निवेशक चाहे इक्विटी के हों या रियल एस्टेट और गोल्ड के हों, एक टैक्स ऐसा है जो कंफ्यूज भी करता है और परेशान भी. कैपिटल गेन्स टैक्स जिसमें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स दोनों शामिल हैं. देश में इस टैक्स रिजीम का स्ट्रक्चर थोड़ा जटिल है.
पिछले कई बजट से आम निवेशकों से लेकर तमाम टैक्स एक्सपर्ट्स इसमें बदलाव की मांग कर रहे हैं. कई निवेशक तो इक्विटी पर LTCG को खत्म करने की भी मांग करते हैं. बजट में किसकी कितनी मांग पूरी होगी ये तो 23 जुलाई को ही तय होगा लेकिन पहले ये समझना जरूरी है कि देश में मौजूदा कैपिटल गेन्स टैक्स स्ट्रक्चर कैसा है और क्यों इसमें बदलाव की मांग हो रही है?
टैक्स स्ट्रक्चर से पहले ये समझना जरूरी है कि कोई एसेट क्लास कितने दिन में लॉन्ग टर्म के लिए क्वालिफाई कर जाता है. इक्विटी और इक्विटी म्यूचुअल फंड के लिए ये अवधि 1 साल की है. रियल एस्टेट में इसे 2 साल रखा गया है और गोल्ड अगर आप 3 साल तक होल्ड करते हैं तो ये लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस के लिए क्वालिफाई कर जाता है. लिस्टेड कॉरपोरेट बॉन्ड और गवर्मेंट सिक्योरिटीज (G-Secs) के लिए लॉन्ग टर्म एसेट क्वालिफाई करने की अवधि 1 साल है वहीं अनलिस्टेड डेट सिक्योरिटीज को 3 साल बाद लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के लिए शामिल किया जाता है.
अब इसका टैक्सेशन समझिए. अगर आपका निवेश LTCG के तहत आता है तो इक्विटी और इक्विटी म्यूचुअल फंड से हुए 1 लाख से ऊपर के मुनाफे पर 10% की दर से टैक्स लगेगा. STCG में टैक्स की दर 15% रखी गई है. रियल एस्टेट के लिए STCG की दर इनकम टैक्स स्लैब के मुताबिक रहेगी लेकिन LTCG में इंडेक्सेशन के साथ 20% का टैक्स लगता है. अगर आपका निवेश सोने में है तो STCG में आपको टैक्स स्लैब के मुताबिक ही टैक्स देना होगा वहीं LTCG के लिए इंडेक्सेशन के साथ 20% का टैक्स देना होगा.
लिस्टेड कॉरपोरेट बॉन्ड और गवर्मेंट सिक्योरिटीज (G-Secs) के निवेशकों को STCG में टैक्स स्लैब के मुताबिक टैक्स देना होगा वहीं LTCG होने पर बिना इंडेक्सेशन के 10% टैक्स देना होगा. वहीं अनलिस्टेड डेट सिक्योरिटीज पर STCG तो टैक्स स्लैब के मुताबिक लगेगा लेकिन यहां LTCG पर इंडेक्सेशन के साथ 20% टैक्स देना होगा.
यहां ध्यान देने की बात ये है कि फिक्स इनकम म्यूचुअल फंड पर जो भी गेंस होंगे उनपर आपको स्लैब रेट पर ही टैक्स देना होगा.
अब आपने देख ही लिया कि अलग-अलग एसेट क्लास के लिए होल्डिंग पीरियड अलग है. LTCG की दरें अलग हैं. STCG की दरें अलग हैं. कहीं इंडेक्सेशन का फायदा है तो कहीं नहीं, जो चर्चा इस वक्त है वो ये है कि सरकार इस टैक्स स्ट्रक्चर को आसान बनाए ताकि रिटेल निवेशकों को अपना टैक्स कैलकुलेट करने और समझने में आसानी हो.
NDTV Profit से बात करते हुए EY इंडिया के इंटरनेशनल टैक्स और ट्रांजैक्शन सर्विसेज लीडर प्रणव सायता ने इसे आसान बनाने पर जोर दिया. उनका मानना है कि इस बजट में सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए
मौजूदा LTCG और STCG टैक्स स्ट्रक्चर काफी जटिल है. अलग-अलग एसेट क्लास के लिए होल्डिंग पीरियड अलग है. टैक्स का ट्रीटमेंट भी अलग-अलग है, इससे टैक्सपेयर्स को काफी परेशानी होती है. एक अच्छा टैक्स रिजीम बिल्कुल आसान होना चाहिए ताकि टैक्सपेयर अपनी टैक्स देनदारी का अंदाजा लगा सके. बजट में इसे आसान बनाने की जरूरत है.प्रणव सायता, EY इंडिया
अब देखना ये होगा कि वित्त मंत्री जी इस पर क्या फैसला करेंगी.