इकोनॉमिक सर्वे 2023-24 के अनुसार, इंडियन इकोनॉमी को बढ़ते वर्कफोर्स को समायोजित करने के लिए 2030 तक गैर-कृषि क्षेत्र में सालाना करीब 78.5 लाख नौकरियां पैदा करनी होंगी. सोमवार को संसद में पेश किए गए सर्वे में इस जरूरत पर बल दिया गया है.
इकोनॉमिक सर्वे में इस बात पर विशेष बल दिया गया कि काम करने की उम्र वाले सभी लोग रोजगार नहीं तलाशेंगे, बल्कि इनमें स्वरोजगार करने वाले और नौकरियां लेने की बजाय नौकरियां देने वाले भी होंगे. सर्वे में कहा गया है कि नौकरी की बजाय रोजगार, आजीविका पैदा करने पर फोकस है, जिसके लिए सरकारी और प्राइवेट, दोनों को मिलकर काम करने की जरूरत है.
केंद्र सरकार ने इकोनॉमिक सर्वे में रोजगार के मुद्दे पर आलोचनाओं को नकारते हुए आंकड़ों के जरिए बताया है कि छोटी से लेकर बड़ी कंपनियों तक नौकरियां बढ़ी हैं. वहीं, कृषि क्षेत्र में भी लोगों को काम मिला है, जिनके चलते माइग्रेशन में कमी आई है.
रोजगार सृजन के मामले में, क्वार्टरली लेबर फोर्स सर्वे के जरिए शहरी रोजगार और ग्रामीण रोजगार के बारे में डेटा मिलता है. इस सर्वे से पता चला है कि एग्रीकल्चर सेक्टर में रोजगार बढ़ने से लोग गांवों की ओर लौटे हैं. ग्रामीण भारत में वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढ़ी है.
इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि वर्कफोर्स में एग्री सेक्टर की हिस्सेदारी धीरे-धीरे घटकर 2047 में 25% रह जाएगी, जो 2023 में 45.8% थी.
सुझाव दिया गया है कि गैर-कृषि क्षेत्र में हर वर्ष 78.5 लाख नौकरियों की मांग पूरी करने में PLI स्कीम्स (5 साल में 60 लाख जॉब क्रिएशन), मित्र कपड़ा योजना (20 लाख जॉब क्रिएशन) और PM-मुद्रा लोन जैसी मौजूदा योजनाएं पूरक भूमिका निभा सकती हैं.
सर्वे में लगभग 2 लाख भारतीय फैक्ट्रीज में कामकाजी लोगों के डेटा को शामिल किया गया है. 2013-14 और 2021-22 के बीच फैक्ट्रीज में कुल नौकरियों की संख्या में सालाना 3.6% की ग्रोथ हुई है.
संतोष की बात ये है कि 100 से ज्यादा श्रमिकों को रोजगार देने वाले फैक्ट्रीज, छोटी फैक्ट्रीज (100 से कम कर्मचारी वाले) की तुलना में 4% ज्यादा तेजी से बढ़े हैं. इस अवधि में देश की फक्ट्रियों में रोजगार 1.04 करोड़ से बढ़कर 1.36 करोड़ हो गया है.
इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि भारत को एक के बाद एक दो बड़े आर्थिक झटके लगे. बैंकिंग सिस्टम में बैड डेट (Bad Debt) और कॉरपोरेट लोन का उच्च स्तर एक झटके जैसा था. और फिर पहले झटके के तुरंत बाद कोविड महामारी के रूप में दूसरा झटका लगा. इसके बाजवूद भारतीय अर्थव्यवस्था ने शानदार प्रदर्शन किया है और रोजगार के मौके बढ़े हैं. इसलिए ऐसा कह देना सही नहीं होगा कि इंडियन इकोनॉमी की जॉब क्रिएशन क्षमता कमजोर है.
इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, भारतीयों की बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने और विकसित भारत@2047 तक की यात्रा पूरी करने के लिए देश को पहले से कहीं अधिक समझौतों की जरूरत है. इसमें पब्लिक सेक्टर के साथ-साथ प्राइवेट सेक्टर की भूमिका भी अहम है. जॉब क्रिएशन से लेकर GDP काे बड़ा करने के लिए प्राइवेट सेक्टर को आगे आना जरूरी है.