हल्दी, जिसके बिना व्यंजनों का रंग नहीं निखरता, स्वाद नहीं जमता. हल्दी, जिसके बिना शुभ मुहूर्त शुभ नहीं होते. हल्दी, जिसके लगने से लग्न चढ़ता और शादियां होतीं. हल्दी, जिससे रूप निखरता, जिससे जख्म भरते. अपने औषधीय, पोषण और स्वास्थ्यवर्धक गुणों के चलते और भी कई काम आती है ये हल्दी, जिसे गोल्डन स्पाइस या सुनहरा मसाला कहा जाता है.
किचन से कॉस्मेटिक्स तक और पूजा-पाठ से शादी ब्याह तक में हल्दी का बड़ा ही महत्व है. रंग, स्वाद और औषधीय गुणों वाली हल्दी सदियों से भारत में उगाई जाती रही है. दुनिया के कुल उत्पादन का 73% हिस्सा भारत में उगाया जाता है, जबकि दुनिया के कुल एक्सपोर्ट का 66% से ज्यादा भारत ही करता है.
लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य हो सकता है कि दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक (Producer and Exporter) होने के बावजूद भारत हल्दी का आयात (Import) भी करता है.
अब जबकि केंद्र ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत हल्दी के लिए राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड (National Turmeric Board) का गठन कर दिया है, तो भी राह में कौन-से रोड़े हैं और समाधान क्या हैं?
अगले कुछ सालों में 1 बिलियन डॉलर निर्यात का आंकड़ा छूने का माद्दा रखने वाले देश को आखिर इंपोर्ट की जरूरत क्यों पड़ती है? आइए समझने की कोशिश करते हैं.
देश में हल्दी का रकबा करीब 2,97,000 हेक्टेयर है, जिसका वार्षिक उत्पादन 2023-24 में 10.4 लाख टन (अनुमानित) के करीब रहा. कुल ग्लोबल एक्सपोर्ट में 66.56% हिस्सेदारी भारत की रही, जिसकी वैल्यू 212.65 मिलियन डॉलर यानी करीब 1,841 करोड़ रुपये रहा.
इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (ICRIER) और एमवे ने हाल ही में जारी रिपोर्ट कहती है कि साल 2030 तक ये आंकड़ा 1 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. ICRIER के निदेशक दीपक मिश्रा ने रिपोर्ट जारी करते हुए ये बात कही.
ICRIER के निदेशक दीपक मिश्रा ने बुधवार को रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि तेलंगाना के निजामाबाद में राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड के शुभारंभ के एक दिन बाद जारी की गई इस रिपोर्ट में वैश्विक हल्दी उत्पादक और निर्यातक के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करने की रणनीतियों की रूपरेखा दी गई है.
दुनिया के सबसे बड़े हल्दी उत्पादक और निर्यातक भारत को हल्दी निर्यात करने की जरूरत पड़ती है. आयात करने के पीछे करक्यूमिन की मात्रा एक बड़ी वजह है. करक्यूमिन, हल्दी में पाया जाने वाला सक्रिय यौगिक है, जो इसके स्वास्थ्य और औषधीय गुणों को बढ़ाता है और इसे ज्यादा बढ़िया क्वालिटी का बनाता है.
न केवल घरेलू बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में हाई करक्यूमिन वाली हल्दी की भारी मांग है. देश में ज्यादातर उगाई जाने वाली हल्दी में करक्यूमिन का लेवल आमतौर पर 2-5% होता है, जबकि कुछ अन्य देशों (जैसे म्यांमार या इंडोनेशिया) में उगाई जाने वाली हल्दी में हाई करक्यूमिन पाया जाता है. कॉस्मेटिक, स्वास्थ्य और औषधीय उत्पाद बनाने वाली इंडस्ट्री में हाई करक्यूमिन वाली हल्दी की डिमांड है, जिसके चलते भारत को आयात करने की नौबत आती है.
हालांकि देश में GI टैग वाली 5 हल्दी उपजाई जाती है, लेकिन उनमें केवल एक लकाडोंग हल्दी में हाई करक्यूमिन पाई जाती है. रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के हिंगोली में वासमत हल्दी (करक्यूमिन 3.4), वर्धा में वाइगांव हल्दी (करक्यूमिन 6) और सांगली में सांगली हल्दी(करक्यूमिन 2.8-4.3), तमिलनाडु में इरोड हल्दी (करक्यूमिन 2.5-4.5), ओडिशा में कंधमाल हल्दी (करक्यूमिन 3.2-4.2) और मेघालय की पहाड़ियों में लकाडोंग हल्दी(करक्यूमिन 6.8-7.8) की खेती होती है.
इसके अलावा अन्य वजहों की बात करें तो इंडोनेशियाई जैसे विशेष किस्मों की मांग, हल्दी की उत्पादन लागत, कीमतों में अंतर, ग्लोबल ट्रेड और री-एक्सपोर्ट, मौसम और कृषि समस्याएं जैसी चुनौतियां हैं. समाधान भी इन समस्याओं से ही निकल कर सामने आते हैं.
'मेकिंग इंडिया द ग्लोबल हब फॉर टरमरिक' नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड जैसी एकल नोडल एजेंसी की स्थापना से क्वालिटी स्टैंडर्ड, ट्रेसबिलिटी को सुनिश्चित किया जा सकता है. साथ ही सर्टिफिकेशन और टेस्टिंग प्रोसेस को को सुव्यवस्थित किया जा सकता है.
साल 2030 तक 1 बिलियन डॉलर के एक्सपोर्ट का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हल्दी उत्पादन को स्थिर करने और किसानों को सशक्त बनाना होगा और इसके लिए लक्षित हस्तक्षेप लागू करने की जरूरत है.दीपक मिश्रा, निदेशक, ICRIER
एक बार जब घरेलू गुणवत्ता और मानक व्यवस्थित हो जाएं, तो प्रमुख निर्यात बाजारों के साथ ताजा और प्रोसेस्ड हल्दी, दोनों के लिए स्टैंडर्ड और सर्टिफिकेशन के लिए पारस्परिक समझौतों के जरिये अनुपालन बोझ (Compliance Burden) कम हो सकता है और व्यापार बढ़ सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सब्सिडी को हाई-एंड प्रॉडक्ट वैल्यू चेन्स के डेवलपमेंट से जोड़ा जाना चाहिए. जैसे कि थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन, हाई कर्क्यूमिन किस्मों की खेती, वैल्यू-एडेड हल्दी प्रॉडक्ट्स के लिए रिसर्च और डेवलमेंट और GI प्रॉडक्ट्स (हल्दी) को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी दी जा सकती है.
फूड सिक्योरिटी को न्यूट्रिशन सिक्योरिटी से जोड़ने और हल्दी को न्यूट्रास्युटिकल के रूप में बढ़ावा देने के दृष्टिकोण से भारत को हल्दी का ग्लोबल हब बनाने के सरकार के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है.रजनीश चोपड़ा, MD, एमवे इंडिया
फसल कटाई के बाद के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश, हल्दी FPO का विस्तार और R&D को बढ़ावा देना कंपटीशन बनाए रखने के लिए अहम है. रिपोर्ट में हाई-कर्क्यूमिन किस्मों को बढ़ावा देने और लीडिंग हल्दी निर्यातक के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों का लाभ उठाने की भी सिफारिश की गई है.