दुनिया की सबसे तेजी से उभरती भारतीय इकोनॉमी में एक दौर ऐसा था, जब शेयर मार्केट में ताबड़तोड़ IPO आ रहे थे. इन IPOs को निवेशकों का जबरदस्त रेस्पॉन्स मिल रहा था. मार्केट भी अपने उफान पर था और दर्जनों कंपनियां अपने इश्यू प्राइस से दोगुने भाव पर लिस्ट हुईं और निवेशक भी खूब मालामाल हुए. ये दौर अब थम चुका है.
पिछले 12 महीनों में IPOs की जो शुरुआत उत्साह और निवेशकों के जोश से भरी थी, वो अब एक चेतावनी भरी कहानी बन गई है. बाजार स्टाइल, ओला इलेक्ट्रिक, स्विगी, जूनिपर होटल्स जैसे कई बड़े नामों के शेयरों ने लिस्टिंग के बाद गिरावट देखी है.
कई कंपनियों के शेयर 35% से 50% तक गिर चुके हैं, जिससे निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. निवेशक, घाटे में ही शेयरों को बेचकर निकल रहे हैं. ये गिरावट कंपनियों की वैल्यूएशन, बाजार की स्थिति और आर्थिक माहौल पर सवाल खड़े कर रही है.
2024 और 2025 में IPO की बाढ़ आ गई थी. इसके पीछे कई कारण थे- आसान लिक्विडिटी, बुलिश मार्केट सेंटीमेंट के साथ-साथ प्राइवेटाइजेशन और कैपिटल मार्केट को बढ़ावा देने की सरकारी कोशिशें. रिन्यूएबल एनर्जी (ACME Solar), हेल्थकेयर (अकुम्स ड्रग्स), इलेक्ट्रिक व्हीकल (ओला इलेक्ट्रिक) और फूड डिलीवरी (स्विगी) जैसे सेक्टर्स की कंपनियों ने बाजार से खूब पैसा जुटाया.
निवेशकों ने भी इन IPO में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, उम्मीद करते हुए कि ये कंपनियां अगली बड़ी सफलता की कहानी लिखेंगी. कई सारे निवेशकों ने मोटी कमाई भी की, लेकिन जो रुके, उनका क्या?
ये उत्साह ज्यादा दिन नहीं चला. कई कंपनियों के शेयर, चाहे उनके बिजनेस मॉडल कितने भी आकर्षक क्यों न रहे हों, लिस्टिंग के बाद टिक नहीं पाए. महीनों के भीतर ही इनके शेयरों में भारी गिरावट आई और निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है.
अब जरा नीचे, चार्ट पर एक नजर दौड़ाइए.
SEBI के एक सर्वे के अनुसार, अच्छी लिस्टिंग गेन वाले IPO से निवेशक जल्द निकल जाते हैं. वहीं घाटे में लिस्टेड शेयरों में बने रहते हैं. जब IPO पर रिटर्न एक सप्ताह के भीतर 20% से अधिक रहा, व्यक्तिगत निवेशकों ने मूल्य के हिसाब से 67.6% शेयर बेचे.
इसके विपरीत, जब रिटर्न नकारात्मक था, तब निवेशकों ने मूल्य के हिसाब से केवल 23.3% शेयर बेचे. शेयर में बने रहना, निवेशकों की मजबूरी होती है, लेकिन जब लगातार मार्केट डाउन जाता है तो सेंटिमेंट पर असर पड़ता है. खासकर तब जब बड़ी उम्मीदों वाली कंपनियां परफॉर्म नहीं कर पातीं.
ओला इलेक्ट्रिक: 2024 के सबसे चर्चित IPO में से एक, ओला इलेक्ट्रिक के शेयर लिस्टिंग के छह महीने के भीतर ही करीब 20% गिर गए. कंपनी, जो खुद को भारत की इलेक्ट्रिक व्हीकल क्रांति का नेता बता रही थी, वो प्रोडक्शन में देरी, बढ़ती प्रतिस्पर्धा, मुनाफे और शिकायतों को लेकर चिंताओं से जूझ रही है.
स्विगी: फूड डिलीवरी जायंट का IPO कई गुना ओवरसब्सक्राइब हुआ, लेकिन इसके शेयर 15% तक गिर चुके हैं. निवेशक कंपनी के हाई कैश बर्न रेट और जोमैटो से प्रतिस्पर्धा को लेकर चिंतित हैं.
जूनिपर होटल्स: हॉस्पिटैलिटी सेक्टर की यह कंपनी अपने शेयरों में 35% की गिरावट देख चुकी है. लग्जरी होटल सेगमेंट में मांग की कमी और बढ़ते ऑपरेशनल खर्चों ने इसे नुकसान पहुंचाया.
ACME सोलर: रिन्यूएबल एनर्जी के वैश्विक प्रयासों के बावजूद, ACME सोलर के शेयर 37% गिर गए. कंपनी को रेगुलेटरी अड़चनों और प्रोजेक्ट एक्जीक्यूशन में देरी का सामना करना पड़ा.
गोपाल स्नैक्स: स्नैक्स इंडस्ट्री का यह बड़ा नाम शुरुआत में तो चला, लेकिन इसके शेयर 26% तक गिर गए. निवेशक प्रतिस्पर्धी बाजार में मार्जिन बनाए रखने की कंपनी की क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं.
