हाल में CMIE की एक रिपोर्ट आई, जिसमें अक्टूबर में भारत के युवाओं में बेरोजगारी दर के बढ़कर 10% होने की बात कही गई. लेकिन PLFS की हालिया वार्षिक रिपोर्ट में कुल बेरोजगारी दर के गिरकर 3.2% होने की बात का उल्लेख है.
तो सवाल उठता है कि क्या आंकड़ों के खेल में उलझकर हम भारत में बेरोजगारी की सही तस्वीर नहीं देख पा रहे हैं? SBI ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष ने इस तरह के कैलकुलेशन पर कुछ जरूरी सवाल उठाए हैं.
BQ प्राइम की तमन्ना इनामदार के साथ इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब दिए हैं.
सौम्य कांति घोष कहते हैं कि 'भारतीय श्रम बाजार में स्वरोजगार का शेयर हमेशा भारत में 50% से ज्यादा रहा. इसलिए ये कहना कि स्वरोजगार बीते 2 सालों में 50% से ज्यादा हो गया है, ये तथ्यात्मक तौर पर सही नहीं है.'
वे आगे कहते हैं, 'इन स्वरोजगार के उद्यमों में बड़ी संख्या फैमिली वर्कर्स की रही है. बीते 2 से 3 साल में इनकी संख्या और बढ़ी है. इनमें से हर किसी को काम का अलग पैसा नहीं दिया जाता. बल्कि ये लोग अपने उद्यम को लाभदायक बनाने के लिए मिलकर काम करते हैं. बीते सालों में फॉर्मल सेक्टर से इन्हें लोन और क्रेडिट मिलने के चलते इन्होंने अच्छी ग्रोथ की है. ऐसे में ये कहना कि इन लोगों के पास पैसा नहीं है, जिसके चलते इनफॉर्मल लेबर मार्केट तनाव में है, ये गलत है.'
मतलब सौम्य कांति साफ तौर पर कह रहे हैं कि डेटा की तरफ देखकर इनफॉर्मल लेबर मार्केट के तनाव में होने की बात सही नहीं है.
CMIE के आंकड़ों में अक्टूबर में युवाओं में 10% बेरोजगारी की बात सामने आई थी. सौम्य कांति घोष कहते हैं कि 15 से 29 साल के लोगों के बीच रोजगार का ये अनुमान सही तस्वीर पेश नहीं करता.
वे कहते हैं, 'पढ़ने वाले लोगों को बेरोजगारों में नहीं गिनना चाहिए. ये लोग कुछ समय बाद नौकरियां ज्वाइन करेंगे. मतलब एजुकेशन को अनएम्प्लॉयमेंट में एडजस्ट करना चाहिए. बल्कि अगर 15 से 59 साल की वर्किंग पॉपुलेशन का डेटा अगर हम लेते हैं, तो वो सही तस्वीर पेश करता है, जहां बेरोजगारी दर काफी कम 3.2% है.'
लेबर मार्केट की समस्याओं पर बात करते हुए सौम्य कांति कहते हैं कि भारत में रोजगार तो बड़ा मुद्दा है ही, लेकिन रोजगार की क्वालिटी भी बड़ा इश्यू है.
वे EPFO रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं कि भारत में बड़ी संख्या में ऐसी नौकरियां मौजूद हैं, जो महीने का 15,000 से 20,000 तक भुगतान करती हैं. लेकिन ये भुगतान काफी नहीं है.
सौम्य कांति कहते हैं कि 'भारत को ग्लोबल वैल्यू चेन में खुद का इंटीग्रेशन करना चाहिए. इससे भारत को मैन्युफैक्चरिंग वैल्यू चेन में ऊपर जाने का मौका मिलेगा. इसी जगह भारत अच्छी क्वालिटी वाली नौकरियों का सृजन कर सकेगा.'
सौम्य कांति घोष के मुताबिक, 'भारत के पास ऐसी रोजगार नीति होनी चाहिए, जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों पर ध्यान दे. बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में 40% से ज्यादा आबादी नौकरियों की तलाश में है. जबकि दक्षिण भारत का इलाका ज्यादा समृद्ध है. तो अगर सरकार मैन्युफैक्चरिंग प्लांट या स्पेशल इकोनॉमिक जोन जैसी योजनाएं लाती है, तो इस तरह के क्षेत्रीय विभाजन को दिमाग में रखा जाना चाहिए.'
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