नहीं होगी. शादी का पंजीकरण नहीं कराने वाले परिवारों को सरकारी योजनाओं या सुविधाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा.

  • किसी भी धर्म के व्‍यक्ति को पत्‍नी के रहते एक से ज्‍यादा शादी करने पर रोक लग जाएगी. तलाक के लिए भी पति और पत्‍नी, दोनों को समान अधिकार मिलेंगे.

  • उत्तराधिकार के मामले में माता-पिता की संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर हक मिलेगा. वहीं बच्‍चा गोद लेने के मामले में भी सभी के लिए समान कानून लागू होंगे.

क्यों होता रहा है UCC का विरोध?

समान नागरिक संहिता के विरोध का इतिहास पुराना है. दिल्‍ली के कड़कड़डूमा कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली अधिवक्‍ता और लॉ फेलो शुभम भारती के अनुसार, जून 1948 में जब संविधान सभा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बताया था कि हिंदू समाज में भी कई छोटे अल्पसंख्यक समूह हैं, उनकी तरक्की के लिए पर्सनल लॉ में बदलाव जरूरी है, तब इसका विरोध हुआ था. तब सरदार पटेल, MA अयंगर, मदनमोहन मालवीय, पट्टाभि सीतारमैया और कैलाशनाथ काटजू जैसे नेताओं ने हिंदू पर्सनल कानूनों में सुधार का विरोध किया था.

1949 में भी हिंदू कोड बिल पर जब बहस हुई थी, तो 28 में से 23 वक्ताओं ने इसका विरोध किया था. सितंबर 1951 में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने स्पष्ट कहा कि अगर ऐसा कोई बिल पास हुआ तो वो अपना वीटो लगाएंगे. बाद में जवाहर लाल नेहरू ने इस कोड को तीन अलग-अलग एक्ट में बांटते हुए प्रावधानों को लचीला कर दिया था.

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में UCC पर सबसे ज्‍यादा आपत्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को रही है. इसका विरोध करने वालों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है. बोर्ड की आपत्ति है कि अगर सबके लिए समान कानून लागू कर दिया गया तो ये उनके अधिकारों का हनन होगा.

फिलहाल मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, मुसलमानों को चार शादियां करने का अधिकार है, जो UCC लागू होने के बाद नहीं रहेगा. उन्हें अपनी बीवी को तलाक देने के लिए कानून का पालन करना होगा. वे अपनी शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं कर सकेंगे, बल्कि उन्हें कॉमन सिविल कानून का पालन करना होगा.

देश की न्‍याय प्रणाली और विकास के लिए बेहतर

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्‍ता कुमार आंजनेय शानू कहते हैं, 'हर धर्म के अलग-अलग कानूनों से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है. कॉमन सिविल कोड देश की न्‍याय प्रणाली के लिए बेहतर साबित होगा. इसके आ जाने से देश की अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े उन हजारों मामलों का निपटारा जल्‍दी होगा, जो पर्सनल लॉ के प्रावधानों के चलते अटके पड़े हैं.'

दिल्‍ली यूनिवर्सिटी में साहित्‍य के शिक्षक और टिप्‍पणीकार डॉ प्रकाश उप्रेती कहते हैं कि UCC के लागू होने से सभी नागरिकों के लिए कानून में एकरूपता आएगी और इससे सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलेगा.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जहां हर नागरिक समान हो, उस समाज का, देश का विकास भी इससे प्रभावित होगा. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को अपनी ओर से जो बात रखनी हो, वो सरकार के पास रख सकते हैं.
डॉ प्रकाश उप्रेती, सहायक प्रोफेसर, दिल्‍ली यूनिवर्सिटी

गलगोटिया यूनिवर्सिटी में मीडिया शिक्षक डॉ भवानी शंकर मिश्र कहते हैं कि चूंकि भारत की छवि एक धर्मनिरपेक्ष देश की है. ऐसे में कानून और धर्म का आपस में कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए. सभी लोगों के साथ धर्म से परे जाकर समान व्यवहार लागू होना जरूरी है. UCC आने से मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी.

कई देशों में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड

पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसा कानून लागू है. इन देशों के अलावा मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और मिस्र समेत कई देशों में इसी तरह के कानून लागू हैं. फ्रांस, इटली, ब्राजील, क्‍यूबेक(कनाडा) के भी अपने सिविल कोड हैं.

UCC लागू करने वाला इकलौता राज्य है गोवा

समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा भारत में अपवाद है. गोवा में काफी पहले से UCC लागू है. संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा प्राप्‍त है और साथ ही इस राज्‍य को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है. यहां पर सभी धर्म और जाति के लोगों के लिए समान फैमिली लॉ लागू है. इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक और उत्तराधिकार के कानून समान हैं.

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