देश के सॉलिसिटर जनरल रहे वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे का कहना है कि दुनियाभर में भारत की छवि हाल के दशक में बदली है. अब भारतीयों को ज्यादा सम्मान की नजर से देखा जाता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर के विवादों में भी भारत के रुख की अहमियत बढ़ी है.
BQ Prime के संजय पुगलिया ने आजादी के 76वें साल पर NDTV की स्पेशल इंटरव्यू सीरीज के तहत हरीश साल्वे से खास बातचीत की. इस दौरान हरीश साल्वे ने इकोनॉमी से लेकर गवर्नेंस तक और राजनीति से लेकर इंटरनेशनल ब्रैंडिंग तक कई मुद्दों पर खुलकर बात की. कुछ विवादित मुद्दों पर भी उन्होंने बेबाक टिप्पणी की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिप्लोमेसी और गवर्नेंस के दौरान जिस तरह भारत की छवि बदली है, उसे दुनिया किस तरह देखती है? इसी सवाल के साथ इंटरव्यू की शुरुआत हुई. संजय पुगालिया के सवाल पर हरीश साल्वे ने कहा कि दुनिया में भारतीयों के प्रति नजरिये में बदलाव आया है. भारतीयों को अब ज्यादा सम्मान की नजर से देखा जाता है.
उन्होंने कहा, 'पहले भारत को इस तरह देखा जाता था कि ये थर्ड वर्ल्ड कंट्रीज का देश है. मांगते घूम रहे हैं... ये वाली स्थिति 180 डिग्री घूम चुकी है. दुनिया भारत को अब इकनॉमिक पावर हाउस समझती है. भारत की करेंसी की अहमियत बहुत बढ़ी है. अब दुनियाभर के देश हमारी ओर देख रहे हैं कि हमारे साथ बिजनेस करो.
हरीश साल्वे ने कहा, 'अंतरराष्ट्रीय विवादों में भी भारत की अहमियत बढ़ी है. रूस-यूक्रेन युद्ध में दुनिया भारत की ओर देख रही है. हमारे प्रधानमंत्री को आज अमेरिका, ब्रिटेन या दुनिया के अन्य देश जिस तरह रिसीव कर रहे हैं, ऐसा पहले कभी नहीं था.
उन्होंने कुछ चीजों में बदलाव की जरूरत बताई. कहा, 'ईज ऑफ डुइंग बिजनेस पर केंद्र सरकार का, PMO का इतना फोकस है, लेकिन राज्यों के स्तर पर इम्प्लिमेंट का काम ठप हो जाता है.' उन्होंने कहा कि फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट को रिपील कर देना चाहिए.
हरीश साल्वे ने कहा, 'पर्यावरण पर जो कानून हैं, उसे दलदल बनाया हुआ है. जो फंस जाए तो बाहर आना मुश्किल है. मैं ये नहीं कह रहा कि इकोनॉमी पर कोई कॉम्प्रोमाइज होना चाहिए, लेकिन हमें खुद की इकोनॉमी पर भरोसा होना चाहिए.' उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की पोजिशन हमारी बड़ी सोच का सबूत है.
इस खास इंटरव्यू के दौरान हरीश साल्वे ने चुनावी हथकंडे के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली मुफ्तखोरी पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा, 'रेवड़ी कल्चर भी एक तरह का भ्रष्टाचार है. आप टैक्सपेयर्स का पैसा दोनों हाथों से बांटो, चुनाव जीतने के लिए, इससे घटिया राजनीति नहीं हो सकती.' उन्होंने कहा कि रेवड़ी कल्चर में भारत अलग ही रफ्तार से दौड़ रहा है.
भारत में तो 'रेवड़ी कल्चर' को हम एक अलग स्तर पर ले गए हैं. मैं आज पढ़ रहा था कि एक राज्य के मुख्यमंत्री अपने विधायकों से कह रहे थे कि वो पहले साल में उनके क्षेत्रों में विकास कार्य नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा करना है. हमने जनता से कहा था, चुनाव जिता दो, तो 40 हजार करोड़ रुपये देंगे. अब हम चुनाव जीत गए हैं, तो पैसा उन्हें देना है.हरीश साल्वे
उन्होंने कहा, 'भारत अकेला देश नहीं है, जहां ये सब हो रहा है. कई देशों में ऐसा हो रहा है. यूरोप में आप देख लीजिए, समाजवाद के नाम पर जो कुछ किया गया है, उससे वहां की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है.'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टिप्पणियों को बेहद अपमानजनक बताया. उन्होंने कहा, 'राहुल गांधी की 'मोदी सरनेम' को लेकर की गई टिप्पणियां बेहद अपमानजनक थीं. सार्वजनिक जीवन में रहने वाले किसी व्यक्ति से ऐसे बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती.'
ये बात इतनी अहम है, इसके लिए राहुल गांधी को दोषी ठहराया जाना चाहिए या नहीं, ये अलग मुद्दा है, लेकिन बात करने का बेहद अपमानजनक तरीका... आप लोगों पर झूठे आरोप लगा रहे हैं और फिर कहते हैं कि मैं सार्वजनिक जीवन में हूं.हरीश साल्वे
आगे उन्होंने कहा, 'हर कोई जानता है, वह कुछ भी कहें, लेकिन जब वह रात को सोते हैं, तो देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते हैं. क्या इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करने की आपकी हैसियत है...?'
