CoP28 Explained: ग्लोबल वॉर्मिंग, कार्बन एमिशन्स और जलवायु परिवर्तन, ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जो पूरी दुनिया के लिए चुनौती बने हुए हैं. दुनियाभर के देश कई वर्षों से इस समस्या का हल निकालने में भी लगे हैं और संयुक्त राष्ट्र (UN) की अगुवाई में होने वाले जलवायु सम्मेलन भी इन्हीं बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं.
संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की राजधानी दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक चलने वाला CoP28 सम्मेलन भी इसी दिशा में फोकस होगा और यहां जुटने वाले देश जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों के समाधानों की ओर बढ़ेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) CoP28 के लिए UAE के राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के आमंत्रण पर गुरुवार और शुक्रवार को दुबई में रहेंगे.
CoP यानी कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (Conference of Parties) यानी पार्टियों का सम्मेलन. और CoP28 का मतलब हुआ- पार्टियों का 28वां सम्मेलन.
आधिकारिक तौर पर, CoP28 का मतलब जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पक्षों के सम्मेलन (Conference of Parties) की 28वीं बैठक है. अलग-अलग देशों की मेजबानी में हर साल ये सम्मेलन होता है.
पहला CoP बर्लिन में 1995 में आयोजित किया गया था. अब तक CoP के 27 सम्मेलन हो चुके हैं. पिछले साल इजिप्ट (Egypt) के शर्म अल शेख में CoP 27 आयोजित किया गया था. और अब दुबई में CoP28 हो रहा है.
ये एक तरह से जलवायु परिवर्तन पर दुनिया का एकमात्र बहुपक्षीय निर्णय लेने वाला प्लेटफॉर्म है, जिसमें दुनिया के हर देश लगभग पूर्ण सदस्य के तौर शामिल हैं.
इस साल संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की मेजबानी में दुबई में ये सम्मेलन आयोजित हुआ है. 30 नवंबर से शुरू हुआ ये जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (CoP 28) 12 दिसंबर तक चलेगा.
कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और एनर्जी ट्रांजिशन को तेज करने के उद्देश्य से दुनियाभर के देश जुटेंगे. उम्मीद है कि सभी देशों से करीब 70,000 से अधिक प्रतिनिधि CoP28 में शामिल होंगे.
UAE की अध्यक्षता में 4 प्रमुख क्षेत्रों में बदलावों पर फोकस किया गया है:
2030 से पहले ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाना और उत्सर्जन में कटौती करना
पुराने वादों को पूरा करके और एक नए समझौते के लिए रूपरेखा तैयार करना और क्लाइमेट फाइनेंस में सुधार करना
प्रकृति, लोगों, जीवन और आजीविका को जलवायु कार्रवाई के केंद्र में रखना
अब तक के सबसे समावेशी CoP का गठन.
जलवायु परिवर्तन से निपटने के 2015 में हुए पेरिस समझौते में 195 देशों के नेताओं के बीच ग्लोबल वॉर्मिंग पर लगाम लगाने के लिए प्रयास तेज करने पर सहमति बनी थी.
ये तय किया था कि वैश्विक औसत तापमान (Global Average Temperature) का स्तर 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होने देना है. हालांकि कुछ रिसर्च रिपोर्ट्स बढ़ते तापमान के बीच पेरिस समझौते के लक्ष्य पर संदेह भी जताती हैं.
पेरिस समझौते के 8 वर्षों के बीच जलवायु सम्मेलनों में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की आवश्यकता जताई गई है, जो कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने के लिए जरूरी है.
ऐसे में CoP28 इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये पेरिस समझौते और इसके तहत 2030 तक निर्धारित लक्ष्यों की समयावधि का मध्य बिंदु है.
संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक उत्सर्जन में 2030 तक 2019 के स्तर से केवल 2% कम होने का अनुमान है, जबकि जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए 43% की कटौती की आवश्यकता है.
टॉप क्लाइमेट साइंटिस्ट्स के संगठन IPCC के अनुसार, 2019 के स्तर की तुलना में 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 43% की कटौती करने की आवश्यकता है.
इस सदी के अंत तक तापमान वृद्धि (Global Warming) को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के साथ और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों (गंभीर सूखा, हीटवेव, भारी बारिश और बाढ़) से बचना महत्वपूर्ण है.
CoP28 की मुख्य प्राथमिकताओं में जलवायु के प्रति जवाबदेही को मजबूत बनाना, प्रथम ग्लोबल स्टॉकटेक को पूरा करना और जलवायु परिवर्तन से होने वाली हानि और क्षति के लिए कोष (Fund) का संचालन करना है.
साथ ही जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से घटाने पर चर्चा करना और एक ऊर्जा परिवर्तन को सक्षम बनाना है.
इसके अलावा लचीली खाद्य प्रणालियां (Flexible Food Systems) विकसित करना, क्लाइमेट फाइनेंस और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों (Early Warning Systems) को विस्तार देना शामिल है.
दो हफ्ते तक चलने वाली CoP28 शिखर सम्मेलन में 'ग्लोबल स्टॉकटेक' शामिल होगा, ताकि ये पता लगाया जा सके कि दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को 1.5C से नीचे रखने के लक्ष्य से कितनी दूर है और इस अंतर को कम करने के लिए और क्या-क्या प्रयास किए जाने की जरूरत है.
उत्सर्जन शमन लक्ष्य (Emission Mitigation Target), जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करना, इंडस्ट्री से मिलने वाले समाधानों पर फोकस करना भी इसकी प्राथमिकताओं में शामिल है.
CoP28 जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने के लिए विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद कम करने, विकसित देशों से वित्तपोषण (जो कि अविकसित और विकासशील देशों को दिए जाएंगे) पर फोकस रहने वाला है.
इनके अलावा कम कार्बन उत्सर्जन के लिए इनोवेशन और अन्य जरूरी उपायों के लिए प्राइवेट सेक्टर के इन्वेस्टमेंट और प्रॉक्सी की सुधार भूमिकाएं भी शामिल है.
भारत की मेजबानी में G20 शिखर सम्मेलन के लिए दुनिया के 20 शक्तिशाली देशोंं के नेता दिल्ली में जुटे थे और 'दिल्ली डिक्लेरेशन' पर सहमति बनी थी. इसमें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरी उपायों को प्राथमिकता दी गई है.
भारत, सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले देशों में से एक है, जहां दुनिया की सबसे बड़ी आबादी भी रहती है. ऐसे में हमारे लिए CoP28 में होने वाली चर्चा ज्यादा महत्वपूर्ण है. भारत, इस सम्मेलन को लेकर महत्वाकांक्षी भी है और अहम सहभागी भी.
कृषि-प्रधान देश होने के चलते भारत हाई मीथेन एमिशन के लिए जिम्मेदार है. ऐसे में भारत के लिए मीथेन उत्सर्जन में कटौती CoP28 सम्मेलन में बड़ी चर्चा का विषय हो सकता है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार, खेती से उत्सर्जन में कटौती का मतलब खरीफ और रबी सीजन के फसल पैटर्न में बदलाव हो सकता है.
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ खेती ही नहीं, बल्कि तेल-गैस और कचरा/अपशिष्ट भी देश में मीथेन उत्सर्जन के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं. साथ ही देश में 'लक्जरी एमिशन' में कटौती करने की जरूरत है.
(Source: Bloomberg/UN News/PTI/IPCC Report)