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Budget 2024: सरकारी खजाने में कहां से आता है रुपया और कैसे होता है खर्च? एक दशक में क्या हुआ बदलाव

पिछले एक दशक में, भारत सरकार के बजट से रुझानों में कई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं, जो देश की उभरती आर्थिक प्राथमिकताओं और चुनौतियों को दर्शाते हैं.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी07:21 PM IST, 22 Jul 2024NDTV Profit हिंदी
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केंद्र सरकार हर साल बजट (Budget 2024) में अपनी आमदनी और खर्च का हिसाब-किताब पेश करती है. जिसमें ये भी बताया जाता है कि सरकार के पास खर्च के लिए रुपये कहां से आते हैं और फिर उसे बजट के जरिये कहां-कहां खर्च किया जाता है. बजट में सरकार अपनी प्राथमिकताओं का ख्याल रखते हुए कमाई और खर्च के बीच तालमेल बनाने की कोशिश करती है.

दुनिया के ज्यादातर दूसरे देशों की तरह ही अपने यहां भी खर्च आमतौर पर आमदनी से ज्यादा होता है. इस खर्च के लिए फंड के इंतजाम का ब्योरा भी बजट में दिया जाता है, जिसमें लोन यानी कर्ज की बड़ी भूमिका रहती है. सरकार की आमदनी और खर्च को आसान भाषा में समझने के लिए बजट के साथ ये ब्योरा एक पाई चार्ट के रूप में दिया जाता है. इसमें बताया जाता है कि सरकारी खजाने में हर एक रुपया कहां से आता है और फिर कहां खर्च होता है.

भारत सरकार कहां से लाती है रुपया?

भारत सरकार के पास रुपया मुख्य रूप से दो तरह के स्रोतों से आता है: रेवेन्यू रिसीट्स (Revenue Receipts) और कैपिटल रिसीट्स (Capital Receipts). जिसमें अलग-अलग तरह की कमाई को शामिल किया जाता है:

1. रेवेन्यू रिसीट्स (Revenue Receipts):

कर राजस्व (Tax Revenue)

इसमें डायरेक्ट टैक्स (मसलन इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स) और इनडायरेक्ट टैक्स (जैसे GST, कस्टम ड्यूटी और एक्साइज ड्यूटी) शामिल हैं.

गैर-कर राजस्व (Non-Tax Revenue):

इसमें सरकारी शेयरहोल्डिंग वाली कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड, ब्याज से होने वाली आय और अलग-अलग सेवाओं की फीस से हुई आमदनी शामिल है.

2. कैपिटल रिसीट्स (Capital Receipts):

उधार और अन्य देनदारियां (Borrowings and Other Liabilities): सरकार अपने राजकोषीय घाटे यानी फिस्कल डेफिसिट को फाइनेंस करने के लिए उधार लेती है.

गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियां (Non-Debt Capital Receipts): इसमें कर्जों की वसूली और विनिवेश से हुई आय शामिल हैं.

अंतरिम बजट में रुपया आने का अनुमान

1 फरवरी 2024 को पेश अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने अगले वित्त वर्ष यानी 2024-25 के लिए केंद्र सरकार के पास जमा होने वाले हर एक रुपये के स्रोत का जो अनुमानित ब्योरा दिया था, उस पर नजर डालने से ये बात और साफ हो जाएगी.

इस विवरण के मुताबिक सरकारी खजाने में आने वाले एक रुपये में सबसे ज्यादा 28 पैसे का योगदान लोन और अन्य लायबिलिटी (Borrowings & Other liabilities) का है, जबकि इनकम टैक्स का योगदान 19 पैसे, कॉरपोरेट टैक्स का 17, कस्टम्स का 4 पैसे, केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी का 5 पैसे, GST का 18 पैसे, नॉन-टैक्स रिसीट्स का 7 पैसे और नॉन-डेट कैपिटल रिसीट्स का योगदान 2 पैसे रहने का अनुमान है. 