बड़ी-बड़ी कंपनियाें के जो IPOs आए, उनमें रिटेल इन्वेस्टर्स ने खूब पैसे झोंके. लेकिन पिछले कुछ महीनों में मार्केट की उथल-पुथल के बीच लोगों का सेंटिमेंट बिगड़ गया है. दूसरी ओर, हजारों-लाखों इन्वेस्टर्स पैसे उधार लेकर लगाते हैं, इसके लिए वे IPO फंडिंग का सहारा लेते हैं. बहुत सारे इन्वेस्टर्स मार्जिन में शेयर खरीदते हैं. ब्रोकर और ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म उन्हें ये सुविधा देती तो हैं, लेकिन स्टॉपलॉस के साथ. मार्केट ज्यादा गिरने पर ये स्टॉपलॉस ट्रिगर हो जाता है और इन्वेस्टर्स ये घाटा सहने के लिए मजबूर होते हैं.
ओवरवैल्यूएशन: कई कंपनियां बाजार में इतने ऊंचे वैल्यूएशन के साथ आईं कि उनके फंडामेंटल्स उन्हें सपोर्ट नहीं कर पाए. जैसे, ओला इलेक्ट्रिक और स्विगी का वैल्यूएशन उनकी कमाई और मुनाफे से कहीं ज्यादा था.
बाजार की अस्थिरता: पिछले कुछ समय से ग्लोबल इकोनॉमिक माहौल में अनिश्चितता बनी हुई है. ब्याज दरों में बदलाव, महंगाई और जियोपॉलिटिकल टेंशन ने निवेशकों के मनोबल को झटका दिया है.
नौसिखियों की भीड़: IPO बूम में रिटेल निवेशकों की भागीदारी बढ़ी, लेकिन कई निवेशकों के पास कंपनियों के फंडामेंटल्स को समझने की विशेषज्ञता नहीं थी. IPO की बाढ़ के बीच रिटेल इन्वेस्टर्स की भी बाढ़ आ गई.
कमजोर फाइनेंशियल्स: कई कंपनियों के फाइनेंशियल्स कमजोर थे, जिनमें हाई डेट और नेगेटिव कैश फ्लो शामिल था. जैसे, कैरारो इंडिया और टोलिन्स टायर्स जैसी कंपनियां, निवेशकों को अपनी लॉन्ग टर्म प्रॉफिटैबिलिटी के बारे में आश्वस्त नहीं कर पाए.
सेक्टर-स्पेसिफिक चुनौतियां: इलेक्ट्रिक व्हीकल, रिन्यूएबल एनर्जी, हॉस्पिटैलिटी समेत कई सेक्टर्स को सप्लाई चेन की दिक्कतों, रेगुलेटरी सख्ती और बदलती ग्राहक प्राथमिकताओं का सामना करना पड़ रहा है.
मार्केट एक्सपर्ट्स कहते हैं कि SEBI लिस्टिंग के साथ-साथ वैल्युएशन को लेकर नियमों को सख्त करने पर जोर देता रहा है, ताकि कंपनियां पारदर्शी और उचित वैल्युएशन प्रस्तुत करे. कंपनियों को भी सस्टेनेबल डेवलपमेंट और प्रॉफिटैबिलिटी पर ध्यान देना चाहिए, न कि केवल बाजार के मूड पर निर्भर रहना चाहिए.
कुल मिलाकर देखा जाए तो साल 2024-25 का IPO बूम निवेशकों के लिए एक मिश्रित अनुभव रहा. जहां इसने कंपनियों को पूंजी और निवेशकों को नए अवसर दिए, वहीं इसकी गिरावट ने सट्टेबाजी के जोखिम का मुद्दा उठाया है. सभी स्टेकहोल्डर्स को इन अनुभवों से सीखकर एक मजबूत और पारदर्शी इकोसिस्टम बनाने की जरूरत की ओर इशारा करती है. फिलहाल के लिए ये कहानी एक चेतावनी है कि शेयर बाजार में हर चमकती चीज सोना नहीं होती.
पिछले एक साल में लिस्ट हुई कंपनियों के शेयरों में गिरावट, न केवल उन कंपनियों और रेगुलेटर्स, बल्कि निवेशकों के लिए भी एक सबक है. NDTV Profit के साथ बातचीत में विजय केडिया, मधुसूदन केला जैसे बड़े मार्केट एक्सपर्ट्स कई बार इस बात पर जोर दे चुके हैं कि खासकर रिटेल निवेशकों को कंपनियों के फंडामेंटल्स पर ध्यान देना चाहिए, न कि केवल बाजार के जोश पर.
बहरहाल सच ये भी है कि इतनी बड़ी गिरावट के बाद ये शेयर काफी सस्ते हो गए हैं. कई कंपनियों के पास बहुत अच्छा बिजनेस है और ये गिरावट इनमें निवेश का एक मौका है. मिसाल के तौर पर जूनिपर होटल्स देश में हयात ब्रैंड के फ्राइव स्टार होटल का सबसे बड़ा ऑपरेटर है. स्विगी फूड डिलिवरी और क्विक कॉमर्स की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है और अभी इन्वेस्टमेंट के फेज में है. ब्रेन बीज फर्स्ट क्राई के नाम से ऑनलाइन बच्चों के कपड़े बेचती है. इन जैसी कई कंपनियां हैं, जिनमें निवेशक अपने सलाहकार की मदद से निवेश कर सकते हैं.