हरीश साल्वे ने देश की उन मजबूत कोशिशों पर भी बात की, जो नीरव मोदी और विजय माल्या के प्रत्यर्पण के लिए की जा रही हैं, जबकि ब्रिटेन के साथ FTA यानी मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत भी जारी है. उन्होंने कहा, भारत FTA को लेकर ब्रिटेन के साथ 'बराबरी के दर्जे से' बातचीत कर रहा है.
इस बातचीत में उम्मीद से ज्यादा समय लगने को लेकर हरीश साल्वे ने कहा कि नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे भगोड़ों को वापस लाने की अपनी कोशिशों में भारत, ब्रिटेन पर इस प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए दबाव डाल रहा है.
उन्होंने कहा, 'ब्रिटेन में जो दिक्कत आ रही है, वो ये है कि प्रत्यर्पण का पहला कदम, यानी ज्यूडिशियल कार्यवाही, नीरव मोदी और विजय माल्या, दोनों के लिए पूरी हो चुकी है. अब आखिरी कदम उठाया जाना है, जब सभी कानूनी कदम पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब प्रत्यर्पण का दावा किया गया है.'
हरीश साल्वे ने कहा, 'FTA के लिए भारत बातचीत में जुटा है, और उसका रुख भी बिल्कुल सही है. आज हम बराबरी की शर्तों पर बात कर रहे हैं, इसलिए इसमें वक्त लग रहा है. भारत के साथ FTA पर दस्तखत करने की ब्रिटिश उत्सुकता का भारतीय भगोड़ों को भारत भेजने में देरी के साथ तालमेल नहीं बैठ रहा है. '
साल्वे ने कहा , 'मुझे पता है, जब भी कोई हाई लेवल मीटिंग होती है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूछते हैं, 'वे कहां हैं...? ब्रिटेन को भारतीय भगोड़ों का घर क्यों बनना चाहिए? तभी वे (ब्रिटेन) भारत के साथ FTA की बात करने लगते हैं. ये असंगत है.'
हरीश साल्वे ने कहा, 'भारत में मुकदमेबाजी को लेकर लोग घबराते हैं. पार्लियामेंट आर्बिटरेशन एक्ट में बदलाव करता रहता है. सुप्रीम कोर्ट भी अपने फैसलों में आर्बिटरेशन (मध्यस्थता) को रिकमेंड करता रहता है. लेकिन देश में जो हाल है, ज्यादातर मामलों में लोग आर्बिटरेशन पर भरोसा नहीं करते.' उन्होंने कहा कि मुकदमेबाजी को लेकर देश में माइंडेसट अभी ट्रांजिशन के फेज में है. हमें सोच बदलने की जरूरत है.
हरीश सॉल्वे ने कहा, 'मैं देश को आर्बिटरेशन सेंटर बनाने के समर्थन में नही हूं. यहां हर मामले में लोग आपत्ति जताते हुए कोर्ट चले जाते हैं. PIL डाल देते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. दूसरे देशों में कोर्ट के फैसले को चुनौती देना ज्यादा खर्चीला है. माइंडसेट बदलने की जरूरत है. दूसरे देशों के सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ कानूनी मुद्दों का समाधान होता है. भारतीय कोर्ट पर भरोसा बढ़ाने की जरूरत है.'
हरीश साल्वे ने भारत में जजों की नियुक्ति के मौजूदा सिस्टम पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा, 'भारत में जजों की नियुक्ति का तरीका ठीक नहीं है. दुनिया में कहीं भी जज ही जज की नियुक्ति नहीं करता. इसे खत्म करना चाहिए.'
उन्होंने कहा कि समस्याओं के लिए हर कोर्ट काे फर्स्ट स्टॉप शॉप होना चाहिए. उन्होंने फिर से वही बात दोहराई कि हर मामले की जांच की निगरानी करने की अपील सुप्रीम कोर्ट से ही नहीं होनी चाहिए. जो काम एक मजिस्ट्रेट का है, उसके लिए सुप्रीम कोर्ट चले आना सही नहीं.
साल्वे ने कई पुराने मामले का जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट का कानूनी मुद्दों पर नजरिया समय के साथ बदलता है.
कहा, 'नरसिम्हा राव सरकार ने पेचीदा राजनीति मुद्दों को कोर्ट के हवाले किया. सरकार कोर्ट के पीछे छिपना चाह रही थी. कोयला घोटाले से भारत की छवि बहुत खराब हुई. सुप्रीम कोर्ट ने कोयला खदानों के एलोकेशन को रद्द किया. कोयला घोटाले में असल दस्तावेज कोर्ट के सामने आते तो कुछ लोग फंस जाते. लेकिन आज की सरकार कहती है कि हम ही सबकुछ करेंगे, आप की जरूरत नहीं.' उन्होंने कहा कि सरकार एक्सपेरिमेंट कर सकती है, पर कोर्ट नहीं.