अंतरिम बजट में रुपया जाने का अनुमान

2024-25 के अंतरिम बजट में रुपया ‘कहां जाता है’ के बारे में जो अनुमानित आंकड़े दिए थे, उनके मुताबिक 1 रुपये में से सबसे ज्यादा, 20 पैसे, ब्याज के भुगतान में खर्च होने हैं, जबकि इतने ही यानी 20 पैसे टैक्स कलेक्शन में राज्यों की हिस्सेदारी के तौर पर दिए जाने हैं. इसके अलावा सेंट्रल सेक्टर स्कीम्स पर 16 पैसे, डिफेंस पर 8 पैसे, वित्त आयोग और अन्य ट्रांसफर पर 8 पैसे, केंद्र द्वारा स्पॉन्सर्ड स्कीम पर 8 पैसे, सब्सिडी पर 6 पैसे, पेंशन पर 4 पैसे और अन्य मदों में 9 पैसे खर्च होने हैं. 

एक दशक में क्या हुआ बदलाव 

पिछले एक दशक में, भारत सरकार के बजट से रुझानों में कई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं, जो देश की उभरती आर्थिक प्राथमिकताओं और चुनौतियों को दर्शाते हैं. पिछले वित्त वर्ष यानी 2023-24 में केंद्र सरकार की ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू 33,61,390 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो उसके पिछले वित्त वर्ष से लगभग 10.5% अधिक है. कुल टैक्स रेवेन्यू में डायरेक्ट टैक्स का हिस्सा 2014-15 में 56.32% था, जो 2023-24 (BE) में बढ़कर 58.52% हो गया. इसे अधिक प्रोग्रेसिव टैक्सेशन का संकेत माना जा सकता है. डायरेक्ट टैक्स में भी अब पर्सनल इनकम टैक्स का योगदान सबसे अधिक हो चुका है. 

2017 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) के लागू होने की वजह से इनडायरेक्ट टैक्सेशन के क्षेत्र में बड़ा बदलाव देखने को मिला है. इसकी वजह से जीएसटी टैक्स कलेक्शन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. जून 2024 में कुल जीएसटी कलेक्शन 1.74 लाख करोड़ रुपये रहा है. 

सरकारी खर्च में क्या हुआ बदलाव 

पिछले एक दशक के दौरान सरकारी खर्च में आए बदलाव को हम कुछ प्रमुख क्षेत्रों में बांटकर समझ सकते हैं : 

डिफेंस : 2013-14 में देश का रक्षा बजट 2.22 लाख करोड़ से रुपये अधिक था, जो 2023-24 के दौरान बढ़कर 5.94 लाख करोड़ रुपये हो चुका था. 

सब्सिडी : '3F' यानी फूड, फर्टिलाइजर और फ्यूल सब्सिडी में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं. फूड सब्सिडी 2014-15 के 1,17,671.16 करोड़ रुपये की तुलना में नाटकीय रूप से बढ़कर 2020-21 में 5,41,330.14 करोड़ रुपये के शिखर पर पहुंच गई.

ऐसा COVID-19 महामारी के कारण हुआ था. लेकिन 2024-25 के अंतरिम बजट में इसके एक बार फिर घटकर 2,05,250.01 करोड़ रुपये पर आ जाने का अनुमान लगाया गया. इसी दौरान फ्यूल सब्सिडी 2014-15 के 60,268.82 करोड़ रुपये से घटकर 2024-25 के बजट अनुमान में 11,925.01 करोड़ रुपये हो गई. इन्हीं सालों के दौरान फर्टिलाइजर सब्सिडी 71,075.62 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,63,899.8 रुपये पर पहुंच गई.  

इंफ्रास्ट्रक्चर :  बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 2023-24 में कैपिटल एक्सपेंडीचर को 33% बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर दिया गया, जिसका उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करना है.

सामाजिक क्षेत्र: शिक्षा मंत्रालय के लिए आवंटन 2013-14 में 63,449 करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 1,12,899 करोड़ रुपये हो गया. इसी तरह, स्वास्थ्य बजट 2013-14 के 37,330 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 89,155 करोड़ रुपये हो गया. 

ब्याज भुगतान: ये लगातार सबसे बड़े खर्च में एक रहा है. ब्याज भुगतान 2013-14 में 3,74,254 लाख करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 10,79,971 करोड़ रुपये होने का अनुमान है.

केंद्र सरकार के बजट में आमदनी और खर्च से जुड़े रुझानों में पिछले एक दशक के दौरान आए ये बदलाव बदलती आर्थिक हकीकतों और पॉलिसी से जुड़ी प्राथमिकताओं को दिखाते हैं. इस दौरान GST का लागू होना देश में इनडायरेक्ट टैक्स के लिहाज से एक बड़ा गेम-चेंजर साबित हुआ है.

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